नेहरू और समाजवादियों का ऐतिहासिक रिश्ता
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नेहरू जी और समाजवादी नेताओं की साझा यात्रा—आजादी की लड़ाई में एकजुटता
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हमारे प्रेरणा पुरुष डॉ. राममनोहर लोहिया को जवाहरलाल नेहरू का कट्टर विरोधी माना जाता था, लेकिन आजादी से पहले लोहिया नेहरू जी के बहुत करीबी थे। समाजवादी आंदोलन के पितामह आचार्य नरेंद्र देव नेहरू जी के मित्र थे। दोनों अहमदनगर जेल में एक साथ कैद थे, जहां नेहरू जी ने डिस्कवरी ऑफ इंडिया जैसी महान किताब लिखी। जेल में संदर्भ सामग्री या लाइब्रेरी की कोई सुविधा नहीं थी, फिर भी नेहरू जी हर नए अध्याय को लिखने से पहले आचार्य नरेंद्र देव से विचार-विमर्श करते थे। दोनों के अंतरंग रिश्तों का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि जब इंदिरा गांधी ने अपने पहले पुत्र को जन्म दिया, तो उसका नामकरण—राजीव—आचार्य नरेंद्र देव ने किया था। समाजवादी आंदोलन के एक और बड़े नेता जयप्रकाश नारायण (जेपी) को नेहरू जी का उत्तराधिकारी माना जाता था, भले ही वे कांग्रेस में नहीं थे।
कांग्रेस और समाजवादी विचारों का टकराव
1934 में समाजवादी विचारों से प्रेरित कुछ युवाओं ने कांग्रेस के अंदर कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी का गठन किया। नेहरू जी ने इस पहल का स्वागत किया था। 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन में गांधी जी, नेहरू जी सहित कांग्रेस के सभी बड़े नेता जेल में डाल दिए गए थे। उस मुश्किल वक्त में लोहिया और जेपी जैसे युवा समाजवादियों ने आंदोलन को चलाए रखने में उल्लेखनीय भूमिका निभाई। आजादी के बाद, जब देश के विकास के लिए समाजवादी मॉडल की बात होने लगी, तो समाजवादियों को अतिवादी कहा जाने लगा। कांग्रेस में मौजूद दक्षिणपंथी नेताओं को समाजवादियों से दिक्कत होने लगी। समाजवादी गांधी जी के प्रभाव के कारण कांग्रेस में थे, लेकिन गांधी जी के निधन के बाद यह प्रभाव भी टूट गया। समाजवादियों को लगा कि अपने वैचारिक आग्रहों के साथ कांग्रेस में रहना संभव नहीं। इसलिए 1948 में उन्होंने कांग्रेस छोड़कर अलग रास्ता चुना, जिससे सत्तारूढ़ कांग्रेस के खिलाफ एक विपक्षी दल का उदय हुआ।
समाजवादी नीतियों की लड़ाई
तब तक भारत का नया संविधान नहीं बना था, और कांग्रेस ने समाजवाद को नहीं अपनाया था। समाजवादी लोग नया भारत बनाने के लिए समाजवादी नीतियों के हिमायती थे। 1956 में कांग्रेस ने अपने सम्मेलन में समाजवादी समाज बनाने की प्रतिबद्धता जताई। इस घोषणा से कुछ समाजवादी वापस कांग्रेस में चले गए, लेकिन जो बचे, उन्होंने सशक्त विपक्ष की भूमिका चुनी। इस धारा में लोहिया एक प्रखर विपक्षी नेता के रूप में उभरे, जिन्होंने संसद में अपने सवालों से सरकार को बार-बार निरुत्तर किया। उस दौर में सरकार का विरोध करने वालों को देशद्रोही नहीं कहा जाता था।
