राजीव गांधी की जन्म जयंती पर पढ़ें एक नवोदय विद्यालय के पूर्व छात्र के पत्र की कहानी, जो उनकी दूरदर्शी नवोदय योजना और डिजिटल क्रांति के योगदान को दर्शाता है। डिजिटल युग की शुरुआत करने वाले इस भारत रत्न की विरासत आज भी नवोदयन्स के दिलों में जिंदा है। जानें कैसे इस योजना ने ग्रामीण बच्चों के जीवन बदले और क्यों उनकी विरासत अमर है।
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एक पत्र का गहरा संदेश
एक दिन सोशल मीडिया पर मुझे एक नवोदय विद्यालय से पढ़कर निकले एक छात्र का खत पढ़ने को मिला, जो आज एक अधिकारी हैं। खत में लिखी बातें बेहद गहरी थीं, जो पर्सनल अनुभव के आधार पर ही लिखी जा सकती थीं। वो आज के नेताओं के भाषणों को भी आईना दिखाती हैं। राजीव गांधी को अपशब्द कह देने वाले ज़रा नवोदय विद्यालय से पढ़कर निकले इन बच्चों का संदेश भी पढ़ लीजिए, जो नवोदय से पढ़कर निकले हैं और देश की सेवा में कार्यरत हैं।
राजीव गांधी का सम्मान
किसी पुरस्कार से नाम हटा देने से राजीव गांधी का सम्मान, उनकी सेवाएँ, उनका योगदान, हर भारतीय के दिल में उनकी जगह कभी कम नहीं हो पाएगी। 20 अगस्त 1944 को जन्मे राजीव गांधी, आयरन लेडी इंदिरा गांधी के बड़े बेटे थे। वे राजनीति में कोई खास रुचि नहीं रखते थे, इसलिए वो अपनी माँ के प्रधानमंत्री रहते हुए भी लाइमलाइट में नहीं आए, जिस तरह से प्रभावशाली उनके छोटे भाई संजय गांधी थे, जो कि अमेठी से सांसद भी थे।
राजनीति में प्रवेश
लेकिन अपने छोटे भाई संजय गांधी की एक हवाई दुर्घटना में मौत हो जाने के बाद उन्होंने राजनीति का दामन थाम लिया। संजय गांधी की मौत के बाद वो अपनी माँ के साथ राजनीति में आए। तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या के बाद हुए 1984 के आम चुनाव में भारी बहुमत के साथ भारत के सातवें प्रधानमंत्री बने। वे राजनीति में आए और पहली बार उत्तर प्रदेश की अमेठी लोकसभा सीट से जीतकर संसद में गए।
डिजिटल युग और शिक्षा क्रांति
देश में डिजिटलाइजेशन का युग शुरू हुआ, शिक्षा क्षेत्र में अनोखी क्रांति लायी गयी। राजीव गांधी की उम्र 47 साल थी जब उनकी हत्या हुई और वे मात्र 40 साल के थे जब प्रधानमंत्री बने। हम सब नवोदयन्स राजीव गांधी के ऋणी हैं। मैं खुद कम से कम 1000 ऐसे लोगों को जानता हूँ, जिनके जीवन, जिनके कैरियर में नवोदय का बहुत बड़ा योगदान है। अगर नवोदय विद्यालय न होता तो आज वे वो ओहदा, वो रुतबा, वो सफलता हासिल ही न कर पाते, जहां वे आज हैं... मैं भी उनमें से एक हूँ।
नवोदय विद्यालय की स्थापना
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आज राजीव गांधी की जन्म जयंती के मौके पर अगर हम उन्हें याद न करें तो सही नहीं है। 1984 में वे PM बने और 1985 में उन्होंने इस देश के गरीब देहात के प्रतिभाशाली बच्चों को एक उच्च कोटि की शिक्षा मिल सके, इस इरादे से नवोदय विद्यालय की नींव रखी। जरा गौर कीजिएगा कि कितनी बेहतरीन व्यवस्था की थी उन्होंने, जो श्रेष्ठ और आधुनिक शिक्षा से भारत की तकदीर बदल सकती थी।
नवोदय की अनूठी व्यवस्था
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- एक जिले में से 6th std से 80 बच्चों को प्रवेश परीक्षा से चयनित किया जाएगा।
