पारदर्शी चुनाव की माँग: क्या यह एक अयथार्थवादी सपना है?

 जनादेश की पवित्रता पर सवाल

आज पूरे देश में एक गंभीर बहस छिड़ी हुई है। चुनाव आयोग की भूमिका पर संदेह का माहौल गहराता जा रहा है, और यह संदेह बेवजह नहीं है। बात जनादेश की पवित्रता की है—वही जनादेश, जिसकी गरिमा की दुहाई देने वाले लोग उसकी पवित्रता की अवहेलना कर रहे हैं। जब भी चुनावों में पारदर्शिता की बात उठती है, तो जवाब में एक ही रट्टा सुनाई देता है: "सबूत हो तो अदालत में पेश करो!" लेकिन क्या यह जवाब जनता की बेचैनी को शांत कर सकता है? क्या यह सवालों का हल है, या सिर्फ एक बहाना? मैं, प्रमोद जैन पिंटू, भवानी मंडी से, कुछ तथ्य और सवाल जनमानस के सामने रखना चाहता हूँ, ताकि इस बहस को एक नई दिशा मिले।

प्रतीकात्मक तस्वीर

1. वोटिंग आँकड़ों में मिसमैच: बार-बार का दोहराव

सबसे बड़ा सवाल वोटिंग आँकड़ों में मिसमैच का है। शाम 5:00 बजे तक जो वोटिंग प्रतिशत बताया जाता है, वह रात 11:00 बजे बढ़ा दिया जाता है। फिर उसे अगले दिन फिर से रिवाइज किया जाता है। लोकसभा चुनाव 2024 में तो हद हो गई थी—10 दिन बाद वोटिंग का आँकड़ा जारी किया गया, और फिर उसे भी संशोधित कर दिया गया। ADR (Association for Democratic Reforms) की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान भी मिसमैच की बात उठी थी। तब चुनाव आयोग ने आश्वासन दिया था कि ऐसी स्थिति दोबारा नहीं होगी। लेकिन बार-बार यह दोहराव क्यों हो रहा है? यह दोहराव चुनावी प्रक्रिया को संदिग्ध बना रहा है। क्या चुनाव आयोग इस पर ठोस जवाब दे सकता है, या फिर सिर्फ शब्दों की बाजीगरी करेगा?

2. वोट गणना में बढ़ोतरी: मशीनें पारदर्शी क्यों नहीं?

दूसरा सवाल और भी गंभीर है। जब अंतिम वोटिंग आँकड़ा दे दिया जाता है—तमाम तरह की बढ़ोतरी के बाद—तो गणना के दौरान वोट कैसे बढ़ जाते हैं? EVM मशीनों का इस्तेमाल पारदर्शिता के लिए किया गया था, लेकिन अगर मशीनों में ही वोट बढ़ रहे हैं, तो यह पारदर्शिता कहाँ है? यह बार-बार क्यों हो रहा है? चुनाव आयोग को तथ्यों के साथ जवाब देना चाहिए, न कि खोखले आश्वासनों के साथ।

3. फॉर्म 17C में अंतर: उम्मीदवारों का संदेह

कई विधानसभा क्षेत्रों में उम्मीदवारों ने आरोप लगाया है कि फॉर्म 17C (जो मतदान के बाद बूथ-स्तर पर तैयार किया जाता है) और वास्तविक काउंटिंग में अंतर पाया गया है। यह एक गंभीर आरोप है, क्योंकि फॉर्म 17C चुनावी प्रक्रिया की पारदर्शिता का आधार है। चुनाव आयोग को इन आरोपों पर जवाब देना चाहिए। अगर यह सही है, तो यह जनादेश की पवित्रता पर सीधा हमला है।

4. 5:00 बजे बाद वोट बढ़ोतरी: वीडियोग्राफी कहाँ है?

चुनाव आयोग की वेबसाइट पर साफ लिखा है कि शाम 5:00 बजे के बाद डाले गए वोटों की हर बूथ पर वीडियोग्राफी होनी चाहिए। लेकिन 5:00 बजे बाद वोट बढ़ने की खबरें आम हैं। क्या आयोग इन वोटों की वीडियोग्राफी पेश कर सकता है? अगर हाँ, तो उसे तुरंत सामने लाना चाहिए। अगर नहीं, तो यह संदेह को और गहरा करता है।

5. स्ट्रांग रूम की सुरक्षा: 24 घंटे वीडियोग्राफी का पालन?

सुप्रीम कोर्ट और चुनाव आयोग के स्पष्ट निर्देश हैं कि हर स्ट्रांग रूम में EVM मशीनें रखने के बाद 24 घंटे वीडियोग्राफी होनी चाहिए। लेकिन हरियाणा चुनाव 2024 में एक स्ट्रांग रूम में 3 घंटे तक लाइट बंद होने का हवाला देकर वीडियोग्राफी नहीं हुई। यह कैसे संभव है? वैकल्पिक व्यवस्थाएँ (जैसे बैकअप पावर) क्यों नहीं थीं? चुनाव आयोग को इसकी जिम्मेदारी लेनी चाहिए और स्थिति स्पष्ट करनी चाहिए।

6. सिंबल लोडिंग यूनिट: तकनीकी संदेह

कुछ तकनीकी विशेषज्ञों ने सिंबल लोडिंग यूनिट (SLU) पर सवाल उठाए हैं। चुनाव आयोग को बताना चाहिए कि SLU में सिंबल डालने के बाद उसे कहाँ रखा गया, कितने समय तक रखा गया, और उसकी सुरक्षा कैसे सुनिश्चित की गई। यह तकनीकी पारदर्शिता का सवाल है, जिसका जवाब जनता को मिलना चाहिए।

