दिखावे की दोस्ती और असलियत
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कभी "हाउडी मोदी" तो कभी "नमस्ते ट्रंप" जैसे भव्य आयोजनों में व्यस्त थे। इन आयोजनों में तालियाँ पीटने वाले लोग आज दासों की तरह जंजीरों में जकड़े हुए भारत वापस भेजे गए हैं।
1. अपमानजनक व्यवहार: भारतीयों को सामान की तरह पार्सल
इन भारतीयों को इस तरह पार्सल किया गया, मानो वे इंसान न होकर कोई सामान हों—या उससे भी बदतर, जैसे वे जन्मजात अपराधी हों। इस दुर्दशा पर न तो गोदी मीडिया का चेहरा तमतमाया, न ही "विश्वगुरु" की आँखें लाल हुईं।
वही गोदी मीडिया, जो दिन-रात विश्वगुरु और "छप्पन इंची सीने" का गुणगान करता था, अब खामोश है। वे जानते हैं कि उनकी गढ़ी हुई भ्रामक छवि को अमेरिका ने एक झटके में बेपर्दा कर दिया।
2. ढहते मिथक: विश्वगुरु की हकीकत
गोदी मीडिया ने डींगे हाँकी थीं कि विश्वगुरु के बिना विश्व में कोई फैसला नहीं होता। रूस-यूक्रेन युद्ध को एक फोन कॉल से रुकवा दिया गया था। मोदी जी को विश्व के सबसे ताकतवर नेता बताया गया। लेकिन ये सारे ख्याली महल अब ढह चुके हैं। लोग समझ गए हैं कि किसकी कितनी हैसियत है।
कोलंबिया जैसे छोटे देश ने अमेरिकी दबाव को नजरअंदाज करते हुए अपने नागरिकों को सम्मान के साथ वापस लाया, लेकिन हम झूठी "विश्वगुरु" की पदवी लिए कुंभ में डुबकियाँ लगाते रह गए।
3. विदेश नीति की हार: अपमानित नागरिक और चुप्पी
हमारे नागरिकों का जंजीरों में जकड़कर लौटना हमारी विदेश नीति की करारी हार है। गोदी मीडिया ने जितने भी मिथक गढ़े थे, वे सब टूट चुके हैं। हम अपने देश के मुसलमानों पर अत्याचार कर सकते हैं, उनके धार्मिक स्थलों को खोद सकते हैं, उनके इतिहास को मिटाने की कोशिश कर सकते हैं, लेकिन विश्व मंच पर हम पूरी तरह बेपर्दा हो चुके हैं।
4. अमेरिका का तिरस्कार: मित्रता का सच
अगर अमेरिका के मन में भारत के प्रति मित्रता का जरा भी ख्याल होता, या विश्वगुरु का डर होता, तो वह हमारे नागरिकों को सम्मानपूर्वक वतन लौटने देता। लेकिन उसने उन्हें गुलामों की तरह भेजा। यह तिरस्कार उन सभी नागरिकों के मन को हमेशा कचोटता रहेगा।
5. आत्ममुग्धता का मायाजाल: हमारी अपनी जिम्मेदारी
लेकिन इसके लिए हम खुद भी जिम्मेदार हैं। हम धर्म की चासनी पीकर बेसुध हैं। हमें विदेश नीति जैसे मुद्दों पर सोचने की फुर्सत नहीं। हम गोदी मीडिया की गढ़ी भ्रामक छवियों के मायाजाल में आत्ममुग्धता से भरे हैं।
निष्कर्ष: क्या होगा भारत का अगला कदम?
अब देखना यह है कि भारत अमेरिका की इस दुस्साहसपूर्ण हरकत के खिलाफ क्या कदम उठाता है। क्या हम अपनी विदेश नीति को मजबूत करेंगे, या फिर आत्ममुग्धता में डूबे रहेंगे?