राजनीति की नैतिक गिरावट
“राजनीति ने पिछली तीन शताब्दियों में पूरे पूर्व-इतिहास की तुलना में मानव जाति को अधिक गहराई से दूषित किया है।”
— लुई-फर्डिनेंड सेलीन
सेलीन का यह कथन इस कड़वी सच्चाई को उजागर करता है कि उपनिवेशवाद के आरंभ से ही राजनीति ने मानवता में नैतिक पतन की नींव रख दी। यूरोपीय उपनिवेशवादी शक्तियों ने अपने लालच और प्रभुत्व की लिप्सा में शोषण की ऐसी लहर चलाई, जिसने विश्व की सामाजिक व्यवस्थाओं को गहरे तक प्रभावित किया। उपनिवेशवाद को अक्सर सभ्यता और प्रगति के नाम पर उचित ठहराया गया, लेकिन इसके परिणामस्वरूप संपूर्ण आबादियों का दमन और शोषण हुआ। इस दौर ने न केवल वैश्विक सत्ता संतुलन को बदला, बल्कि राजनीति में छल और धोखे की संस्कृति को स्थायी रूप से जन्म दिया।
1. सर्वव्यापी राजनीति: झूठ और धोखे का खेल
“हमारे युग में ‘राजनीति से बाहर रहना’ जैसी कोई चीज नहीं है। सभी मुद्दे राजनीतिक मुद्दे हैं, और राजनीति स्वयं झूठ, चोरी, मूर्खता, घृणा और सिज़ोफ्रेनिया का एक समूह है।”
— जॉर्ज ऑरवेल
ऑरवेल के ये शब्द आधुनिक युग की कड़वी सच्चाई को बयान करते हैं। आज राजनीति हर पहलू में समाई हुई है। सामाजिक मुद्दे हों, आर्थिक नीतियाँ हों, या सांस्कृतिक बहसें—सब कुछ किसी न किसी राजनीतिक एजेंडे से प्रभावित है। ऑरवेल इस बात पर बल देते हैं कि राजनीति अब छद्म, धोखाधड़ी और संघर्ष का पर्याय बन चुकी है। हमारे जुड़े हुए संसार में व्यक्तिगत चुनाव और विश्वास भी अक्सर राजनीतिक रंग में रंगे होते हैं। आज की राजनीति झूठ, पक्षपात और विभाजन से भरी है, जिससे सच को पहचानना कठिन हो गया है।
2. औपनिवेशिक विरासत: भ्रष्टाचार की जड़ें
यूरोपीय उपनिवेशवादी साम्राज्यों ने राजनीति को नियंत्रण और शोषण का हथियार बना दिया। इसका प्रभाव केवल उपनिवेशित समाजों तक सीमित नहीं रहा, बल्कि उनके राजनीतिक ढांचों को भी भ्रष्ट कर गया। सेलीन की आलोचना इस तथ्य को रेखांकित करती है कि उपनिवेशवाद से शुरू हुआ यह राजनीतिक भ्रष्टाचार आज भी आधुनिक शासन प्रणालियों को प्रभावित करता है। इसने न केवल सत्ता संतुलन को बदला, बल्कि नैतिकता और जनसेवा की भावना को भी कमजोर किया।
3. राजनीति और नैतिकता का टकराव: अनदेखी कीमत
राजनीति का गहरा संबंध सामाजिक, आर्थिक और नैतिक मुद्दों से हो चुका है, जिससे तटस्थ रह पाना लगभग असंभव हो गया है। व्यक्ति चाहे सक्रिय रूप से शामिल हो या अनजाने में प्रभावित हो, राजनीति से अछूता रहना कठिन है। सेलीन और ऑरवेल दोनों इस बात पर जोर देते हैं कि राजनीति अब जनसेवा के बजाय सत्ता और नियंत्रण का खेल बन चुकी है। इससे समाज में व्यापक निराशा और अविश्वास पैदा हो रहा है।
निष्कर्ष: आज भी प्रासंगिक विचार
सेलीन और ऑरवेल के विचार आज भी उतने ही प्रासंगिक हैं जितने उनके समय में थे। ये हमें इस बात पर विचार करने के लिए प्रेरित करते हैं कि राजनीति ने हमारे समाज और मूल्यों को किस प्रकार आकार दिया है। आधुनिक युग में राजनीति का यह अदृश्य भ्रष्टाचार हमें नैतिकता और सच्चाई की खोज की ओर ले जाने के बजाय, झूठ और विभाजन की गहरी खाई में धकेल रहा है।
Author - Suresh Pandey