नेहरू और लोहिया: सहमति और असहमति का अनोखा रिश्ता

परिचय: एक जटिल रिश्ते की सच्चाई

जवाहरलाल नेहरू और राममनोहर लोहिया को अक्सर एक-दूसरे के कट्टर विरोधी के रूप में देखा जाता है, लेकिन यह पूरी तरह सच्चाई नहीं है। दोनों के बीच वैचारिक सहमति और असहमति का एक जटिल रिश्ता था। यह लेख उनके संबंधों की गहराई को उजागर करता है, जिसमें साझा विचारधारा, राजनीतिक टकराव, और आपसी सम्मान की झलक मिलती है।

कांग्रेस में टकराव: बंबई चुनाव और वैचारिक मतभेद

कांग्रेस के संदर्भ में यह याद रखना जरूरी है कि आचार्य नरेन्द्र देव और राममनोहर लोहिया दोनों कांग्रेस छोड़ना नहीं चाहते थे। लेकिन बंबई नगरपालिका चुनाव में अशोक मेहता के नेतृत्व में हुई अनबन ने कांग्रेस से टकराव को बढ़ावा दिया। यह टकराव वैचारिक मतभेदों से अधिक संगठनात्मक असहमति का परिणाम था।

हालांकि, कांग्रेस से अलग होने के बावजूद, नेहरू और लोहिया के बीच एक गहरा सम्मान बरकरार रहा। जब राममनोहर लोहिया गिरफ्तार हुए, तब 13 जून से 9 जुलाई तक नेहरू और सरदार वल्लभभाई पटेल के बीच हुए पत्र-व्यवहार से यह स्पष्ट होता है कि नेहरू चाहते थे कि लोहिया को रिहा कर दिया जाए। उनके सचिव मथाई भी लोहिया से मिलने गए थे। नेहरू यहीं नहीं रुके; उन्होंने यह भी कहा कि उनकी बेटी इंदिरा भी लोहिया से मिलने जाने वाली थी। साथ ही, उन्होंने सरदार पटेल को उलाहना देते हुए कहा कि यह टकराव टाला जा सकता था।

नेहरू का स्नेह: सोशलिस्ट नेताओं के प्रति लगाव

नेहरू का लोहिया के प्रति प्रेम इसलिए भी बरकरार था, क्योंकि वे लोहिया, जयप्रकाश नारायण, आचार्य नरेन्द्र देव, और जे.बी. कृपलानी की वैचारिकी के करीब थे। राममनोहर लोहिया और तारकेश्वरी सिन्हा की बातचीत में यह साफ हुआ कि नेहरू लोहिया, आचार्य नरेन्द्र देव, और जयप्रकाश को अपने साथ लेना चाहते थे।

लोहिया ने इस बातचीत में बताया कि जब वे इलाहाबाद के आनंद भवन में कांग्रेस के विदेश-प्रकोष्ठ के संयोजक थे, तब नेहरू उनके "महबूब रहनुमा" थे। कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी के गठन के दौरान मीनू मसानी और नेहरू के पत्र-व्यवहार से पता चलता है कि नेहरू उस समय सोशलिस्टों से काफी सहमत थे। उन्होंने सोशलिस्टों को इस संदर्भ में काफी मदद भी की थी, क्योंकि उनकी वैचारिकी सोशलिस्टों से मिलती-जुलती थी।

गुट-निरपेक्षता: नेहरू और लोहिया की साझा सोच

जब लोहिया कांग्रेस के विदेश-प्रकोष्ठ के संयोजक थे, तब उन्होंने गुट-निरपेक्षता का सिद्धांत निरूपित किया था। नेहरू की सरकार ने इसे परराष्ट्र नीति में अपनाते हुए शांतिपूर्ण सहजीवन और गुट-निरपेक्षता पर अमल किया। इस संदर्भ में दोनों की सोच में गहरी समानता थी।

आपसी सम्मान: व्यक्ति विशेष के रूप में पसंद

राममनोहर लोहिया को जवाहरलाल नेहरू व्यक्ति विशेष के तौर पर बहुत पसंद थे, और यही स्थिति नेहरू की भी थी। 1955 में नेहरू कांग्रेस के दक्षिणपंथियों और वामपंथियों के बीच संतुलन बनाते-बनाते काफी गुस्सा हो गए थे। उस समय सोशलिस्टों में भी नेहरू के साथ जाने को लेकर सहमति और असहमति की बहस छिड़ी थी।

लोहिया की नजर में नेहरू का कद

जयप्रकाश नारायण को राममनोहर लोहिया एक विकल्प के तौर पर देखते थे, क्योंकि वे खुद कभी प्रधानमंत्री बनने की चाहत नहीं रखते थे। उस दौर में लोहिया जयप्रकाश को छोड़कर किसी को भी जवाहरलाल नेहरू के कंधे के बराबर नहीं समझते थे। यह लोहिया के नेहरू के प्रति गहरे सम्मान को दर्शाता है।

निष्कर्ष: एक रिश्ते की गहराई

नेहरू और लोहिया का रिश्ता विरोध से अधिक सहमति और आपसी सम्मान का था। दोनों की वैचारिकी में समानता थी, खासकर समाजवाद और गुट-निरपेक्षता जैसे मुद्दों पर। भले ही राजनीतिक परिस्थितियों ने उन्हें अलग कर दिया, लेकिन दोनों ने एक-दूसरे के प्रति व्यक्तिगत सम्मान को कभी कम नहीं होने दिया। यह रिश्ता हमें सिखाता है कि वैचारिक मतभेद के बावजूद आपसी समझ और सम्मान कैसे बनाए रखा जा सकता है।

Author - अमित शाश्वत

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