कांग्रेस में छिपे गद्दार
कांग्रेस के शीर्ष नेता राहुल गांधी ने पिछले महीने गुजरात में अपनी पार्टी के कार्यकर्ताओं को संबोधित करते हुए कहा था कि कांग्रेस में कई लोग गुप्त रूप से भाजपा के लिए काम करते हैं। उन्होंने ऐसे नेताओं को पहचानने और बाहर निकालने की आवश्यकता पर बल दिया। यह बात कोई नई नहीं है। करीब 40 साल पहले राहुल के पिता राजीव गांधी ने भी प्रधानमंत्री और कांग्रेस अध्यक्ष की हैसियत से ऐसी ही बात कही थी।
1. राजीव गांधी की चेतावनी: सत्ता के दलालों का बोलबाला
दिसंबर 1985 में मुंबई में कांग्रेस के शताब्दी अधिवेशन के दौरान तत्कालीन प्रधानमंत्री और कांग्रेस अध्यक्ष राजीव गांधी ने कहा था कि कांग्रेस को सत्ता के दलालों से मुक्त कराया जाएगा। राजीव गांधी 5 साल तक प्रधानमंत्री और अपनी हत्या तक साढ़े 6 साल तक कांग्रेस अध्यक्ष रहे, लेकिन वे किसी भी सत्ता के दलाल को बाहर नहीं कर सके। उल्टे, अरुण नेहरू जैसे सत्ता के कुख्यात दलाल उनके विश्वासपात्र बन गए और उनसे गलत फैसले करवाते रहे।
शाहबानो मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले को संसद के जरिए पलटना और अयोध्या में विवादित स्थल के ताले खुलवाना जैसे फैसले अरुण नेहरू की ही देन थे। इनका खामियाजा कांग्रेस को 1989 के चुनाव में भुगतना पड़ा और यह सिलसिला आज तक जारी है। राजीव गांधी की हत्या के बाद अरुण नेहरू ने अखबारों में कॉलम लिखकर कांग्रेस के खिलाफ जहर उगला और बाद में भाजपा में शामिल होकर राष्ट्रीय कार्यकारिणी के सदस्य बन गए।
2. सत्ता के दलालों का पलायन: कांग्रेस से भाजपा तक
अरुण नेहरू जैसे तमाम सत्ता के दलाल राजीव गांधी के जीवनकाल और उनके बाद भी कांग्रेस में जमे रहे। उनका पार्टी से बाहर निकलने का सिलसिला 2013 से शुरू हुआ, जब उन्हें लगा कि कांग्रेस अब सत्ता से बाहर होने वाली है। पिछले 12 वर्षों में करीब एक दर्जन पूर्व मुख्यमंत्री, 2 दर्जन से ज्यादा पूर्व केंद्रीय मंत्री, असंख्य पूर्व सांसद-विधायक और अन्य छोटे-बड़े नेता कांग्रेस छोड़कर भाजपा में शामिल हो चुके हैं। इनमें से ज्यादातर आज भगवा पट्टा डाले सत्ता सुख भोग रहे हैं।
इसके अलावा, कई ऐसे नेता अभी भी कांग्रेस में हैं, जो गुप्त रूप से भाजपा के लिए काम कर रहे हैं। राहुल गांधी ने गुजरात में इन्हीं लोगों की ओर इशारा किया था। सवाल यह है कि क्या राहुल इनकी पहचान कर उन्हें पार्टी से बाहर करने का साहस दिखा पाएंगे?
