स्वराज भवन: आनंद भवन से क्रांति का केंद्र तक !

एक मकान जिसकी नींव में क्रान्ति और त्याग की नींव भी डली

सन 1900 में, पंडित मोतीलाल नेहरू ने मुरादाबाद के परमानंद से चर्च रोड पर एक जीर्ण-शीर्ण मकान खरीदा, जो रामायण कालीन भारद्वाज आश्रम के निकट था। इसकी कीमत 19,000 रुपये थी। 1925 में सोने का भाव ₹19 प्रति 10 ग्राम था, जो उस समय की संपत्ति के मूल्य को दर्शाता है। मोतीलाल ने इसे बड़े मन से "आनंद भवन" नाम दिया, इसे सजाया और बनाया। यह इलाहाबाद का पहला घर था जिसमें स्विमिंग पूल और बिजली थी। 1904 में उन्होंने संयुक्त प्रांत की पहली कार विदेश से लाई, और 1905 में एक और नई कार, फिर 1909 में फिएट और लैंसिया खरीदीं।

मकान का बलिदान, बाप-बेटे का संकल्प!

स्वतंत्रता संग्राम के दौरान, जवाहरलाल नेहरू ने अपने मित्र से कहा कि पिता की मृत्यु के बाद वे आनंद भवन को देश को समर्पित करेंगे। मोतीलाल को यह सुनकर उन्होंने कहा, "इस शुभ कार्य के लिए मेरी मृत्यु का इंतजार क्यों? मैं इसे अभी देश को सौंप देता हूँ।" 9 अप्रैल 1930 को, उन्होंने आनंद भवन को "स्वराज भवन" नाम देकर स्वतंत्रता की लड़ाई के लिए समर्पित कर दिया। यह केवल एक भवन नहीं, बल्कि उनकी संपत्ति, परंपरा और पहचान का यज्ञ था।

तीन पीढ़ियों का सम्मिलन, एक ऐतिहासिक क्षण

मोतीलाल नेहरु जवाहर लाल नेहरु और किशोर इंदिरा प्रियदर्शीनी, तीन बलिदानी पीढ़ी एक तस्वीर फ्रेम में
देश के लिए अपना सर्वस्व त्याग देने का मिसाल पेश करने वाली तीन पीढ़ी एक साथ ! कितना निर्लज्ज और भीरु होगा वो झुण्ड जो इनकी फर्जी और अश्लील कहानीयां गढ़ने में लगा रहता है ?

उस दिन, पृष्ठभूमि में युवा इंदिरा खड़ी थीं, हाथ में किताब लिए—जैसे आज़ादी का पाठ पढ़ रही हों। उनके आगे मोतीलाल नेहरू, जिनकी आँखों में भविष्य की चमक थी। यह तस्वीर सिर्फ इतिहास नहीं, स्वतंत्रता संग्राम की आत्मा है, जो काले-सफेद रंगों में भी चित्ताकर्षक है। मोतीलाल ने कहा, "यह भवन अब मेरा नहीं, राष्ट्र का है।"

स्वराज भवन: क्रांति का केंद्र

स्वराज भवन भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का रणनीतिक केंद्र बना। यहाँ बैठकों में योजनाएँ बनीं, जेल जाने के संकल्प लिए गए, और नमक कानून तोड़ने की लहर उठी। इस चित्र में समय ठहर गया है, जहाँ तीन पीढ़ियों की राष्ट्रभक्ति—मोतीलाल का त्याग, जवाहरलाल का नेतृत्व, और इंदिरा का भविष्य—एक फ्रेम में सिमट आई है।

श्वेत-श्याम में गूंजती क्रांति

तस्वीर में शोर नहीं है, पर क्रांति गूंज रही है। यह श्वेत-श्याम फ्रेम किसी मूर्ति की तरह स्थिर है, फिर भी हर आँख, हर मुद्रा, हर छाया हमें आज़ादी के संघर्ष की गहराई में ले जाती है। इसमें तीन युग हैं—वर्तमान (1930) जब देश उठ खड़ा हुआ, भूतकाल जो राजाओं और रईसों को झुकाया, और भविष्य जो इस त्याग से सींचा गया।

ईंट-गारे से खड़ा किया गया एक इमारत मात्र, या विरासत ?

स्वराज भवन केवल एक इमारत की सौगात नहीं, बल्कि एक परिवार द्वारा अपने "स्व" को "राज" में विलीन करने की घोषणा थी। यह ईंटों का ढांचा नहीं, आत्मा का तीर्थ है, जो आज भी स्वतंत्रता की प्रेरणा देता है।

Author - विजय शुक्ल

👉इस लेख को मूल संस्करण x (पूर्व मे ट्विटर) पर जो विजय जी ने लिखा यहाँ क्लिक करके पढ़ सकते हैं। 👈

मुख्य बिंदु

  1. आनंद भवन का निर्माण

    • 1900 में ₹19,000 में खरीदा गया मकान, उस समय सोने का भाव (1925 में ₹19 प्रति 10 ग्राम) अनुमानित मूल्य दर्शाता है।

    • मोतीलाल ने इसे आधुनिक सुविधाओं—स्विमिंग पूल, बिजली—से सजाया।

    • 1904 में संयुक्त प्रांत की पहली कार, फिर 1905 और 1909 में यूरोप से फिएट और लैंसिया कारें लाए।

  2. स्वराज भवन का समर्पण

    • 1930 में मोतीलाल ने आनंद भवन को राष्ट्र को समर्पित किया, नाम बदला—स्वराज भवन

    • जवाहरलाल ने मित्र से कहा था कि वह पिता की मृत्यु के बाद इसे देश को देंगे, पर मोतीलाल ने कहा, “मेरी मृत्यु का इंतज़ार क्यों? अभी समर्पित करता हूँ।”

    • 9 अप्रैल 1930 को यह भवन भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का रणनीतिक केंद्र बना।

  3. स्वतंत्रता संग्राम का केंद्र

    • स्वराज भवन में योजनाएँ बनीं, नमक कानून तोड़ने की लहर यहीं से उठी।

    • यहाँ जेल जाने के संकल्प लिए गए, क्रांति की रणनीतियाँ गढ़ी गईं।

    • मोतीलाल का कथन, “यह भवन अब मेरा नहीं, राष्ट्र का है,” त्याग की मिसाल बना।

  4. तीन पीढ़ियों की राष्ट्रभक्ति

    • मोतीलाल नेहरू: त्याग की मूर्ति, जिन्होंने संपत्ति और पहचान राष्ट्र को सौंप दी।

    • जवाहरलाल नेहरू: नेतृत्व का प्रतीक, जिनकी आँखों में भविष्य की चिनगारी थी।

    • इंदिरा गांधी: युवा, किताब थामे, आज़ादी का पाठ पढ़ती, भविष्य की संवाहक।

  5. एक तस्वीर, तीन युग

    • 1930 की श्वेत-श्याम तस्वीर में तीन पीढ़ियाँ सिमटीं—भूतकाल का त्याग, वर्तमान का संघर्ष, भविष्य की आशा।

    • यह तस्वीर क्रांति की गूँज है, जहाँ हर मुद्रा आज़ादी की गहराई बयाँ करती है।

    • स्वराज भवन ईंटों का ढांचा नहीं, राष्ट्रभक्ति का तीर्थ है।

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