देश का असली "टुकड़े-टुकड़े गैंग": एक ऐतिहासिक विश्लेषण

"टुकड़े-टुकड़े गैंग" का शोर और सच्चाई

जब भी देश के संविधान, उसकी लोकतांत्रिक परंपराओं और सामाजिक न्याय की बात होती है, कुछ तथाकथित देशभक्त "टुकड़े-टुकड़े गैंग" का शोर मचाने लगते हैं। लेकिन यदि इतिहास के पन्नों को पलटकर देखें, तो साफ हो जाता है कि इस देश को सबसे पहले "टुकड़े-टुकड़े" करने का विचार राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस), सावरकर और हिंदू महासभा की विचारधारा से ही जन्मा था।

1. विभाजन का बीज: हिंदू महासभा और सावरकर की भूमिका

सच्चाई यह है कि हिंदू महासभा और मुस्लिम लीग दोनों ही अंग्रेजों की "फूट डालो और राज करो" नीति के सबसे वफादार औजार थे। दोनों की स्थापना में अंग्रेजों का हाथ था और दोनों को अंग्रेजों द्वारा ही वित्तीय सहायता मिलती थी।
सावरकर ने 1937 में अखिल भारतीय हिंदू महासभा के अधिवेशन में "दो राष्ट्र सिद्धांत" की वकालत की—जिन्ना से पूरे सात साल पहले। जी हाँ, सात साल पहले! श्यामा प्रसाद मुखर्जी की अगुवाई में हिंदू महासभा ने मुस्लिम लीग के साथ मिलकर सिंध, बंगाल और उत्तर-पश्चिम सीमांत प्रांत (NWFP) में साझा सरकारें बनाईं। यहीं से देश के विभाजन की नींव पड़ी।
जब कांग्रेस "भारत छोड़ो आंदोलन" के माध्यम से स्वतंत्रता की लड़ाई लड़ रही थी, तब संघ और हिंदू महासभा अंग्रेजों का सहयोग कर रहे थे। आरएसएस के स्वयंसेवकों ने स्वतंत्रता आंदोलन में कभी हिस्सा नहीं लिया। बल्कि, उन्होंने आज़ाद हिंद फौज के खिलाफ ब्रिटिश सेना में भर्ती अभियान चलाया।

2. स्वतंत्रता के बाद: तिरंगे और संविधान से नफरत

देश आज़ाद हुआ, लेकिन संघ ने तिरंगे को अपनाने से इनकार कर दिया। 1950 के दशक तक संघ के कार्यालयों पर तिरंगा नहीं फहराया गया।
जब बाबा साहब डॉ. भीमराव अंबेडकर ने भारत का संविधान रचा, तो संघ के विचारकों ने इसे "विदेशी" और "ख्रीस्तानी प्रभाव वाला" कहकर इसका विरोध किया और इसे जलाया। संघ और जनसंघ ने संविधान दिवस नहीं मनाया। इसके बजाय, वे बार-बार मनुस्मृति की ओर लौटने की वकालत करते रहे।

3. सत्ता में आने के बाद: "देशद्रोही सरकार" की करतूतें

वर्तमान सरकार पूंजीपतियों की कठपुतली बनकर रह गई है:

  • 25 लाख करोड़ रुपये के कॉरपोरेट लोन माफ किए गए, लेकिन किसानों के लिए केवल आँसू बहाए गए।
  • राफेल, नोटबंदी, पीएम केयर फंड और इलेक्टोरल बॉन्ड जैसे घोटालों में पारदर्शिता का अभाव है।
  • सरकारी संपत्तियों को औने-पौने दामों पर बेचकर देश को गिरवी रखने की साज़िश रची जा रही है।
  • आरक्षण को खत्म करने का षड्यंत्र चल रहा है। NEET जैसे माध्यमों से वंचित वर्गों को शिक्षा और नौकरियों से वंचित किया जा रहा है।

