चुनाव आयोग पर सवाल: कांग्रेस की माँग और मारकंडी का विरोध

कांग्रेस प्रतिनिधिमंडल की मुलाकात: पारदर्शिता की माँग

3 जून 2025 को वरिष्ठ कांग्रेस नेता अभिषेक मनु सिंघवी के नेतृत्व में एक प्रतिनिधिमंडल ने चुनाव आयोग से मुलाकात की। इस प्रतिनिधिमंडल में मुकुल वासनिक, नाना पटोले, और अन्य वरिष्ठ नेता शामिल थे। मुलाकात के बाद अपनी प्रेस वार्ता में अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा, “हम पारदर्शी चुनाव व्यवस्था चाहते हैं। हम आपसी विश्वास और लोकतंत्र को जिंदा रखना चाहते हैं, ताकि संवैधानिक पारदर्शिता बनी रहे और हर पार्टी को समान अवसर मिले।” उन्होंने चुनाव आयोग को विस्तार से अपनी चिंताएँ बताईं और यह भी उल्लेख किया कि बातचीत एक अच्छे वातावरण में हुई।

वोटर लिस्ट और वोटिंग आँकड़ों पर सवाल


कांग्रेस प्रतिनिधिमंडल ने मुख्य रूप से दो मुद्दों पर अपनी चिंता जाहिर की:

  1. वोटर लिस्ट में हेरफेर: कांग्रेस ने आरोप लगाया कि वोटर लिस्ट से 37 लाख वोटरों के नाम काटे गए। उन्होंने चुनाव आयोग से इस हेरफेर का रॉ डेटा माँगा और पूछा कि इसकी जाँच किसने की, किन लोगों ने आपत्ति जताई, और इसका आधार क्या था?
  2. वोटिंग आँकड़ों में बढ़ोतरी: प्रतिनिधिमंडल ने बताया कि 47 लाख वोट बढ़ाए गए थे। उन्होंने इस बढ़ोतरी का रॉ डेटा भी माँगा, ताकि यह स्पष्ट हो सके कि यह बढ़ोतरी कैसे और क्यों हुई।

चुनाव आयोग ने मौखिक रूप से कुछ स्पष्टीकरण दिए, लेकिन वे पूरी तरह से संतोषजनक नहीं थे। आयोग ने लिखित जवाब देने का आश्वासन दिया है। जब यह जवाब आएगा, तभी इन मुद्दों का विस्तृत विश्लेषण हो सकेगा।

फॉर्म 17C का विवाद: चुनाव आयोग का दावा

मुलाकात के दौरान चुनाव आयोग ने एक चौंकाने वाला दावा किया। आयोग ने कहा कि फॉर्म 17C का वोटर टर्नआउट से कोई संबंध नहीं है और ये दोनों अलग-अलग प्रक्रियाएँ हैं। यह दावा समझ से परे है, क्योंकि मतदान के बाद हर बूथ पर पोलिंग एजेंट्स को फॉर्म 17C भरना होता है, जिसमें उस बूथ का वोटर टर्नआउट दर्ज होता है। आयोग का यह स्पष्टीकरण संदेह पैदा करता है और शोध का विषय बनता है। यह दावा चुनावी प्रक्रिया की पारदर्शिता पर एक और सवाल खड़ा करता है।

मारकंडी गाँव का विरोध: जनता की आवाज दबाई गई

इसी बीच, सोलापुर जिले के मारकंडी गाँव में एक घटना ने देश का ध्यान खींचा। गाँव के लोगों ने स्वतःस्फूर्त और शांतिपूर्ण तरीके से बैलट पेपर के जरिए मतदान कर अपनी राय जाहिर करने का फैसला किया। यह एक प्रतीकात्मक विरोध था, जिसके जरिए वे चुनाव आयोग की कार्यशैली और EVM मशीनों पर अपना अविश्वास व्यक्त करना चाहते थे। लेकिन स्थानीय प्रशासन ने इस अहिंसक विरोध को कुचल दिया।

  • प्रशासन की कार्रवाई: न केवल गाँव में कर्फ्यू लगा दिया गया, बल्कि बलपूर्वक इस मतदान को रोक दिया गया।
  • डेटा मिटाया गया: एक दिन पहले EVM मशीनों से डेटा इरेज कर दिया गया था।
  • लोकतंत्र पर हमला: शांतिपूर्ण विरोध को दबाना और डेटा मिटाना लोकतांत्रिक अधिकारों का हनन है।

मारकंडी गाँव की इस घटना ने साफ कर दिया कि जनता का चुनाव आयोग पर भरोसा टूट चुका है। यह घटना एक स्पष्ट संदेश देती है कि लोग अब EVM और चुनाव आयोग की कार्यप्रणाली को स्वीकार करने को तैयार नहीं हैं।

चुनाव आयोग की विश्वसनीयता पर सवाल

चुनाव आयोग पहले से ही कई विवादों में घिरा हुआ है। वोटर लिस्ट में हेरफेर, वोटिंग आँकड़ों में बढ़ोतरी, और EVM की विश्वसनीयता पर सवाल उठते रहे हैं। मारकंडी गाँव की घटना ने आयोग को पूरी तरह से बेनकाब कर दिया है। अब यह देखना बाकी है कि आयोग इस स्थिति से निपटने के लिए क्या बहाने बनाता है। लेकिन एक बात साफ है—जनता का भरोसा अब डगमगा चुका है।

जनता की राय: आपकी प्रतिक्रिया मायने रखती है

मारकंडी गाँव में शांतिपूर्ण विरोध को कुचलने की घटना पर आपकी राय देश के जनमानस का प्रतिनिधित्व करेगी। क्या आप भी मानते हैं कि चुनाव आयोग की कार्यशैली संदिग्ध है? क्या EVM को हटाकर बैलट पेपर की वापसी होनी चाहिए? अपनी राय जरूर साझा करें। #इवीएम_हटाओ_देश_बचाओ

प्रमोद जैन पिंटू

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