राहुल गांधी में उम्मीद की किरण
आने वाले दिनों में राहुल गांधी न केवल नरेंद्र मोदी, बल्कि उस पूरी व्यवस्था और विचारधारा के लिए एक गंभीर और सशक्त चुनौती बनने जा रहे हैं, जिसने मोदी को जन्म दिया है। न सिर्फ कांग्रेस, बल्कि लोकतंत्र और बहुलवाद में विश्वास रखने वाले गैर-कांग्रेसी दल और आम जनता भी राहुल गांधी में उम्मीद की किरण देख रहे हैं। वे उनसे आगे बढ़कर संघर्ष की अपेक्षा कर रहे हैं।
1. कांग्रेस की वापसी का रास्ता: गांधी-नेहरू की राह
कांग्रेस और राहुल गांधी, दोनों को यह याद रखना होगा कि जिस रास्ते से कांग्रेस भटक गई है, उसे उसी रास्ते पर वापस लौटना होगा। गांधी और नेहरू का रास्ता ही कांग्रेस की वापसी सुनिश्चित कर सकता है। हालाँकि, एक तरफ गरीब, किसान, मजदूर और नौजवानों के बिगड़ते हालात कांग्रेस के मुख्य एजेंडे में शामिल हो गए हैं, वहीं दूसरी तरफ कॉरपोरेट जगत के भ्रष्टाचार के खिलाफ जनविरोध को मजबूत अभिव्यक्ति मिली है। लेकिन यह संघर्ष व्यापक होना चाहिए और समाज के विभिन्न समूहों को साथ जोड़ना चाहिए। इसके लिए पूरे देश में गांधीवादी तरीके से अभियान चलाना होगा।
2. राहुल की कोशिश, कांग्रेस की निष्क्रियता
राहुल गांधी ने इस आवश्यकता को समझ लिया है। इसीलिए उन्होंने पूरे देश को कदमों से नापने की कोशिश की। लेकिन समूची कांग्रेस सब कुछ राहुल पर छोड़कर अपने दरबारों में आराम फरमा रही है। यह निष्क्रियता कांग्रेस के लिए घातक हो सकती है।
3. भारतीय राजनीति का संकट: दो रास्तों का द्वंद्व
भारतीय राजनीति एक ऐसे मोड़ पर खड़ी है, जहाँ से एक रास्ता संवैधानिक संस्थाओं को कमजोर करने के बाद संविधान को निशाना बनाने की ओर बढ़ रहा है। वहीं, दूसरा रास्ता संवैधानिक संस्थाओं और लोकतांत्रिक मूल्यों की रक्षा के लिए आवाज उठा रहा है। संकट और निराशा के इस संक्रमणकालीन दौर में गांधी सबसे बड़े पथ-प्रदर्शक हैं। डॉ. राममनोहर लोहिया के "जेल (संघर्ष), वोट (जनतंत्र), और फावड़ा (रचना)" के मंत्र को अमल में लाना होगा। गांधी जी ने भी इन्हीं सिद्धांतों के जरिए नई सामाजिक, राजनीतिक और सांस्कृतिक चेतना का संचार किया था, और दमन के प्रतिकार का मार्ग सिखाया था।
4. कांग्रेस की रणनीति: अनुभवी सिपाहियों पर भरोसा
इसके लिए कांग्रेस को अपने परंपरागत और अनुभवी सिपाहियों पर भरोसा करना होगा। "युवा-युवा" की निरर्थक रट लगाकर, अपने अनुभवी और प्रतिबद्ध कार्यकर्ताओं की कीमत पर अति-महत्वाकांक्षी, अप्रतिबद्ध और अराजनैतिक लोगों पर भरोसा करना बार-बार कांग्रेस की छिछालेदर करा रहा है। राजनीति में उम्र मायने नहीं रखती। वर्तमान में अनुभवी और प्रतिबद्ध कार्यकर्ताओं की ही जरूरत है, चाहे उनकी उम्र कुछ भी हो।
RSS और BJP से मुकाबला चुनावी मैनेजरों और NGO कल्चर वाले युवाओं के भरोसे नहीं किया जा सकता। यकीन मानिए, कांग्रेस का एक अनुभवी कार्यकर्ता इन लोगों से कहीं बेहतर तरीके से भारतीय मतदाताओं के मन-मिजाज को समझता है।
गांधीवादी रास्ते पर चलने की जरूरत
राहुल गांधी में वह क्षमता है कि वे न सिर्फ मोदी, बल्कि उनकी पूरी व्यवस्था को चुनौती दे सकते हैं। लेकिन इसके लिए कांग्रेस को गांधी-नेहरू के रास्ते पर लौटना होगा और अपने अनुभवी कार्यकर्ताओं के साथ मिलकर गांधीवादी तरीके से एक व्यापक जन-आंदोलन खड़ा करना होगा। तभी लोकतंत्र और संविधान की रक्षा संभव होगी।
Author - Shivendra Srivastava
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