4. मुसलमानों को अपमानित करने वाले खुद विभाजन के दोषी

जब कोई मुसलमानों से कहता है—"यह तुम्हारे बाप का हिंदुस्तान नहीं"—तो इतिहास चीखकर जवाब देता है—"हाँ, यह उनके बाप का ही हिंदुस्तान है!" क्यों?
क्योंकि जब बंटवारे की आग भड़की, जब जिन्ना पाकिस्तान के लिए लड़ रहे थे, तब भारत के करोड़ों मुसलमानों ने गांधी और नेहरू पर भरोसा किया, न कि हिंदू महासभा और संघ की नफरत की राजनीति पर।
देश का विभाजन धर्म के आधार पर नहीं, बल्कि सत्ता की सौदेबाज़ी और अंग्रेजों की "फूट डालो राज करो" नीति का नतीजा था। मुस्लिम लीग और हिंदू महासभा—दोनों अंग्रेजों के मोहरे थे। सावरकर ने 1937 में "दो राष्ट्र सिद्धांत" दिया, जबकि जिन्ना ने 1940 में इस पर हस्ताक्षर किए। मतलब, भारत को तोड़ने का बीज पहले संघी विचारधारा में ही पड़ा।
आज भी वही विचारधारा मुसलमानों को पराया बताती है। लेकिन सच्चाई यह है—जो मुसलमान जिन्ना को छोड़कर गांधी के साथ खड़े हुए, जो आज़ाद भारत के निर्माण में साझेदार बने, जिन्होंने अपने खून, मेहनत और विश्वास से इस देश को सींचा—उनसे बड़ा भारतीय कोई नहीं।
ये उनका भी देश है, उनके बाप का भी देश है, उनके बच्चों का देश है। आज वही ताकतें फिर से मुसलमानों, दलितों, आदिवासियों और गरीबों के खिलाफ घृणा की राजनीति कर रही हैं।

5. "सनातन देशद्रोह": एक ऐतिहासिक सच्चाई

ये वही संगठन हैं जो आज देशभक्ति का सर्टिफिकेट बाँटते हैं, जबकि उनका अतीत अंग्रेजों की चाटुकारिता में बीता।

  • सावरकर ने अंग्रेजों से माफीनामे लिखे।
  • आरएसएस ने आजादी की लड़ाई में भाग नहीं लिया।
  • तिरंगे का अपमान किया, संविधान को नकारा।
  • गांधी की हत्या की।
    जब पूरा देश "भारत छोड़ो आंदोलन" में जेल जा रहा था, तब संघ के लोग अंग्रेजों की गोद में बैठकर "भारत तोड़ो अभियान" चला रहे थे।
    क्या तिरंगा और संविधान जलाने वाला देशभक्त हो सकता है? क्या गांधी का हत्यारा देशभक्त हो सकता है?
    तो सवाल उठता है: देश का असली "टुकड़े-टुकड़े गैंग" कौन है?
  • वे जो संविधान को मानते हैं, समानता की बात करते हैं, या
  • वे जो आरक्षण खत्म करना चाहते हैं, नफरत फैलाते हैं, और संविधान को जलाते हैं?
    टुकड़े-टुकड़े गैंग की सच्चाई यह है—संघ और सावरकर ने सबसे पहले पाकिस्तान का विचार दिया। संघ ने मुस्लिम लीग के पाकिस्तान प्रस्ताव का समर्थन किया। संघ ने मुस्लिम लीग के साथ गठबंधन किया और जिन्ना के साथ सरकार बनाई। उन्हीं तीन राज्यों (सिंध, बंगाल, NWFP) में दंगे हुए और इन्हीं राज्यों के हिस्से टूटकर पाकिस्तान बने। इसलिए, संघ ही असली "टुकड़े-टुकड़े गैंग" है।
    अंग्रेजों ने अपनी सेवाओं से प्रसन्न होकर मुस्लिम लीग को पाकिस्तान दे दिया, जो उसका वास्तविक पारितोषिक था। उसी तरह की उम्मीद सावरकर और गोलवलकर की भी थी। लेकिन सारा भारत स्वतंत्रता सेनानियों के साथ था। सावरकर और गोलवलकर की इच्छा पूरी नहीं हुई और देश की बागडोर कांग्रेस को मिली। ये दोनों हाथ मलते रह गए।
    पीड़ा इतनी थी कि इन्होंने अनुरोध किया कि भारत को नेपाल के राजा के अधीन कर दिया जाए। उन दिनों शाखाओं में नेपाल के राजा की जयकार करना आम बात थी। तमाम तिकड़मों के बाद भी सत्ता न मिली, तो बदले में इन खूनी भेड़ियों ने बूढ़े गांधी को ही मार डाला।

