सवालों पर हमला और जवाबों की कमी
जैसे ही राहुल गांधी ने आक्रामक रुख अपनाया, वैसे ही भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) की आईटी सेल ने व्हाट्सएप और फेसबुक पर हमला बोल दिया। यह बीजेपी का पुराना तरीका है—जब जवाब नहीं होता, तो प्रत्याक्रमण करके विमर्श की दिशा बदल दी जाती है। इस रणनीति को बीजेपी ने कई बार आजमाया है।
लेखक: प्रमोद जैन पिंटू
1. जयशंकर के बयान पर सवाल: जवाब की जगह नफरत का एजेंडा
जब राहुल गांधी ने विदेश मंत्री एस. जयशंकर के बयान पर सवाल उठाए, तो बीजेपी के थिंक टैंक जवाब नहीं दे पाए। जवाब देना था भी तो क्या देते? नतीजतन, बीजेपी ने फिर वही किया जो वह हमेशा करती है—नफरत के एजेंडे को आगे बढ़ाया।
इस बार बीजेपी ने अपने षड्यंत्रकारी आईटी सेल के प्रमुख अमित मालवीय को आगे किया। मालवीय ने जो किया, वह हिंदुस्तान की राजनीति का सबसे शर्मनाक अध्याय बन गया।
राहुल गांधी, जिनकी दादी ने देश के लिए बलिदान दिया, जिनके पिता देश के लिए बम का शिकार हुए, जिनका पूरा खानदान आजादी के इतिहास में त्याग और बलिदान की कहानी कहता है, जिन्होंने विपक्ष के नेता की हैसियत से इस तथाकथित भारत-पाक युद्ध में गंभीरता और धैर्य दिखाया—उनके खिलाफ बीजेपी ने निम्न स्तर की राजनीति की। पूरे विपक्ष ने संवेदनशीलता के साथ सेना और सत्ता का समर्थन किया, लेकिन बीजेपी ने अपनी षड्यंत्रकारी औकात दिखा दी।
2. राजनीति का समय नहीं, फिर भी राजनीति
बीजेपी के लोग कहते हैं कि यह राजनीति का समय नहीं है। मान लिया कि यह राजनीति का समय नहीं है, लेकिन बीजेपी क्या कर रही है? गली-गली, गाँव-गाँव तिरंगा यात्राएँ निकाल रही है। 59 सांसदों का प्रतिनिधिमंडल विदेश भेजा जा रहा है, भारत का पक्ष रखने के नाम पर, लेकिन उसमें भी राजनीति की जा रही है।
संसद नहीं बुलाई जा रही। सही बातें नहीं बताई जा रही हैं। बीजेपी का मीडिया अनर्गल प्रचार करता है। आईटी सेल झूठ फैलाने का काम करती है। अंतरराष्ट्रीय मीडिया कुछ और कहता है, पाकिस्तान का मीडिया कुछ और। सेना बयानों से बचती है। बॉर्डर खोल दिए गए हैं, रिट्रीट सेरेमनी हो रही है। बीजेपी चुनाव की तैयारी में लगी है। उसके प्रतिनिधि सेना का अपमान कर रहे हैं। अमेरिका के राष्ट्रपति के रोज़ के बयान हिंदुस्तान को परेशान कर रहे हैं।
और बीजेपी? वह न जाने किस बाबा की तरह 500 करोड़ की गर्लफ्रेंड के बॉयफ्रेंड को पटाने में लगी है। रोम जल रहा है, और नीरो बंसी बजा रहा है!
3. धूमिल होती छवि: राष्ट्रवाद का असफल एजेंडा
देश अब समझने लगा है। बीजेपी की जो आत्ममुग्ध छवि थी, वह इस तथाकथित युद्ध के परिणामों के बाद धूमिल हो गई है। बीजेपी और उसकी सेना अब किस मनोबल की बात कर रही है?
हिंदू-मुस्लिम का एजेंडा ध्वस्त हो गया है। राष्ट्रवाद का तूफान, जिसे बीजेपी अपने राजनीतिक फायदे के लिए पैदा करना चाहती थी, वह असफल हो चुका है। राष्ट्रवाद लोगों में जागा ज़रूर है, लेकिन अब वह बीजेपी को राजनीतिक लाभ देने को तैयार नहीं है।
अगर राहुल गांधी पूछते हैं कि कितने विमान गिरे, तो इससे कौन-सा मनोबल टूट जाएगा? जो सत्य है, उसे क्या छुपाया जा सकेगा? दरअसल, कहानी यह नहीं है।
4. राफेल का भ्रष्टाचार: सच्चाई से बचने की कोशिश
राफेल का नाम आते ही ऐसा लगता है जैसे कुत्ते की पूँछ पर पाँव रख दिया गया हो। बीजेपी यह तथ्य देश से छुपाना चाहती है कि राफेल इस युद्ध में ध्वस्त हुए, जैसा कि अंतरराष्ट्रीय मीडिया दावा कर रहा है।
जैसे ही यह खबर पुष्ट हो जाएगी, एक नया विमर्श शुरू हो जाएगा—राफेल के भ्रष्टाचार का, देश की सुरक्षा के साथ खिलवाड़ का। कांग्रेस सरकार ने जो राफेल सौदा किया था, उसमें फ्रांस से तकनीक हस्तांतरण की स्वीकृति थी। लेकिन बीजेपी सरकार ने नया सौदा किया—तीन गुना ज़्यादा कीमत दी, और तकनीक हस्तांतरण भी नहीं करवाया।
यह न केवल भ्रष्टाचार का गंभीर मामला है, बल्कि देश की सुरक्षा और सैनिकों की सुरक्षा के प्रति गैर-ज़िम्मेदाराना रवैये का भी प्रमाण है।
5. जयशंकर के बयान पर विवाद: सच्चाई कौन जानता है?
सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार, जब विदेश मामलों की समिति में किसी सांसद ने जयशंकर के बयान का ज़िक्र किया, तो विदेश सचिव विपिन मिस्त्री ने कहा कि जयशंकर के बयान को गलत संदर्भ में प्रस्तुत किया गया है। उन्होंने दावा किया कि पाकिस्तान को आक्रमण के बाद सूचना दी गई थी।
लेकिन राहुल गांधी ने जो वीडियो ट्वीट किया है, उसमें जयशंकर साफ-साफ कह रहे हैं कि युद्ध शुरू होने से पहले पाकिस्तान को सूचना दी गई थी। अन्य तथ्यों की तरह, इसकी सच्चाई या तो सरकार जानती है, या सेना, या फिर भगवान!
6. आईटी सेल का आक्रामक रवैया: दाल में कुछ काला
जिस तरह बीजेपी की आईटी सेल आक्रामक हुई है, उससे एक बात साफ है—दाल में कुछ काला है। राहुल गांधी ने एक बार फिर पर्दे के पीछे बीजेपी के चेहरे को बेनकाब कर दिया है।
जैसा कि कहा गया है:
"सच्चाई छुप नहीं सकती बनावट के फूलों से, और खुशबू आ नहीं सकती झूठे उसूलों से।"
निष्कर्ष: सवालों से पलायन और गाली-गलौज की राजनीति
जब आदमी झल्लाहट में होता है, जब उसके पास तर्क नहीं होते, तो वह गाली-गलौज करता है, सामने वाले को अपमानित करता है, और पलायनवादी दृष्टिकोण अपनाता है। क्या बीजेपी की आईटी सेल के सारे कारनामे इसी किरदार के इर्द-गिर्द घूम रहे हैं? आप अपनी राय दे सकते हैं।
लेखक: प्रमोद जैन पिंटू