मेरी वैचारिक यात्रा और नेहरू के प्रति भ्रांतियां
मेरी राजनीतिक यात्रा समाजवादी विचारों के साथ शुरू हुई, जब मैं मात्र 16 साल का था। उन दिनों समाजवादी और जनसंघी मिलकर जनता पार्टी में थे। हम सब इमरजेंसी लगाने वाली कांग्रेस के खिलाफ थे। हमारी सोच सिर्फ इतनी थी कि कांग्रेस का विरोध करना है। हमारे पास सूचनाओं का कोई दूसरा स्रोत नहीं था। जनसंघी साथी रोज संघ की शाखा से नई-नई जानकारी लाकर हमारा "ज्ञानवर्धन" करते थे। उन्होंने बताया कि नेहरू जी के कपड़े धुलने लंदन जाते थे, नेहरू ने देश का विभाजन करवाया, नेहरू नंबर वन के अय्याश थे, उनके पूर्वज मुसलमान थे, इसलिए मुसलमान कांग्रेस को वोट देते हैं। सच कहूं, उस वक्त मुझे जनसंघी मित्रों की बातें ठीक लगती थीं। मैं भी अपनी चर्चाओं में इन्हीं बातों को दोहराकर कांग्रेस के खिलाफ माहौल बनाता था।
भ्रांतियों का टूटना और अपराध बोध
1980 में जब जनता पार्टी टूटकर जनसंघियों ने भारतीय जनता पार्टी बनाई, तो मुझे गहरा धक्का लगा। तब तक मैं दिनमान, रविवार, धर्मयुग, साप्ताहिक हिंदुस्तान, और सामयिक वार्ता जैसी पत्रिकाएं पढ़ने लगा था। मैं विचारधाराओं के अंतर को पहचानने लगा था। मैंने लोहिया पर इंदुमती केलकर, ओंकार शरद, और ओमप्रकाश दीपक की जीवनी पढ़ी। गांधी, लोहिया, जयप्रकाश नारायण, और विनोबा की किताबें और पुस्तिकाएं पढ़ीं। मार्क्स, लेनिन, शिवदास घोष, और कम्युनिस्ट मैनिफेस्टो को समझा। इसी दौरान नेहरू जी की डिस्कवरी ऑफ इंडिया और उन पर लिखी अन्य किताबें व लेख पढ़े। टीवी पर श्याम बेनेगल का भारत की खोज देखा। सच कहूं, नेहरू जी के बारे में मेरे दिमाग में जमा सारा कचरा साफ हो गया। मेरी सारी धारणाएं ध्वस्त हो गईं। मुझे लंबे समय तक अपराध बोध रहा कि नेहरू जी के बारे में मैं कितना गलत सोचता था।
नेहरू पर हमले और कांग्रेस की चुप्पी
समाजवादी हम आज भी हैं। न कभी कांग्रेस को वोट दिया, न समर्थन किया। लेकिन जब दो कौड़ी के टुच्चे और सांप्रदायिक लोग नेहरू जी जैसे महान व्यक्तित्व के बारे में अनर्गल और गलत बातें लिखते हैं, तो खून खौल जाता है। पिछले कुछ समय से मैं देख रहा हूं कि नेहरू जी पर संघी हमले या चरित्र हनन के खिलाफ कांग्रेसी आमतौर पर चुप रहते हैं। उसका माकूल जवाब समाजवादी या गैर-कांग्रेसी वामपंथी मित्र ही देते हैं। कांग्रेसियों की यह वैचारिक दरिद्रता चिंताजनक है।
नेहरू: विश्व के महान नेता
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पुण्यतिथि पर चाचा नेहरू को सादर नमन—एक समाजवादी की नजर में भारत का सच्चा सपूत! 💐🙏 #NehruLegacy |
यह सच है कि जवाहरलाल नेहरू कांग्रेस के नेता थे, लेकिन मेरा मानना है कि वे सिर्फ कांग्रेस के नहीं, बल्कि भारत और विश्व के महान नेता थे। पुण्यतिथि पर चाचा नेहरू का सादर स्मरण... 💐🙏
— गोपाल राठी