गांव के कुछ लोगों ने फैसला किया कि मंदिर पर भागवत कथा कराई जाएगी। इसके लिए एक कमेटी बनाई गई। कमेटी ने गांव में घूम-घूमकर चंदे के नाम पर पैसा जमा किया। फिर मंदिर पर चारों दिशाओं में चार माइक लगाए गए और सात दिन की कथा शुरू हो गई।
1. चंदे का खेल: माइक पर नाम
दिन-रात कथा के बीच में आवाज गूंजती—अमित, कल्लू चाचा का सुपुत्र, मइया के चरणों में 10 रुपये अर्पित करता है। लोग माइक पर नाम बुलवाने के लिए खुलकर खर्च करने लगे। बोलने वाला 10 रुपये देने वाले का नाम जल्दी बोल देता, लेकिन 50-100 रुपये देने वाले का नाम आराम से और बार-बार दोहराता।
2. किसानों की मजबूरी: खेतों की चिंता
किसान पैसे देकर नाम बुलवाकर जाने लगे। कीर्तन करने वालों ने कहा—अरे भइया, थोड़ी देर बैठ जाओ, कथा सुनकर जाओ। किसानों ने जवाब दिया—हमें गायों से रात-दिन खेतों की रखवाली करनी पड़ती है। यहाँ बैठ गए तो गाय सब खेत खा लेंगी। कीर्तन करने वालों ने कहा—मइया का नाम लेकर आ जाओ, गाय खेत नहीं खाएंगी। फिर जोर का जयकारा लगवाया गया।
3. कथा का विस्तार: चंदे की भूख
यह सिलसिला सात दिन तक चला। खूब पैसा आया। फिर कीर्तन मंडली और कमेटी वालों ने आखिरी दिन कथा को दो दिन और बढ़ा दिया। दो दिन बाद भंडारे के दिन माइक से अनाउंसमेंट हुई—हमारा ट्रैक्टर पूरे गांव में घूम रहा है। जो अपनी श्रद्धा से राशन, ईंधन, या पैसा देना चाहे, दान कर दे।
4. चंदे का सिलसिला: गांव-गांव में आयोजन
भागवत कथा खत्म होते ही गांव के दो और मंदिरों पर अगले कुछ दिनों में कथा के आयोजन की योजना बनने लगी। आसपास के गांवों में भी खूब भागवत कथाएँ हो रही हैं। जमकर चंदा जमा किया जा रहा है। किसान धर्म के नाम पर बढ़-चढ़कर चंदा दे रहे हैं।
5. किसानों का संघर्ष: गायों का सवाल
दिन-रात सर्दी-बरसात में खेतों की गायों से रखवाली करने वाले किसानों से पूछा गया—जब खेती में इतना नुकसान हो रहा है, तो चंदा देने की क्या जरूरत है? जवाब मिला—ये धर्म का काम है, जरूरी है। फिर सवाल हुआ—गायों के लिए जिम्मेदार कौन है? वे बोले—ये सरकार ने तो छोड़ी नहीं, ये हम ही लोगों ने छोड़ी हैं।
निष्कर्ष: भोली जनता, चालाक सियासत
ये सब देखकर और सुनकर सोचने पर मजबूर हूँ कि कितनी अच्छी सरकार है ये। और कितनी भोली हो चुकी है जनता। अगर यही जनता दूसरी सरकारों को मिली होती, तो उनकी सरकारें महंगाई, भ्रष्टाचार जैसे छोटे मुद्दों पर नहीं गिरतीं। कुएं में भांग बड़ी मात्रा में मिलाई गई है, असर सालों तक रहने वाला है…
Author - Saurabh Yadav
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