इब्राहिम ट्रोरे का चर्चित भाषण: अफ्रीका की सच्चाई और भारत के लिए सबक

परिचय: इब्राहिम ट्रोरे कौन हैं?

इब्राहिम ट्रोरे (फ्रेंच उच्चारण: [ibʁaim tʁaɔʁe]; जन्म 14 मार्च 1988) एक बुर्किनाबे सैन्य अधिकारी और पूर्व सैनिक हैं, जिन्होंने 2022 से बुर्किना फासो के अंतरिम राष्ट्रपति के रूप में कार्य किया। उनका एक हालिया भाषण वैश्विक स्तर पर चर्चा में है, जिसमें उन्होंने पश्चिमी मीडिया और नव-उपनिवेशवाद पर तीखा हमला बोला। इस लेख में उनके भाषण का अंश प्रस्तुत किया गया है, साथ ही भारत के दृष्टिकोण से इसकी प्रासंगिकता पर विचार किया गया है।

इब्राहिम ट्रोरे का भाषण: पश्चिमी मीडिया पर हमला

इब्राहिम ट्रोरे ने अपने भाषण में CNN, BBC, France 24 जैसे पश्चिमी मीडिया हाउस को आड़े हाथों लिया। उन्होंने कहा:

मैं तुम सबको देख रहा हूँ। मैं तुम्हारा हर झूठ रिकॉर्ड कर रहा हूँ। मैं तुम्हारी हर तोड़-मरोड़कर बताई गई बातों को संग्रहित कर रहा हूँ। मैं इब्राहिम ट्रोरे हूँ और आज मैं तुम्हारे नकाब उतार रहा हूँ।
हाँ, तुमने सही सुना। मैं, जिसे तुम एक नौजवान सैनिक शासक कहते हो, जिसे तुम एक खतरनाक उग्रपंथी कहते हो, जिसे तुम पश्चिम-विरोधी तानाशाह बताते हो, आज मैं तुम्हें सच्चाई बता रहा हूँ।
और इस बार तुम माइक बंद नहीं कर सकते। इस बार तुम अपने कैमरे नहीं हटा सकते। इस बार तुम्हारे संपादक इस भाषण को काट नहीं सकते क्योंकि वो दुनिया अब नहीं रही जिस पर तुम्हारा एकाधिकार था।
अब करोड़ों लोग ये बातें सुनेंगे, बिना तुम्हारे फ़िल्टर से गुज़रे, बिना तुम्हारे झूठों में लिपटी, बिना तुम्हारी गंदगी में सनी।

ट्रोरे ने आरोप लगाया कि पश्चिमी मीडिया ने अफ्रीका को हमेशा भूख, युद्ध, बीमारी, और अराजकता की छवि में पेश किया। उन्होंने कहा:

मैं 34 साल का हूँ। मैंने अपनी ज़िंदगी के हर दिन तुम्हारे झूठों में बिताए। बचपन में, मैं टीवी पर अफ़्रीका देखा करता था—हमेशा वही तस्वीरें—मक्खियों से घिरे बच्चे, सूखी ज़मीनें, हथियार, मौत। यही है अफ़्रीका, उन्होंने हमें बताया।
हमें खुद पर शर्म आने लगी। हमें अपनी धरती से, अपने लोगों से शर्म आने लगी। लेकिन फिर मैं बड़ा हुआ। मैंने पढ़ा, रिसर्च किया, सवाल किए—और मुझे समझ आया कि जो अफ़्रीका तुमने हमें दिखाया, वो असली नहीं था।
जो कहानी तुमने हमें सुनाई, वो एक झूठ थी। जो किस्मत तुमने हमारे लिए तय की, वो एक स्क्रिप्ट थी जो तुमने सालों पहले लिखी थी।

अफ्रीका की सच्चाई: संसाधनों की लूट

ट्रोरे ने आंकड़ों के साथ बताया कि अफ्रीका की प्राकृतिक संपदा को कैसे लूटा गया:

  • दुनिया का 70% कोबाल्ट अफ्रीका के पास है—तुम्हारे फोन, लैपटॉप, इलेक्ट्रिक कार इसके बिना नहीं चलेंगे—ये कोबाल्ट कांगो से आता है, लेकिन वहाँ के लोग मोबाइल नहीं खरीद सकते।
  • दुनिया का 90% प्लैटिनम अफ्रीका से—साउथ अफ्रीका से—और वहाँ के लोग बेरोज़गारी में डूबे हैं।
  • 30% सोना—माली, बुर्किना फासो, घाना, तंज़ानिया—सोना नदियों की तरह बहता है, लेकिन लोग गरीबी में तैरते हैं।
  • 65% हीरे—बोत्सवाना, अंगोला, कांगो, सिएरा लियोन—अरबों डॉलर के हीरे निकाले जाते हैं, लेकिन मज़दूर $1 रोज़ कमाते हैं।
  • 35% यूरेनियम—नाइजर, नामीबिया, साउथ अफ्रीका—पेरिस की लाइटें हमारे यूरेनियम से जलती हैं, लेकिन हमारे गाँवों में बिजली नहीं।

उन्होंने सवाल उठाया:

अफ़्रीका को इतना अमीर होते हुए गरीब कैसे बनाए रखा गया? जवाब है—उपनिवेशवाद कभी खत्म नहीं हुआ, उसने बस रूप बदला।
पहले तुम हमारे देश पर कब्ज़ा करते थे, अब तुम कंपनियाँ खोलते हो। पहले तुम ज़बरदस्ती लेते थे, अब तुम समझौते करवाते हो। पहले तुम कोड़े से शासन करते थे, अब तुम कर्ज़ देकर।

पश्चिमी कंपनियों की लूट: तथ्य और आंकड़े

ट्रोरे ने पश्चिमी कंपनियों पर अफ्रीका की संपदा लूटने का आरोप लगाया:

  • Glenore, स्विट्ज़रलैंड की कंपनी, कोबाल्ट निकालती है कांगो से। 2022 में कमाई $256 बिलियन, टैक्स दिया कांगो को $500 मिलियन—यानी सिर्फ 0.2%। क्या यही न्याय है?
  • Rio Tinto, ब्रिटिश-ऑस्ट्रेलियन कंपनी, गिनी में बॉक्साइट निकालती है—20 मिलियन टन हर साल। गिनी को क्या मिला? प्रदूषण और कैंसर।
  • Total Energies, फ्रेंच ऑयल कंपनी—अंगोला, नाइजीरिया, कांगो में तेल निकालती है—2022 में मुनाफ़ा $36 बिलियन, लेकिन अफ़्रीका में सिर्फ गंदे पाइपलाइन।
  • Anglo American, साउथ अफ्रीका से शुरू हुई, अब लंदन में—हीरे, प्लैटिनम, लोहा सब ले लिया, और छोड़ गए 60 लाख बेरोज़गार मजदूर।

उन्होंने बताया:

हर साल $88 बिलियन अवैध रूप से अफ़्रीका से बाहर जाता है। तुम $45 बिलियन की मदद लिखते हो—पर कोई ये नहीं लिखता कि अफ़्रीका मदद पाने वाला नहीं है, देने वाला है।

पश्चिमी सिस्टम: नव-उपनिवेशवाद की रणनीति

ट्रोरे ने पश्चिमी देशों के सिस्टम को बेनकाब करते हुए कहा कि वे:

  • भ्रष्टाचार फैलाओ—नेताओं को रिश्वत दो, विदेश में अकाउंट खोलो, उनकी औलादों को अपनी यूनिवर्सिटी में भेजो।
  • सौदे करो—50, 99 साल के कॉन्ट्रैक्ट, टैक्स से छूट, पर्यावरण और मजदूर नियमों की अनदेखी।
  • इंफ्रास्ट्रक्चर पर कब्ज़ा—बंदरगाह, एयरपोर्ट, रेलवे—सिर्फ खदान से पोर्ट तक। गाँवों तक सड़क नहीं, स्कूलों में बिजली नहीं।
  • सुरक्षा दो—प्राइवेट सिक्योरिटी कंपनियाँ, हथियार दो, विरोध को आतंकी घोषित करो।
  • मीडिया को चुप कराओ—लोकल पत्रकार खरीदो, विरोधी आवाज़ें दबाओ, बाहर की मीडिया को सिर्फ अराजकता दिखाओ।

उन्होंने कहा:

ये सिस्टम 100 साल से चल रहा है। तुम इसे नहीं देखना चाहते, क्योंकि तुम खुद इसका हिस्सा हो।

भारत के दृष्टिकोण से प्रासंगिकता

ट्रोरे का भाषण भारत के लिए कई मायनों में प्रासंगिक है। भारत भी औपनिवेशिक शासन का शिकार रहा है और आज भी नव-उपनिवेशवाद का सामना करता है। भारतीय संसाधनों—जैसे कोयला, लौह अयस्क, और बॉक्साइट—का विदेशी कंपनियों द्वारा दोहन एक बड़ी समस्या है। उदाहरण के लिए, ओडिशा और छत्तीसगढ़ में खनन कंपनियाँ स्थानीय समुदायों को विस्थापित करती हैं, लेकिन उन समुदायों को इसका लाभ नहीं मिलता।

पश्चिमी मीडिया द्वारा भारत की छवि को भी अक्सर नकारात्मक रूप से पेश किया जाता है—गरीबी, अशिक्षा, और जातिगत हिंसा पर जोर देकर। ट्रोरे की तरह, भारत को भी अपनी सफलताओं—जैसे अंतरिक्ष मिशन, डिजिटल क्रांति, और स्टार्टअप इकोसिस्टम—को वैश्विक मंच पर बिना फिल्टर के पेश करने की जरूरत है।

ट्रोरे का नव-उपनिवेशवाद पर हमला भारत के लिए भी एक सबक है। भारत को अपने संसाधनों की रक्षा और आत्मनिर्भरता पर जोर देना चाहिए, ताकि वह कर्ज और समझौतों के जाल में न फंसे। साथ ही, भारत को अफ्रीका के साथ सहयोग बढ़ाना चाहिए, क्योंकि दोनों क्षेत्र साझा औपनिवेशिक इतिहास और चुनौतियों से जुड़े हैं।

निष्कर्ष: सच्चाई की जीत

इब्राहिम ट्रोरे का यह भाषण एक साहसी कदम है, जो पश्चिमी मीडिया और नव-उपनिवेशवाद की पोल खोलता है। यह न केवल अफ्रीका, बल्कि भारत जैसे देशों के लिए भी प्रेरणा है कि वे अपनी कहानी खुद लिखें और अपनी संपदा की रक्षा करें।

Author - Swapnesh Soni

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