6. "देशद्रोही सरकार": राष्ट्रीय संपत्ति का सौदा

वर्तमान सरकार राष्ट्रीय संपत्ति—जिसके लाभ से देश का विकास होता था—को बहुत कम दामों में निजी हाथों में बेचकर देशद्रोह का काम कर रही है। निजीकरण के जरिए षड्यंत्रपूर्वक आरक्षण खत्म किया जा रहा है। राफेल, पेगासस, पनामा, पीएम केयर फंड, नोटबंदी और इलेक्टोरल बॉन्ड जैसे मामले दुनिया के सबसे बड़े घोटालों में से हैं।
पूंजीपतियों के लोन माफ करने वाली यह सरकार किसानों के ऋण माफ नहीं कर रही। झूठ और जुमलेबाजी की यह सरकार, गिरोहबंद पूंजीपतियों—अदानी और अंबानी—की कठपुतली बन चुकी है। यह सरकार संघ के षड्यंत्रों और मनुवाद को लागू करने में लगी है। इसलिए, यह एक देशद्रोही सरकार है।

निष्कर्ष: संविधान और लोकतंत्र की रक्षा का आह्वान

अब समय आ गया है कि हम:

  • संविधान की रक्षा करें।
  • लोकतंत्र की पुनर्स्थापना करें।
  • सांप्रदायिक नफरत के खिलाफ आवाज़ उठाएं।
    इन नफरती ताकतों को राजनीति से लेकर अपने आसपास पहचानें। यही हैं वे धूर्त "सनातन देशद्रोही" भारत के। सनातन देशद्रोही—मतलब पहले भी देशद्रोही थे, आज भी देशद्रोही हैं, और कल भी देशद्रोही रहेंगे।
    महंगाई, बेरोजगारी, सांप्रदायिक नफरत, अन्याय और भ्रष्टाचार की जंजीरों में जकड़ी मानवता त्रस्त है। भारत माता कराह रही है। मुठ्ठी भर कौवों ने सारा उपवन बाँट लिया है। लेकिन याद रखें—अनाचार तभी बढ़ता है, जब उसके प्रतिरोध की आवाज़ कमज़ोर पड़ जाती है।
    भारत आज भी अशिक्षा, अधर्म, अंधविश्वास, अज्ञान, मूर्खता और गरीबी की जकड़न से बाहर नहीं निकला। या शायद, इसे निकलने न देने का षड्यंत्र जारी है। मनुवाद, पुष्यमित्र शुंग, तुलसीदास, "बंच ऑफ थॉट्स", टुकड़े-टुकड़े गैंग की देशद्रोही सरकार, राम मंदिर—इन भेड़ियों ने भेड़ की खाल पहनकर अपनी पताका फिर से फहरा दी है।
    यह ताकतें सैकड़ों वर्षों की योजना बनाती हैं। हजारों वर्षों से कायम हैं। यह विचारधारा अनंत काल तक यहाँ अपना वर्चस्व कायम रखने का इरादा रखती है। लेकिन अब यह नशा उतरने वाला है। अनंत में अनंतकाल के लिए समा जाने वाला है।
    हिमाद्रि तुंग शृंग से भारत माता एक बार फिर अपने मानस पुत्रों को ललकार रही है—"पुत्रों, जागो, उठो, मेरे आँचल पर लगे दाग को हमेशा-हमेशा के लिए दूर कर दो!"
    देश को इस टुकड़े-टुकड़े गैंग और देशद्रोही सरकार से बचाइए। हम भारत के वे बेटे हैं, जिनकी नसों में शहीदों का लहू है, जिनके हाथों में संविधान की मशाल है। अब यह मशाल बुझने न पाए।

वंदे मातरम्। इंकलाब ज़िंदाबाद।
जय तिरंगा, जय संविधान, जय भारत।
प्रो. डॉ. राजकुमार गुप्ता, सीतामढ़ी

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