7. VVPAT मिलान: सुप्रीम कोर्ट के आदेशों की अनदेखी?

सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया था कि चुनाव परिणाम के 8 दिन के अंदर, अगर कोई उम्मीदवार संतुष्ट नहीं है, तो वह 47,000 रुपये जमा करके VVPAT स्लिप्स का मिलान करवा सकता है। लेकिन तमिलनाडु के एक चुनाव क्षेत्र से वायरल वीडियो में आरोप है कि चुनाव आयोग ने उम्मीदवार के आवेदन के बावजूद VVPAT गिनती नहीं करवाई। बल्कि, आयोग ने यह तर्क दिया कि मशीनों की मॉक पोलिंग करवा कर उम्मीदवार को संतुष्ट कर लिया जाए। अगर यह आरोप सही है, तो सुप्रीम कोर्ट को स्वतः संज्ञान लेना चाहिए। और अगर गलत है, तो आयोग को तुरंत जवाब देना चाहिए।

8. EVM बैटरी चार्ज: तकनीकी चमत्कार या धाँधली?

कई चुनाव क्षेत्रों में उम्मीदवारों ने आरोप लगाया है कि वोटिंग के बाद EVM की बैटरी 60-70% चार्ज दिखती है, लेकिन काउंटिंग के समय स्ट्रांग रूम से निकालने पर वह 99% चार्ज पाई जाती है। हैरानी की बात यह है कि ऐसी स्थिति में अक्सर सत्ताधारी पक्ष के वोट बढ़ जाते हैं। हरियाणा चुनाव 2024 में जब यह सवाल उठा, तो चुनाव आयोग का जवाब था कि बैटरी चार्जिंग सिर्फ तकनीकी सुरक्षा के लिए है, इसका मशीन से कोई संबंध नहीं। लेकिन सवाल यह है कि यह सिर्फ उन बूथों पर क्यों होता है, जहाँ एक पक्ष को ज्यादा वोट मिलते हैं? और बिना चार्जर के बैटरी कैसे चार्ज हो जाती है? यह तकनीक का चमत्कार है, या कुछ और? आयोग को इस पर स्पष्ट जवाब देना चाहिए।

9. पारदर्शी चुनाव की माँग: क्या यह अयथार्थवादी है?

क्या पारदर्शी चुनाव की वकालत करना अयथार्थवादी सोच है? क्या जनता का यह हक नहीं कि उसे अपने वोट की सही गिनती का भरोसा हो? चुनाव आयोग बार-बार पारदर्शिता के दावे करता है, लेकिन उसके कदम संदेह पैदा करते हैं। यह सवाल हर भारतीय के मन में है, और इसका जवाब आयोग को देना होगा।

ये तमाम परिस्थितियाँ—मिसमैच, वोट बढ़ोतरी, बैटरी चार्ज, VVPAT की अनदेखी—क्या सबूत की परिभाषा में नहीं आते? अगर एक उम्मीदवार को उसके परिवार के चार वोट भी नहीं मिलते, तो इसका मतलब क्या है? क्या यह संदेह पैदा नहीं करता कि कुछ गड़बड़ है?

11. चुनाव आयोग की अनदेखी: सुझावों पर अमल क्यों नहीं?

पारदर्शी चुनाव के लिए कई बार सुझाव दिए गए हैं, लेकिन चुनाव आयोग उन पर विचार क्यों नहीं करता?

  • फॉर्म 17C की सार्वजनिकीकरण: एक्टिविस्ट्स ने माँग की है कि फॉर्म 17C को चुनाव आयोग अपनी वेबसाइट पर सार्वजनिक करे। यह फॉर्म मतदान खत्म होने के बाद तैयार होता है और सभी उम्मीदवारों के प्रतिनिधियों को दिया जाता है। इसे वेबसाइट पर डालने से क्या नुकसान है? आयोग का तर्क कि यह चुनाव की विश्वसनीयता पर सवाल उठाता है, बचकाना है। उल्टा, इससे वोट बढ़ोतरी की सच्चाई सामने आएगी।
  • VVPAT गिनती में लचीलापन: सुप्रीम कोर्ट ने 5% VVPAT गिनती का निर्देश दिया है, लेकिन इसे लॉटरी से तय करने की बजाय, उन बूथों पर गिनती होनी चाहिए, जहाँ उम्मीदवारों को आपत्ति हो। यह दूध का दूध और पानी का पानी कर देगा। आयोग इतना रिजिड क्यों है?
  • स्ट्रांग रूम की वीडियोग्राफी: 24 घंटे निर्बाध वीडियोग्राफी सुनिश्चित क्यों नहीं की जाती? अगर बाधा आती है, तो वैकल्पिक व्यवस्थाएँ क्यों नहीं होतीं?

एक आम नागरिक की पुकार

चुनाव आयोग की जिम्मेदारी है कि वह जनता का भरोसा बनाए रखे। लेकिन बार-बार की अनियमितताएँ और अस्पष्ट जवाब इस भरोसे को तोड़ रहे हैं। हम, आम नागरिक, सिर्फ इतना चाहते हैं कि हमारा वोट सही गिना जाए। क्या यह माँग इतनी बड़ी है कि उसे अयथार्थवादी कहा जाए?

चुनाव आयोग को चाहिए कि वह पारदर्शिता की दिशा में ठोस कदम उठाए। जनता के सवालों का जवाब दे, न कि उन्हें टाले। क्योंकि जनादेश की पवित्रता तभी बनी रहेगी, जब हर वोट की गिनती पर भरोसा होगा।

प्रमोद जैन पिंटू
भवानी मंडी

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