परिचय: गांधी और मोदी में दूरदृष्टि का अंतर
महात्मा गांधी और नरेंद्र मोदी के बीच सिर्फ एक समानता है—दोनों गुजराती हैं। लेकिन दोनों के बीच जो खाई है, वह दूरदृष्टि की है। यही अंतर है, जिसकी वजह से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का नेहरू-पटेल या नेहरू-बोस वाला एजेंडा फेल हो रहा है। यह लेख बताता है कि कैसे ऐतिहासिक दस्तावेज और तथ्य मोदी के नेहरू विरोधी प्रचार को नाकाम कर रहे हैं।
गांधी की दूरदृष्टि: कांग्रेस को जनता का मंच बनाना
जब महात्मा गांधी 1915 में भारत आए, तब कांग्रेस राजा-रजवाड़ों का क्लब थी, जहाँ शाम को लोग एकत्र होकर चर्चाएँ और गपशप करते थे। 1857 की क्रांति के बाद अंग्रेजों ने इसे रजवाड़ों में पनप रहे असंतोष को जानने के लिए बनाया था। गांधी ने सबसे पहले यहीं बदलाव किया। उन्होंने कांग्रेस को रजवाड़ों के क्लब से आम आदमी की आवाज बुलंद करने का मंच बनाया और इसे अंग्रेजों के खिलाफ हथियार के रूप में इस्तेमाल किया।
अंग्रेजों का प्रचार और गांधी की रणनीति
अंग्रेजों की खिलाफत शुरू होने के बाद, उनके द्वारा फैलाए गए प्रचार को गांधी अच्छी तरह समझते थे। कांग्रेस और इसके नेताओं को जनता की नजर में गिराने के लिए अंग्रेज किसी भी हद तक जा सकते थे। सुभाष चंद्र बोस ने आजाद हिंद रेडियो पर अपने भाषण में कहा था कि अंग्रेजों के चापलूस उनके खिलाफ प्रचार फैला रहे हैं।
इसलिए गांधी ने कांग्रेस में एक नई परंपरा शुरू की—लिखित दस्तावेज की। हर मुद्दे पर पत्राचार के माध्यम से चर्चा करना और बैठकों की कार्यवाही लिखना। वे जानते थे कि उनके बाद ये दस्तावेज उनकी गवाही देंगे।
ऐतिहासिक दस्तावेज: नेहरू विरोधी एजेंडे की काट
यही दस्तावेज आज प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और RSS के नेहरू विरोधी एजेंडे को नाकाम कर रहे हैं। सोशल मीडिया से बने PM मोदी के नेहरू विरोधी हर एजेंडे को अब सोशल मीडिया पर ही खंडन किया जा रहा है। कलेक्टेड वर्क ऑफ गांधी, कलेक्टेड वर्क ऑफ पटेल, कलेक्टेड वर्क ऑफ नेहरू, और कलेक्टेड वर्क ऑफ बोस में ये पत्र चरणबद्ध रूप से संकलित हैं। ये अंग्रेजी में हैं, और राइट विंग के अनुयायी इन्हें पढ़ने में अक्सर असमर्थ रहते हैं। इन्हीं दस्तावेजों में नेहरू पर लगाए गए हर आरोप का जवाब मिलता है।
कश्मीर पर तथ्य: पटेल और नेहरू के पत्र
PM मोदी के बार-बार लगाए जाने वाले आरोपों का जवाब पटेल द्वारा 4 जून 1948 को आयंगर जी को लिखे पत्र में मिलता है, जो शायद मोदी के स्क्रिप्ट राइटर उनसे छिपाते रहे होंगे। इस पत्र में पटेल लिखते हैं कि भारतीय सेना की स्थिति अच्छी नहीं है, हथियार भी पर्याप्त नहीं हैं, इसलिए कश्मीर में सेना को लेकर पुनर्विचार की जरूरत है।
दूसरा पत्र नेहरू का है, जो उन्होंने 1948 में भारतीय सेना के तत्कालीन सेकंड कमांडर-इन-चीफ बुचर को लिखा था। इसमें नेहरू लिखते हैं कि UN के हस्तक्षेप से पहले कश्मीर में जितना अंदर जा सकते हैं, जाएं। लेकिन मोदी सरकार ने इस पत्र को RTI में देने से मना कर दिया, और इसकी सुनवाई केंद्रीय सूचना आयोग में चल रही है।
निष्कर्ष: दस्तावेजों की ताकत
महात्मा गांधी की दूरदृष्टि ने जो लिखित परंपरा शुरू की, वही आज नेहरू की सच्चाई को सामने ला रही है। PM मोदी का नेहरू विरोधी एजेंडा इन ऐतिहासिक दस्तावेजों के सामने टिक नहीं पा रहा। ये दस्तावेज साबित करते हैं कि नेहरू और उनके समकालीन नेताओं ने देश के लिए क्या किया, और प्रचार की सच्चाई क्या है।
परीक्षित मिश्रा