- उन 80 में से 16 (20%) शहरी क्षेत्र से होंगे, बाकी 64 ग्रामीण इलाकों से, ऐसा इसलिए कि अगर ऐसा न होता तो ग्रामीण इलाकों से कम ही लोग क्वालिफाई कर पाते।
- इन चयनित बच्चों को राजीव गांधी जिस दून स्कूल में पढ़े थे, ऐसी बोर्डिंग स्कूल में निशुल्क पढ़ाया जाएगा।
- निशुल्क माने ये मान लो सरकार उनको अगले 6 साल के लिए गोद लेगी, भोजन, पढ़ाई, रहना, कपड़ा सब फ्री रहेगा।
- यहां तक कि टूथब्रश, साबुन, हेयर ऑयल, घर से आने-जाने का टिकट सब कुछ फ्री... मानो वे सरकार के बेटे-बेटियाँ हैं।
- पढ़ाई, खेल-कूद, विज्ञान, कला, संस्कृति आदि सब की ट्रेनिंग दी जाती है।
- 9th std में माइग्रेशन होता है, जिसके तहत 15 बच्चों को उस राज्य से बाहर किसी और स्कूल में माइग्रेट किया जाता है, ताकि बच्चे एक-दूसरे के राज्य, रहन-सहन को जानें, देश में एकता बढ़े।
- जाति, धर्म, पैसा, रसूख के आधार पर कोई भेदभाव नहीं किया जाता, सबको एक नजर से देखा जाता था।
नवोदय की सफलता
- आज देश में 550 से ज्यादा ऐसे स्कूल हैं, सारे के सारे सेंटर लगभग एक जैसी ही हैं।
- अब तक 10 लाख से ज्यादा लोग इससे पास आउट हैं।
- इस वर्ष ही करीब 400 से ऊपर नवोदयन्स IIT के लिए क्वालिफाई हुए हैं।
- नवोदय योजना की सफलता का आकलन आप ऐसे भी लगा सकते हैं कि मोदी जी ने अपने पहले 4 साल में कोई 55 नई नवोदय सेंक्शन की हैं। आगे और भी देने की योजना हो सकती है। (उनका भी धन्यवाद)
बिना श्रेय की भावना
मुद्दे की बात ये है कि इतना सारा देने के बाद भी हमने कभी राजीव गांधी या सोनिया गांधी अथवा राहुल गांधी के मुँह से उसकी क्रेडिट लेते न देखा न सुना। वो पैसे जनता के थे और हम जनता से चयनित होकर आए थे, हमें वो हक से दिया, हक समझकर दिया। कभी हमें किसी उपकार की भावना से नहीं जताया गया। मुफ्त का खाया या मुफ्त की पढ़ाई की, ऐसा किसी ने नहीं कहा। अब तो अन्न पर भी फोटो चिपकती है और क्रेडिट लेने की भूख साफ दिखती है।
सहजता का मूल्य
जब उनकी हत्या हुई, तब हम नवोदय में ही पढ़ रहे थे। मुझे याद भी नहीं कि मैं कोई ज्यादा दुखी भी हुआ होऊँगा... क्योंकि हमें वो हक इतनी सहजता से दिया गया था, हमें उसका कोई महत्व तक पता नहीं था। आज पीछे मुड़कर देखते हैं और आज के हालात में सरकार 1000 रुपये का एक गैस बर्नर भी दे देती है तो कितना चिल्लाती है, ये देखकर अहसास होता है कि हमें कितना दिया गया और कभी जताया तक नहीं गया।
एक आदर्श नेता की विरासत
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एक अच्छा विचार, एक इनोसेंट पॉलिटिशियन ने कैसे लागू किया, ये नवोदय विद्यालय इस बात का एक श्रेष्ठ उदाहरण है। पत्र का हर अंश स्पष्ट रूप से राजीव गांधी की भविष्य निर्माण की सोच और भारत निर्माण में उनके योगदान को दर्शाता है। भारत देश के ऐसे पूर्व प्रधानमंत्री, देश में डिजिटलाइजेशन के जनक, कम्प्यूटर युग की शुरुआत करने वाले, अभूतपूर्व मुस्कुराहट लिए हुए जिनकी आभा सदैव हर देशवासी की आँखों में बसती है। इक्कीसवीं सदी के ऐसे महानायक, भारत रत्न, विकास पुरुष स्व. राजीव गांधी जी को उनकी जयंती पर शत् शत् नमन!!
मूल आलेख - Shailendra Agrahari