.jpg)
नेता जी के तुर्रे और जनता की उलझन—मास साइकोलॉजी का खेल शुरू! #PoliticalManipulation
बड़बोले बयानों का सिलसिला
.jpg)
अनपढ़ हो या दिमागी रूप से कमजोर इंसान, हर कोई समझता है कि उसने कहां गलत बोला और कहां वह उपहास का पात्र बन गया। जाहिल-से-जाहिल इंसान भी अपनी गलत बातों पर बेइज्जती महसूस करता है और कोशिश करता है कि वैसी हरकत दोबारा न करे। लेकिन इस इंसान को देखिए—पिछले 30 सालों से लगातार जोकरों जैसे बयान और असंभव वादों की लंबी-लंबी फेंकता है। हर बयान के बाद पूरे मुल्क में इसकी खिल्ली उड़ती है, लेकिन यह सुधरने का नाम नहीं लेता।
समस्या कहां है?
क्या यह इतना लुल्ल है कि इसे पता ही नहीं कि उसकी इज्जत और इमेज बर्बाद हो रही है? क्या कोई इसे समझाने वाला नहीं? नौकरशाहों की फौज लेकर घूमने वाले के पास क्या एक भी ऐसा बंदा नहीं जो इसे समझा सके कि कहां चोंच बंद रखनी है और कहां कितना बोलना है? अगर आप ऐसा सोच रहे हैं, तो आप पूरी तरह गलत हैं। इसे अपने हर शब्द का पूरा भान है कि यह क्या बोल रहा है। असल में मूर्ख यह नहीं, बल्कि इसकी मजाक उड़ाने वाले लोग मूर्ख हैं।
मास साइकोलॉजी का मास्टर
जब यह संसद में, किसी पब्लिक या ऑफिशियल मीटिंग में होता है, तो इसे पूरा ध्यान रहता है कि उसकी हरकतें और बातें उसके भक्तों तक पहुंच रही हैं या नहीं। इसके मूर्खतापूर्ण बयान बहुत सॉलिड तरीके से काम करते हैं। इसके पास एक टीम है जो इसे "मास साइकोलॉजी" समझाती रहती है। इसीलिए आप इसकी कितनी भी मजाक उड़ा लें, यह हर दूसरे दिन अपने तुर्रे छोड़ता रहता है।
पूंजीपतियों की चाकरी और झूठे वादे.jpg)
हर घर कार का वादा, पर पूंजीपतियों की चाकरी—नेता जी का असली खेल
.jpg)
गुजरात में जब इसे पहली बार मौका मिला, तो इसने सबसे पहले पूंजीपतियों के चरणों में लोट लगानी शुरू कर दी। राज्य के संसाधनों को मुफ्त में लुटवाया—पावर और पेट्रोलियम प्रोजेक्ट्स के लिए। उस वक्त यह हर चुनावी सभा में जुमला मारता था: "दो साल के अंदर गुजरात के हर घर के बाहर एक मारुती वैन खड़ी होगी।" पच्चीस साल बाद भी यह देश के अन्य राज्यों में यही जुमला मार रहा था: "साल भर के अंदर हर घर के बाहर कार खड़ी मिलेगी।"
भक्तों का सम्मोहन.jpg)
सम्मोहित भक्त
.jpg)
आप गरीबों और मुफ्त राशन लेने वालों की बात करते हैं, लेकिन इन लोगों से बात करके देखिए। ये इसके हर शब्द, हर बयान को सच्चा मानते हैं। मैंने खुद नोटबंदी के दौरान एटीएम की लाइन में लगे लोगों से बात की—सब इसके सम्मोहन में बावले थे। कोरोना काल में उन लोगों से बात की, जिन्होंने मेडिकल अव्यवस्था के चलते अपने बच्चों और माता-पिता को खो दिया, लेकिन वे यह मानने को तैयार नहीं थे कि यह इंसान कुछ गलत कर रहा है। अधिसंख्य लोगों के हिसाब से इसने पड़ोसी मुल्कों को बर्बाद कर दिया है। यह सबसे बड़ा जिगरवाला सुपरमैन है, जिसके बिना यह मुल्क हफ्ते भर में गुलाम हो सकता है।
असफलताओं को छुपाने की कला
मास साइकोलॉजी की बात हो, तो यह हमसे-आपसे कहीं ज्यादा दूर की सोच रखता है। पिछले 11 सालों में इसने अपनी हर मूर्खता, हर असफलता को मार्केटिंग और बयानों से न सिर्फ छुपा दिया, बल्कि इन्हीं असफलताओं और बड़बोलेपन से करोड़ों लोगों को अपने सम्मोहन में बांधे रखा है। इसे फिक्र नहीं कि भविष्य में इसे कैसे याद किया जाएगा। यह पूंजीपतियों के प्रति अपने गुलाम रवैये और शोषण से उपजे आक्रोश को भटकाने पर फोकस्ड है। आप जितनी छाती पीटें, इसे फर्क नहीं पड़ता।
निष्कर्ष: हमें समझने की जरूरत
हमें समझना होगा कि मास साइकोलॉजी क्या है और यह कैसे काम करती है। इसकी मजाक उड़ाने से हम सिर्फ अपना अहम संतुष्ट करते हैं। अपने ऊल-जलूल बयानों को पब्लिक में उछालकर यह मीडिया से हर तरह की डिबेट को गायब करवा देता है। करोड़ों लोगों की साइकोलॉजी से खेलना इसे अच्छे से आता है। मूर्ख हम हैं, यह नहीं।
Author - वाचस्पति शर्मा