एक तपस्वी वकील और उसका समर्पित बेटा
लगभग सौ साल पहले एक वकील थे—शरीर से तगड़े, आत्मा से तपस्वी। कसरत उनका रोज़ का नियम था, और पसीने से भीगे कपड़े भी पहने जाते थे। लेकिन जेल में थे—कहाँ से धुलते? उनके साथ एक बेटा था, जो पिता के साथ कैद था। वह खुद अपने हाथों से कपड़े धोता था—कुएँ से पानी खींचता, पत्थर पर रगड़ता। क्यों? क्योंकि वह केवल एक स्वतंत्रता सेनानी नहीं, एक पुत्र भी था। पिता को मैले कपड़े पहने देखना उसे गवारा नहीं था।
चांदी के चम्मच के साथ पैदा हुआ पुत्र जो तपस्या मे लगा था
एक दिन एक साथी कैदी ने पूछा, "ये इतने कपड़े?" बेटे ने मुस्कराकर जवाब दिया, "पिताजी के भी हैं।" कैदी ने कहा, "मैं किसी को बुला देता हूँ..." बेटे ने दृढ़ता से जवाब दिया, "मैं उनका बेटा हूँ। उनके कपड़े कोई और क्यों धोए?" जेल की अंधेरी बैरक में यह दृश्य एक दीप की तरह चमकता था।
शिक्षा और त्याग, असहयोग आंदोलन का संकल्प
वह बेटा अनपढ़ कैदियों को पढ़ाता था, झाड़ू लगाता था, और अपनी बैरक की सफाई खुद करता था। 1920 में, जब यह पिता-पुत्र 30,000 रुपये सालाना टैक्स भरते थे, महात्मा गांधी की असहयोग आंदोलन की पुकार ने उन्हें सब कुछ छोड़कर सड़कों और जेलों में उतार दिया। साल 1922, जगह लखनऊ जेल, साथी कैदी जॉर्ज जोसेफ़, वकील मोतीलाल नेहरू, और पुत्र जवाहरलाल।
षड्यन्त्र से उपजी गलतफहमियाँ और सच्चाई: एक नेता का सफर
आज लोग कहते हैं कि जवाहरलाल के कपड़े पेरिस से धुलकर आते थे। लेकिन आज़ादी की असल कहानी में, वह कुएँ से पानी खींचता था, पिता के कपड़े रगड़ता था, और देश के लिए जेल दर जेल भटकता था। एक बेटा मोतीलाल का था, जो बाद में प्रियदर्शिनी इंदिरा का पिता बना। यह परिवार वंश से नहीं, तप से बना और गालियों से नहीं, गाथाओं से चला।
शक का जवाब ? इतिहास की गवाही
अगर कोई पूछे, "लिंक कहाँ है?" तो कह दें, "इतिहास पढ़ो, व्हाट्सएप फॉरवर्ड नहीं।" शक हो तो जॉर्ज जोसेफ़ का नाम गूगल कर लें। सबूत मिल जाएगा, बस आँखों से पर्दा हटाना बाकी है।
तप का तेज
मोतीलाल और जवाहरलाल की यह गाथा हमें याद दिलाती है कि आज़ादी के पीछे न केवल बड़े नेताओं की आवाज़ थी, बल्कि एक पुत्र का पिता के प्रति समर्पण भी था। यह परिवार तप और त्याग की मिसाल है, जो इतिहास के पन्नों में अमर है।
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मुख्य बिंदु
मोतीलाल नेहरू: तपस्वी वकील
शारीरिक रूप से सशक्त, आत्मा से तपस्वी।
रोज़ कसरत उनका नियम, पर जेल में कपड़े धुलने का सवाल था।
1920 में, 30,000 रुपये सालाना टैक्स देने वाले मोतीलाल ने गांधीजी के असहयोग आंदोलन में सब त्याग दिया।
जवाहरलाल नेहरू: कर्तव्यनिष्ठ पुत्र
पिता के साथ लखनऊ जेल में कैद।
कुएँ से पानी खींचकर, पत्थर पर पिता के कपड़े धोए, क्योंकि वह पुत्र था।
साथी कैदी के सुझाव पर बोले, “उनके कपड़े कोई और क्यों धोए?”
जेल में दीपक
जवाहरलाल ने अंधेरी बैरक में अनपढ़ कैदियों को पढ़ाया।
बैरक की सफाई और झाड़ू लगाने का काम स्वयं किया।
पिता-पुत्र ने मिलकर स्वतंत्रता के लिए जेल-दर-जेल संघर्ष किया।
1922: लखनऊ जेल की गवाही
साथी कैदी जॉर्ज जोसेफ़ ने देखा यह समर्पण।
मोतीलाल और जवाहरलाल की कहानी आज़ादी की असल तस्वीर है।
जवाहरलाल, जिन्हें बाद में देश का प्रधान सेवक चुना गया।
तप से तपा एक परिवार
मोतीलाल का बेटा, फिर इंदिरा का पिता—जवाहरलाल।
यह परिवार वंश से नहीं, गाथाओं और बलिदान से चला।
अफवाहों का जवाब इतिहास है, न कि व्हाट्सएप फॉरवर्ड।