परिचय: प्रोपगंडा बनाम ऐतिहासिक सत्य
आरएसएस और बीजेपी प्राचीन काल की घटनाओं के लिए अपने प्रोपगंडा को खाद-पानी दे सकती हैं, लेकिन आधुनिक भारत की घटनाओं पर उनका प्रोपगंडा दम तोड़ देता है। हाल ही में राहुल गांधी और सुप्रिया श्रीनेत की एक पोस्ट पर आरएसएस समर्थकों ने महात्मा गांधी की हत्या को लेकर एक नया नैरेटिव पेश किया। लेकिन यह नैरेटिव सरदार पटेल के दस्तावेजों और उनके सचिव वी.पी. मेनन की किताब Transfer of Power के सामने फेल हो गया। यह लेख उस नैरेटिव की सच्चाई और ऐतिहासिक तथ्यों को सामने लाता है।
राहुल गांधी की टिप्पणी और सुप्रिया श्रीनेत की पोस्ट
हाल ही में राहुल गांधी ने मध्य प्रदेश में कांग्रेस संगठन सृजन अभियान की शुरुआत की। इस दौरान कार्यकर्ताओं को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा कि ट्रंप के एक फोन के बाद पाकिस्तान के खिलाफ कार्रवाई में नरेंद्र मोदी “सरेंडर” हो गए। कांग्रेस की राष्ट्रीय प्रवक्ता सुप्रिया श्रीनेत ने अपने एक्स हैंडल पर यही दो शब्द पोस्ट किए: “नरेंद्र सरेंडर”।
जैसा कि स्वाभाविक था, इस पोस्ट पर पक्ष-विपक्ष में कई कमेंट आए। इनमें से एक कमेंट महatma गांधी की हत्या को लेकर था, जो ध्यान आकर्षित करने वाला था।
गांधी हत्या का नया नैरेटिव: कॉरिडोर की कहानी
बीजेपी, आरएसएस, और अन्य हिंदू प्रतिक्रियावादी संगठनों के कार्यकर्ताओं ने पहले यह नैरेटिव फैलाया था कि गांधी ने पाकिस्तान को 5 करोड़ रुपये देने की जिद की, जिसके लिए वे उपवास कर रहे थे, और इसी कारण उनकी हत्या हुई। यह नैरेटिव फेल हो गया।
सुप्रिया श्रीनेत की पोस्ट पर एक हिंदू दक्षिणपंथी हैंडल ने नया मुद्दा उठाया। पोस्ट के अनुसार:
- जिन्ना पूर्वी और पश्चिमी पाकिस्तान को जोड़ने के लिए भारत के बीच से एक कॉरिडोर चाहते थे।
- महात्मा गांधी पाकिस्तान के सबसे बड़े लॉबिस्ट थे और इसके लिए आसानी से तैयार हो गए।
- गांधी ने इसके लिए पाकिस्तान की यात्रा भी प्रस्तावित की थी।
- आरएसएस को चिंता थी कि इससे भारत दो हिस्सों में बंट जाएगा, इसलिए नाथूराम गोडसे ने गांधी की हत्या की।
पोस्ट में यह भी जोड़ा गया कि “हमें यह इतिहास में पढ़ाया नहीं गया।” रिवर्स इमेज सर्च से पता चला कि यह नैरेटिव 2018 से सोशल मीडिया पर वायरल है। इतने सालों से आरएसएस और बीजेपी नेताओं ने इसका खंडन नहीं किया, लेकिन सरदार पटेल पहले ही इस नैरेटिव को ध्वस्त कर चुके थे।
वी.पी. मेनन की किताब: ऐतिहासिक तथ्य
सरदार पटेल के निजी सचिव वी.पी. मेनन ने दो किताबें लिखीं: Integration of the Indian States और Transfer of Power। Transfer of Power के प्रीफेस में मेनन लिखते हैं कि सरदार पटेल की इच्छा थी कि वे भारत की आजादी से लेकर एकीकरण तक की घटनाओं को दो हिस्सों में लिखें। किताब में जो कुछ भी है, वह पटेल के दस्तावेजों, उनकी दी हुई जानकारियों, या मेनन के सचिव के रूप में अनुभवों पर आधारित है।
Transfer of Power के 16वें अध्याय “Acceptance of Plan” में 3 जून 1947 के प्लान की भारत में स्वीकृति का विवरण है। इस अध्याय के पहले ही पैराग्राफ में मेनन लिखते हैं:
लॉर्ड माउंटबेटन के इंग्लैंड में न होने के कारण एक नई जटिलता उत्पन्न हो गई थी। जिन्ना ने पश्चिमी और पूर्वी पाकिस्तान को जोड़ने के लिए एक ‘कॉरिडोर’ की मांग की। नेहरू ने इस मांग को बेतुका बताया और अन्य कांग्रेस नेताओं ने इसका कड़ा विरोध किया। इस बात पर गंभीर संदेह पैदा हो गया कि क्या जिन्ना वास्तव में कोई समझौता चाहते थे। वायसराय ने भारत लौटने पर उनके साथ इस मामले को उठाया और उन्हें इस मांग पर अड़े न रहने के लिए राजी किया।
यह पैराग्राफ आरएसएस की कथित चिंता—“भारत दो हिस्सों में बंट जाएगा”—को खारिज कर देता है। यह दिखाता है कि उस समय देश की चिंता करने के लिए नेहरू, पटेल जैसे नेता थे, और आरएसएस की चिंता की जरूरत नहीं थी।
गांधी और विभाजन: सच्चाई क्या है?
दूसरे पैराग्राफ में मेनन गांधी को विभाजन का समर्थक बताने वाले दावे की हवा निकाल देते हैं। वे लिखते हैं:
एक और बात राजनीतिक स्थिति में हलचल पैदा कर रही थी। अपनी प्रार्थना सभाओं में गांधीजी संयुक्त भारत के पक्ष में अपने विचार व्यक्त कर रहे थे और यहाँ तक कह चुके थे कि यदि आवश्यक हो तो कैबिनेट मिशन की योजना को बलपूर्वक लागू किया जाना चाहिए। लेकिन, लॉर्ड माउंटबेटन की अनुपस्थिति में वायसराय के रूप में कार्य कर रहे सर जॉन कोलविले गांधीजी की प्रार्थना सभाओं पर नजर गड़ाए रखे थे। और वो लॉर्ड माउंटबेटन को आश्वस्त करने में सक्षम थे कि गांधीजी का इरादा नई योजना को विफल करने का नहीं था।
यह पैराग्राफ साफ करता है कि गांधी संयुक्त भारत के पक्षधर थे, न कि विभाजन के समर्थक। वे हर जगह संयुक्त भारत की बात कर रहे थे।
निष्कर्ष: प्रोपगंडा की हार, सच्चाई की जीत
आरएसएस समर्थकों का यह दावा कि गांधी पाकिस्तान के लॉबिस्ट थे और कॉरिडोर के लिए तैयार थे, ऐतिहासिक तथ्यों के सामने फेल हो जाता है। पोस्ट के अंत में “हमें यह इतिहास पढ़ाया नहीं गया” कहने की बजाय बीजेपी और आरएसएस को यह डिस्क्लेमर देना चाहिए कि “हम अनपढ़ हैं और कुछ पढ़-लिख नहीं सकते।”
परीक्षित मिश्रा
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