भारत की अर्थव्यवस्था का संकट: अच्छे दिनों का वादा और हकीकत

कांग्रेस विरोधी लेखक की मनमोहन सिंह की प्रशंसा

लेखक: कमल झँवर


इस लेख की सबसे खास बात यह है कि मैं, एक ऐसा व्यक्ति जो कांग्रेस का घोर विरोधी रहा और जिसने कभी कांग्रेस को वोट नहीं दिया, फिर भी मनमोहन सिंह की आर्थिक नीतियों का बड़ा प्रशंसक हूँ। यह स्वीकारोक्ति इस लेख का मूल है, क्योंकि यह दर्शाता है कि सच्चाई को स्वीकार करने में कोई संकोच नहीं होना चाहिए, भले ही वह हमारे पूर्वाग्रहों के खिलाफ हो। एक अर्थशास्त्री के रूप में, मैंने मनमोहन सिंह की नीतियों को करीब से देखा और उनकी सराहना की। आइए, इस लेख में जानें कि ऐसा क्यों हुआ और आज की आर्थिक स्थिति उस समय की तुलना में कहाँ खड़ी है।

1. वैश्विक परिदृश्य: अर्थव्यवस्था का महत्व

आज पूरी दुनिया के परस्पर संबंध सेना-हथियार या धर्म आधारित नहीं, बल्कि अर्थ आधारित हो चुके हैं। सभी देशों के शासक अर्थशास्त्र से जुड़े हुए हैं, और सबसे महत्वपूर्ण मंत्रालय वित्त मंत्रालय ही बन गया है।

2. मनमोहन सिंह का युग: एक मिसाल

जब पूरी दुनिया महामंदी की मार झेल रही थी और तेल के दाम आसमान छू रहे थे, तब मनमोहन सिंह ने सीमित साधनों के बावजूद बेहतरीन अर्थव्यवस्था चलाकर एक मिसाल पेश की थी। उनकी नीतियों की पूरी दुनिया आज भी सराहना करती है। मनमोहन राज में मध्यम वर्ग का एक बड़ा तबका तेजी से उभरा। वैश्विक कंपनियाँ इस नए उपभोक्ता वर्ग को माल बेचने के लिए उत्साहित थीं। हम उस समय चीन से बराबरी करने की स्थिति में आ गए थे और यह विकास निरंतर गति से आगे बढ़ रहा था।

3. 2014 का बदलाव: बीजेपी का वादा

2014 में कांग्रेस को जनता ने इसलिए नकारा, क्योंकि बीजेपी ने छाती ठोककर दावा किया कि वे जनहितकारी और बेहतर अर्थव्यवस्था देंगे। "अच्छे दिन आएंगे" का नारा जबरदस्त हिट हुआ। विदेशी काले धन को वापस लाने, पेट्रोल-घरेलू गैस के दाम कम करने, भ्रष्टाचार खत्म करने और नए रोजगार पैदा करने का पूरा भरोसा जनता को दिलाया गया। इसी से प्रभावित होकर मैंने और मेरे पूरे परिवार ने 2014 और 2019 में बीजेपी को वोट दिया।

4. हकीकत: अच्छे दिनों का सच

लेकिन अब सवाल यह है:

  • 2014 से अब तक रोजगार बढ़े हैं या घटे हैं?
  • अर्थव्यवस्था तेजी से उभरी है या डूब चुकी है?
    नवरत्न कंपनियाँ धड़ाधड़ बेच दी गईं, फिर भी सरकार पर इतना बड़ा कर्ज हो चुका है कि मूलधन तो छोड़िए, ब्याज चुकाने के लिए भी नया कर्ज लिया जा रहा है। जून 2025 तक डॉलर के मुकाबले रुपया 84.50 के स्तर पर है, और यह जल्द ही 100 तक पहुँच सकता है। तब यह कर्ज भी डॉलर में ही चुकाना होगा।
    देश दिवालिया होने की कगार पर है, और इसका असली परिणाम अभी सामने आना बाकी है। भ्रष्टाचार पहले से कई गुना बढ़ गया है। पहले हम चीन से बराबरी कर रहे थे, अब उसके चौथाई भी नहीं रहे। क्या यही हैं अच्छे दिन?

5. भविष्य का संकट: बैंकों की हालत और अगली पीढ़ी

आने वाले समय में और "अच्छे दिन" देखने को मिलेंगे, जब नए लोन से भरे गए एनपीए (नॉन-परफॉर्मिंग एसेट्स) से कंगाल हो चुके बैंकों की डूबत सामने आएगी। इसका खामियाजा हमारी अगली पीढ़ी को भुगतना पड़ेगा।

सच्चाई को स्वीकारें, समय रहते जागें

कांग्रेस का विरोधी होने के बावजूद कमल झँवर जी ने मनमोहन सिंह की आर्थिक नीतियों की प्रशंसा की, क्योंकि एक अर्थशास्त्री के रूप में वो सच्चाई को स्वीकार करने में विश्वास रखते हैं। यह लेख आपको भी प्रेरित करता है कि आप अपने पूर्वाग्रहों को दरकिनार कर सच्चाई को देखें और स्वीकार करें।

भारत की वर्तमान आर्थिक स्थिति को जितनी जल्दी समझ लिया जाए, उतना बेहतर है। वरना भारत को दिवालिया होने से कोई नहीं बचा पाएगा।

👉इस लेख का मूल संस्करण पढने के लिए यहाँ पर क्लिक करके पढ़ सकते हैं 👈

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