पारदर्शिता पर सवाल: चुनाव आयोग और सरकार की गोपनीयता की साजिश?

हरियाणा चुनाव 2024: पारदर्शिता की माँग

अक्टूबर 2024 में हुए हरियाणा विधानसभा चुनावों के बाद वकील महमूद प्राचा ने पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय में एक याचिका दायर की। उनकी माँग थी कि चुनाव प्रक्रिया में पारदर्शिता सुनिश्चित की जाए और चुनाव से संबंधित दस्तावेज सार्वजनिक किए जाएँ। 9 दिसंबर 2024 को उच्च न्यायालय ने एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाया—चुनाव आयोग को निर्देश दिया कि वह हरियाणा विधानसभा चुनाव के दौरान एक मतदान केंद्र पर पड़े वोटों से संबंधित वीडियोग्राफी, सुरक्षा कैमरे की फुटेज, और दस्तावेजों (जैसे फॉर्म 17C, भाग 1 और भाग 2) की प्रतियाँ महमूद प्राचा को छह सप्ताह के भीतर उपलब्ध कराए। यह फैसला चुनावी पारदर्शिता की दिशा में एक बड़ा कदम था, जिसने जनता को उम्मीद दी कि अब उनके सवालों के जवाब मिलेंगे।


सरकार और चुनाव आयोग की चाल: नियमों में बदलाव

लेकिन इस फैसले के कुछ ही दिनों बाद, 20 दिसंबर 2024 को केंद्र सरकार ने एक चौंकाने वाला कदम उठाया। चुनाव आयोग के परामर्श से चुनाव संचलन नियम 1961 के नियम 93(2)(ए) में बदलाव कर दिया गया। इस संशोधन के बाद चुनाव से संबंधित सभी दस्तावेज अब जनता की पहुँच से बाहर हो गए। केंद्रीय कानून और न्याय मंत्रालय ने इस परिवर्तन को अधिसूचित कर दिया, जिसके अनुसार अब न तो कोई व्यक्ति चुनावी कागजात का निरीक्षण कर सकता है, और न ही अदालतें चुनाव आयोग को जनता को ये दस्तावेज उपलब्ध कराने का निर्देश दे सकती हैं। यह बदलाव हाई कोर्ट के आदेश की अवहेलना करता हुआ प्रतीत होता है और चुनावी पारदर्शिता पर एक बड़ा सवाल खड़ा करता है।

चुनाव आयोग का रवैया: विरोध और बहाने

पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट में भी चुनाव ने महमूद प्राचा की याचिका का विरोध किया था। आयोग का तर्क था कि प्राचा अक्टूबर 2024 के हरियाणा विधानसभा चुनाव में उम्मीदवार नहीं थे, इसलिए वे चुनाव से संबंधित दस्तावेज माँगने के हकदार नहीं हैं। लेकिन प्राचा ने तर्क दिया कि एक उम्मीदवार को दस्तावेज निःशुल्क दिए जाने चाहिए, और किसी भी अन्य व्यक्ति को निर्धारित शुल्क पर। इस तर्क को स्वीकार करते हुए कोर्ट ने आयोग को दस्तावेज उपलब्ध कराने का निर्देश दिया था। लेकिन आयोग ने कोर्ट के आदेश का पालन करने की बजाय, सरकार के साथ मिलकर नियम ही बदल डाले। यह कदम न केवल कोर्ट की अवमानना है, बल्कि जनता के अधिकारों का हनन भी है।

पारदर्शिता से परहेज: सवालों का पहाड़

  • चुनाव आयोग को पारदर्शिता से इतना परहेज क्यों है?
    जब हरियाणा चुनाव में पहले से ही वोटिंग प्रतिशत बढ़ने, वोटर लिस्ट से नाम हटाने, और पक्षपात के गंभीरह आरोपों ने चर्चा चुके हैं, तो ऐसे समय में पारदर्शिता को खत्म करना क्या संदेह को और गहरा नहीं करता?
  • लोकतंत्र में गोपनीयता का मतलब क्या?
    अगर जनता से ही चुनावी दस्तावेज छिपाए जाएँगे, तो लोकतंत्र का मतलब क्या रह गया? लोकतंत्र की पहली शर्त तो यह है कि जनता को अपने वोट की गिनती पर भरोसा हो।
  • आखिर चुनाव आयोग क्या छिपाना चाहता है?
    अगर सब कुछ सही है, तो दस्तावेज जनता के सामने क्यों नहीं लाए जाते?
  • चुनाव आयोग की साख का सवाल:
    जब आयोग की विश्वसनीयता पहले से ही दाँव पर है, तो ऐसे कदम उसकी साख को और मटियामेट क्यों करना?
  • राजनीतिक दलों की अनदेखी:
    क्या इस निर्णय से पहले राजनीतिक दलों से विचार-विमर्श किया गया? क्या उन्हें विश्वास में लिया गया?

चुनाव आयोग पर पहले से संदेह

चुनाव आयोग पहले से ही कई विवादों में घिरा हुआ है। हरियाणा चुनाव 2024 में वोटिंग प्रतिशत बढ़ने की शिकायतें आईं, जिसमें शाम 5:00 बजे के बाद वोटिंग आँकड़े संदिग्ध रूप से बढ़ गए। वोटर लिस्ट से नाम हटाने के आरोप भी लगे, जिसने कई मतदाताओं को उनके अधिकार से वंचित कर दिया। इसके अलावा, पक्षपात के गंभीर आरोपों ने आयोग की निष्पक्षता पर सवाल उठाए। अब इस नए नियम संशोधन ने हिंदुस्तान के स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनावों पर एक और प्रश्नचिह्न लगा दिया है।

पारदर्शिता का दमन: लोकतंत्र पर खतरा

जो गुप्त और गोपनीय रखा जाता है, वह अक्सर गलत होता है। यह कहावत आज के संदर्भ में पूरी तरह फिट बैठती है। अंग्रेजी में एक कहावत है—“Sunlight is the best disinfectant.” यानी पारदर्शिता ही सबसे बड़ा उपाय है। पारदर्शिता लोकतंत्र की पहली शर्त है, लेकिन सरकार और चुनाव आयोग इसे दबाने पर क्यों आमादा हैं? यह कदम न केवल जनता के अधिकारों का हनन है, बल्कि लोकतंत्र की बुनियाद को कमजोर करता है।

जनता की पुकार: पारदर्शिता की बहाली

चुनाव आयोग और सरकार को यह समझना होगा कि लोकतंत्र जनता का है, न कि उनकी गोपनीयता का। अगर जनता को अपने वोट की गिनती पर भरोसा नहीं होगा, तो लोकतंत्र का आधार ही हिल जाएगा। यह समय है कि चुनाव आयोग अपनी जिम्मेदारी समझे और पारदर्शिता को सुनिश्चित करे। जनता का हक है कि उसे सच पता हो—और यह हक कोई छीन नहीं सकता।

Author - Gori Shankar Agarwal

एक टिप्पणी भेजें

और नया पुराने