3. बदले हालात: कांग्रेस की कमजोर स्थिति
जब राजीव गांधी ने सत्ता के दलालों को बाहर करने की बात कही थी, तब कांग्रेस अभूतपूर्व बहुमत के साथ सत्ता में थी। देश के तीन-चौथाई राज्यों में उसकी सरकारें थीं। राजीव गांधी के पास पार्टी पर पूरा नियंत्रण था। फिर भी वे किसी सत्ता के दलाल को बाहर नहीं कर पाए।
आज हालात पूरी तरह बदल चुके हैं। पिछले एक दशक से कांग्रेस केंद्र और ज्यादातर राज्यों में सत्ता से बाहर है। शीर्ष नेतृत्व की पार्टी संगठन पर पकड़ भी कमजोर हो चुकी है। इस कमजोरी का फायदा उठाकर कई लोग अलग-अलग स्तर पर पार्टी की जड़ें खोदने में लगे हैं। वे मौका पड़ने पर नेतृत्व को आँखें भी दिखाते हैं।
4. RSS का स्लीपर सेल: कांग्रेस में नया खतरा
पार्टी में एक समूह ऐसा भी है, जो RSS के स्लीपर सेल के रूप में सक्रिय है। इस समूह का काम करने का तरीका अन्य स्लीपर सेलों से अलग है। यह जाहिर तौर पर खुद को धर्मनिरपेक्ष और गांधी परिवार का वफादार दिखाता है, लेकिन इसका मुख्य लक्ष्य कांग्रेस की जड़ें खोदना है। यह RSS के स्लीपर सेल का एक अभिनव मॉडल है।
राहुल गांधी के भाजपा के दलालों को बाहर करने की बात कहते ही, पार्टी के कुछ कुंठित बुद्धिजीवियों ने उत्तर प्रदेश और बिहार में इंडिया गठबंधन को तोड़ने और भाजपा की राह आसान करने के लिए एक अभियान शुरू कर दिया। इस अभियान में वे 50 साल पुराने आपातकाल का औचित्य साबित करने की कोशिश कर रहे हैं।
5. आपातकाल का महिमामंडन: कांग्रेस के खिलाफ साजिश
सब जानते हैं कि आपातकाल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपा के इको सिस्टम का पसंदीदा मुद्दा है, जिसके सहारे वे कांग्रेस पर हमला करते हैं। ऐसे में कांग्रेस के मंच से आपातकाल का औचित्य साबित करने का अभियान शुरू करना भाजपा को ही लाभ पहुँचाएगा।
1975 में जनविरोधी नीतियों के खिलाफ आंदोलन को कुचलने के लिए आपातकाल थोपने वाली तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने 1980 में सत्ता में वापसी के बाद इसे अपनी गलती माना था। उन्होंने आपातकाल की ज्यादतियों के लिए खेद भी जताया था। बाद में कांग्रेस के तीन अन्य प्रधानमंत्रियों और 22 साल तक अध्यक्ष रहीं सोनिया गांधी ने भी इसे गलत माना। लेकिन पार्टी में रातोंरात उभरे आपातकाल के नए समर्थक नेहरू भक्ति का चोला ओढ़कर आपातकाल का महिमामंडन शुरू कर दिया।
6. साजिश का मकसद: जेपी और लोहिया को बदनाम करना
पिछले 10 सालों में RSS और उसके समर्थकों ने गांधी और नेहरू का चरित्र हनन किया। अब वे जयप्रकाश नारायण (जेपी) और डॉ. राममनोहर लोहिया को बदनाम नहीं करना चाहते। इसलिए यह जिम्मा आपातकाल के इन नए समर्थकों को सौंपा गया। ये लोग जेपी और लोहिया को बिना सबूत के CIA का एजेंट, देशद्रोही और इजरायल का समर्थक बता रहे हैं।
इनके पास यह जवाब नहीं है कि 1984 में दो सीटों पर सिमटने के बाद भाजपा को ताकत देने के लिए कौन जिम्मेदार है? शाहबानो मामले, अयोध्या का ताला खुलवाना और मंडल आयोग का विरोध जैसे आत्मघाती फैसलों के लिए क्या जेपी और लोहिया जिम्मेदार थे?
7. कुंठित मंडली: व्यक्तिगत स्वार्थ और साजिश
यह मंडली पिछले वर्षों में कांग्रेस में अपनी मनचाही सफलता नहीं पा सकी। पिछले लोकसभा चुनाव से पहले इस समूह की राहुल गांधी से मुलाकात हुई थी। बताया जाता है कि कुछ ने राज्यसभा में जाने की इच्छा जताई, कुछ ने लोकसभा का टिकट माँगा, लेकिन राहुल ने इनकी असलियत जानकर इन्हें खाली हाथ लौटा दिया।
इन लोगों की सामाजिक पृष्ठभूमि एकसमान है। मैदानी आंदोलनों से इनका कोई नाता नहीं रहा, इसलिए ये मौजूदा अघोषित आपातकाल पर चुप रहते हैं और पुराने आपातकाल का औचित्य साबित कर मौजूदा हालात को सही ठहराते हैं। सामाजिक न्याय के मुद्दों जैसे जाति जनगणना और आरक्षण से भी ये असहज हैं।
निष्कर्ष: राहुल गांधी के सामने बड़ी चुनौती
राहुल गांधी को अब तय करना होगा कि वे कांग्रेस में घुसे इन "नागपुरी फिदायीन हमलावरों" की चुनौती से कैसे निपटते हैं। राहुल ही एकमात्र ऐसे नेता हैं, जो RSS-भाजपा की विभाजनकारी सोच को साहस के साथ चुनौती दे रहे हैं। लेकिन अगर उन्होंने पार्टी में छिपे इन फिदायीन हमलावरों की हरकतों को अनदेखा किया, तो ये लोग कांग्रेस का वही हाल करेंगे, जैसा लिट्टे ने श्रीपेरुम्बुदूर में राजीव गांधी का किया था।
लेखक: अनिल जैन