गांधी की हत्या: गोलवलकर की धमकी से गोडसे के षड्यंत्र तक

गांधी की हत्या का ऐतिहासिक संदर्भ

लेखक: Islam Hussain
महात्मा गांधी की हत्या भारतीय इतिहास का एक ऐसा काला अध्याय है, जिसकी जड़ें गहरे वैचारिक मतभेदों और सांप्रदायिक नफरत में छिपी हैं। मशहूर इतिहासकार रामचंद्र गुहा ने अपने लेख में इस घटना के पीछे की परतों को उजागर किया है, जिसमें RSS (राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ) की भूमिका और तत्कालीन सरसंघचालक एम.एस. गोलवलकर की धमकियों का जिक्र है। दिसंबर 1947 में गोलवलकर ने गांधी को "खामोश" करने की धमकी दी थी, और जनवरी 1948 में नाथूराम गोडसे ने उनकी हत्या कर दी।

50 दशक का पुरानी दिल्ली रेलवे स्टेशन जिसकी दूसरी मंजिल में बने गेस्ट हाउस में गांधी जी के हत्यारे टिके थे जहां से उन्होंने अपने षड़यंत्र को पूरा किया था। यह गेस्ट हाउस अभी भी है और चल रहा है।

1. रामचंद्र गुहा का विश्लेषण: गांधी और RSS के रिश्ते

रामचंद्र गुहा ने द टेलिग्राफ में प्रकाशित अपने लेख में कलेक्टेड वर्क्स ऑफ महात्मा गांधी (Collected Works of Mahatma Gandhi) के हवाले से गांधी और RSS के रिश्तों पर प्रकाश डाला है। गुहा बताते हैं कि गोलवलकर ने गांधी से मुलाकात में किसी भी दंगे या धार्मिक हिंसा में RSS की संलिप्तता से इनकार किया था। लेकिन उनकी बातें झूठी थीं।
गुहा ने सितंबर 1947 से जनवरी 1948 के बीच के घटनाक्रम का जिक्र करते हुए बताया कि दिल्ली पुलिस के दस्तावेजों के अनुसार, इस दौरान RSS ने कई बैठकें कीं, जिनमें मुसलमानों और गांधी के खिलाफ खुलकर जहर उगला गया। गोलवलकर ने इस दौरान धमकी दी कि "महात्मा गांधी जैसे लोगों को तुरंत खामोश किया जा सकता है।"

2. RSS की मुस्लिम-विरोधी सोच: गोलवलकर की धमकी

गुहा ने अपने लेख में RSS की सोच को मुस्लिम-विरोधी बताते हुए लिखा कि सितंबर 1947 से जनवरी 1948 तक RSS की नफरत गांधी के खिलाफ और तेज हो गई। इसके पीछे RSS की वह धारणा थी कि पाकिस्तान अपने यहाँ हिंदुओं और मुसलमानों के साथ कुछ भी करे, लेकिन भारत में मुसलमानों को बराबर का नागरिक नहीं बनना चाहिए।
दिसंबर 1947 के पहले सप्ताह में दिल्ली में आयोजित RSS की एक बैठक में गोलवलकर ने कहा, "पृथ्वी पर कोई भी शक्ति मुसलमानों को हिंदुस्तान में नहीं रख सकती। उन्हें यह देश छोड़ना पड़ेगा। महात्मा गांधी मुसलमानों को भारत में रखना चाहते थे, ताकि चुनाव के समय कांग्रेस को उनके वोटों से लाभ हो सके। लेकिन उस समय तक भारत में एक भी मुसलमान नहीं बचेगा। महात्मा गांधी उन्हें अब गुमराह नहीं कर सकते। हमारे पास ऐसे साधन हैं, जिनसे ऐसे लोगों को तुरंत खामोश किया जा सकता है। लेकिन यह हमारी परंपरा है कि हम हिंदुओं के लिए अयोग्य न हों। यदि हमें मजबूर किया गया, तो हमें उस काम को भी अंजाम देना पड़ेगा।"

3. गांधी का अंतिम संघर्ष और हत्या

जनवरी 1948 में गांधी ने दिल्ली में हिंदू और मुसलमानों के बीच शांति स्थापित करने के लिए उपवास शुरू किया। यह उपवास कोलकाता की तरह दिल्ली में भी सफल रहा। इसके बाद उन्होंने पाकिस्तान में रह रहे हिंदुओं और सिखों की सुरक्षा के लिए वहाँ जाने की योजना बनाई। लेकिन 30 जनवरी 1948 को उनकी हत्या कर दी गई। यह जघन्य कृत्य RSS के कथित पूर्व सदस्य नाथूराम गोडसे ने किया।
गांधी की हत्या के तुरंत बाद RSS पर प्रतिबंध लगा दिया गया, और गोलवलकर समेत इसके कई नेताओं को जेल भेज दिया गया।

4. हत्या का षड्यंत्र: पुरानी दिल्ली रेलवे स्टेशन की भूमिका

गांधी की हत्या का षड्यंत्र पुरानी दिल्ली रेलवे स्टेशन की दूसरी मंजिल पर बने एक गेस्ट हाउस में रचा गया था। 1940-50 के दशक में बने इस गेस्ट हाउस में हत्यारे ठहरे थे, और यहीं से उन्होंने अपने षड्यंत्र को अंजाम दिया। यह गेस्ट हाउस आज भी मौजूद है और संचालित हो रहा है।

गांधी की हत्या का सबक

गांधी की हत्या सिर्फ एक व्यक्ति की हत्या नहीं थी, बल्कि यह उन मूल्यों पर हमला था, जिन्हें गांधी ने जीवन भर जिया—सामाजिक समरसता, अहिंसा और बहुलवाद। गोलवलकर की धमकी से लेकर गोडसे की गोली तक, यह घटना हमें सिखाती है कि नफरत और सांप्रदायिकता का रास्ता कितना खतरनाक हो सकता है।

लेखक - Islam Hussain

संकलक - Anand Yadav Reborn

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