नेहरू का दूरदर्शी नेतृत्वऔर भारत और पाकिस्तान की प्रगति का तुलनात्मक विश्लेषण

नेहरू की नींव और भारत का उदय


भारत के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू एक दूरदर्शी नेता थे, जिन्होंने आजादी के बाद भारत को एक मजबूत, समावेशी और सेकुलर राष्ट्र के रूप में स्थापित करने की नींव रखी। 1947 में भारत और पाकिस्तान के विभाजन के समय दोनों देशों ने स्वतंत्रता प्राप्त की, लेकिन नेहरू के नेतृत्व में भारत ने एक प्रगतिशील और विविधतापूर्ण मार्ग चुना, जिसने इसे वैश्विक मंच पर एक सम्मानित राष्ट्र बनाया। दूसरी ओर, पाकिस्तान ने मोहम्मद अली जिन्ना के नेतृत्व में एक इस्लामी राष्ट्र की राह अपनाई, जिसके परिणामस्वरूप उसकी प्रगति सीमित रही।

1. नेहरू का सपना: समावेशी और सेकुलर भारत

नेहरू ने भारत को एक ऐसा राष्ट्र बनाने का सपना देखा, जहाँ सभी धर्म, संप्रदाय, विचारधाराएँ, भाषाएँ और संस्कृतियाँ समान रूप से फलें-फूलें। उन्होंने संविधान के माध्यम से भारत को एक धर्मनिरपेक्ष गणराज्य के रूप में स्थापित किया, जहाँ सभी नागरिकों को समान अधिकार और अवसर सुनिश्चित किए गए।
नेहरू का मानना था कि भारत की ताकत उसकी विविधता में निहित है। उनकी नीतियों ने शिक्षा, विज्ञान और औद्योगीकरण को बढ़ावा दिया। भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (IITs), भारतीय प्रबंधन संस्थान (IIMs) और भारी उद्योगों की स्थापना जैसे उनके कदम भारत की आर्थिक और सामाजिक प्रगति का आधार बने।

2. मिश्रित अर्थव्यवस्था और विदेश नीति: भारत की मजबूती

नेहरू का "मिश्रित अर्थव्यवस्था" मॉडल, जिसमें सार्वजनिक और निजी क्षेत्रों का संतुलन था, ने भारत को आत्मनिर्भर बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उनकी विदेश नीति, विशेष रूप से गुट-निरपेक्ष आंदोलन (NAM), ने भारत को वैश्विक मंच पर एक स्वतंत्र और सम्मानित आवाज दी। नेहरू का सेकुलर दृष्टिकोण सामाजिक समरसता को बढ़ावा देता था और यह सुनिश्चित करता था कि भारत की नीतियाँ किसी एक धर्म या विचारधारा से बंधी न रहें।

3. भारत और पाकिस्तान: स्वतंत्रता के समय आर्थिक स्थिति

1947 में स्वतंत्रता के समय, पाकिस्तान की प्रति व्यक्ति आय और जीडीपी भारत से अधिक थी। उसे ब्रिटिश शासन से उपजाऊ सिंधु घाटी, कपास और जूट जैसे संसाधनों का लाभ मिला था। उस समय पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था भारत की तुलना में अधिक समृद्ध थी, और इसे एक आशाजनक भविष्य वाला देश माना जाता था। वहीं, भारत जनसंख्या के दबाव, सामाजिक-आर्थिक असमानताओं और विभाजन की त्रासदी से जूझ रहा था।

4. पाकिस्तान का इस्लामीकरण और इसके परिणाम

पाकिस्तान ने मोहम्मद अली जिन्ना के नेतृत्व में एक इस्लामी राष्ट्र की पहचान अपनाई। हालाँकि जिन्ना ने शुरू में एक उदार इस्लामी राज्य की बात की थी, लेकिन बाद के दशकों में पाकिस्तान की नीतियाँ धार्मिक कट्टरता और सैन्य शासन की ओर झुकीं। 1970 के दशक में जुल्फिकार अली भुट्टो और जनरल जिया-उल-हक के शासन में इस्लामीकरण की प्रक्रिया तेज हुई, जिसने सामाजिक और राजनीतिक अस्थिरता को बढ़ावा दिया।
पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था धीरे-धीरे सैन्य खर्चों और विदेशी कर्ज पर निर्भर हो गई। शिक्षा, स्वास्थ्य और बुनियादी ढांचे में निवेश की कमी, साथ ही भ्रष्टाचार और आतंकवाद ने देश की प्रगति को बाधित किया। विश्व बैंक के नवीनतम आंकड़ों के अनुसार, 2024 में पाकिस्तान की जीडीपी लगभग 350 बिलियन डॉलर थी, जबकि भारत की जीडीपी 3.9 ट्रिलियन डॉलर तक पहुँच गई थी, जो भारत को क्रय शक्ति समता (PPP) के आधार पर विश्व की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनाती है।

5. भारत की प्रगति: नेहरू के दृष्टिकोण का प्रभाव

नेहरू के सेकुलर और समावेशी दृष्टिकोण ने भारत को एक स्थिर और प्रगतिशील राष्ट्र बनाने में महत्वपूर्ण योगदान दिया। 1991 के आर्थिक सुधारों ने भारत की अर्थव्यवस्था को और गति दी, लेकिन इसकी नींव नेहरू के समय में ही रखी गई थी। भारत ने सूचना प्रौद्योगिकी, अंतरिक्ष अनुसंधान (ISRO), और नवीकरणीय ऊर्जा जैसे क्षेत्रों में उल्लेखनीय प्रगति की। आज भारत न केवल आर्थिक रूप से मजबूत है, बल्कि वैश्विक मंच पर एक महत्वपूर्ण शक्ति के रूप में उभरा है।
नेहरू का जोर शिक्षा और वैज्ञानिक अनुसंधान पर था, जिसका परिणाम यह है कि भारत आज दुनिया के सबसे बड़े तकनीकी और वैज्ञानिक कार्यबल में से एक है। उनकी नीतियों ने भारत को एक ऐसी अर्थव्यवस्था बनाया, जो न केवल आत्मनिर्भर है, बल्कि वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।

नेहरू की विरासत और भारत की सफलता

नेहरू की दूरदर्शिता ने भारत को एक समावेशी, सेकुलर और प्रगतिशील राष्ट्र बनाया, जबकि पाकिस्तान की नीतियों ने उसे अस्थिरता और आर्थिक संकट की ओर धकेल दिया। आज भारत वैश्विक मंच पर एक शक्तिशाली राष्ट्र है, और इसकी नींव में नेहरू का योगदान अमूल्य है।

Author - Jaivir Singh Pal


एक टिप्पणी भेजें

और नया पुराने