वोटों में अंतर और चुनाव आयोग का पहला तर्क
उत्तर प्रदेश में हाल के चुनावों में 5 लाख से अधिक वोटों का अंतर—मतदान वाले दिन के वोट और गिने गए वोटों की संख्या में—देखा गया है। यह अंतर लगभग 350 चुनाव क्षेत्रों में दर्ज किया गया। इस पर उत्तर प्रदेश चुनाव आयोग ने स्पष्टीकरण देते हुए कहा कि मॉक पोल में डाले गए वोट चुनाव अधिकारियों की गलती से डिलीट नहीं हो पाए। यह तर्क चुनाव आयोग का पुराना हथियार है, लेकिन यह सवाल खड़ा करता है: मॉक पोल में डाले गए वोटों की संख्या निश्चित होती है, जैसे 20 वोट। अगर ये वोट डिलीट नहीं हुए, तो बढ़े हुए वोटों की संख्या 20 के गुणक में होनी चाहिए—जैसे 40, 60, या 80। क्या सभी जगहों पर यह अनुपात एकसमान है? अगर नहीं, तो इस तर्क का औचित्य क्या है?
कम वोटों का रहस्य और फॉर्म 17C की गलतियाँ
चुनाव आयोग का दूसरा तर्क है कि प्रेसिडिंग ऑफिसर्स से फॉर्म 17C भरने में गलतियाँ हो गईं। सवाल यह है: अगर ये गलतियाँ चुनाव परिणाम को प्रभावित करती हैं, तो इसका दोषी कौन है? चुनाव आयोग ने यह भी कहा कि इलेक्शन ड्यूटी सर्टिफिकेट (EDC) वोटों की वजह से संख्याओं में इजाफा हुआ, लेकिन फॉर्म 17C में इन वोटों का जिक्र होता है। ऐसे में यह तर्क भी गले नहीं उतरता। सुप्रीम कोर्ट ने निर्देश दिया है कि चुनाव परिणाम घोषित होने के 6 दिन के भीतर प्रत्याशी पैसे जमा करके VVPAT की गिनती करवा सकता है। लेकिन मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह ने सवाल उठाया है कि क्या इन मशीनों को 6 दिन बाद चेक किया जाएगा? चुनाव आयोग ने इसकी कोई स्पष्ट व्याख्या नहीं दी, जिससे असमंजस की स्थिति बनी हुई है।
डेटा छुपाने की क्रोनोलॉजी
चुनाव आयोग ने फॉर्म 17C के आंकड़े अपनी वेबसाइट पर सार्वजनिक करने से इनकार कर दिया। यह कदम संदेह पैदा करता है कि क्या यह सब पूर्व नियोजित था? अगर ये आंकड़े सार्वजनिक होते, तो चुनाव आयोग को आसानी से कटघरे में खड़ा किया जा सकता था। छत्तीसगढ़ की कांकेर सीट पर मात्र 900 वोटों का अंतर था, लेकिन गणना में 867 वोटों का अंतर पाया गया। वहाँ के प्रत्याशी ने चार मतदान केंद्रों पर VVPAT गिनती के लिए पैसे जमा कर दिए हैं। असम की करीमगंज, उड़ीसा की एक सीट (10,000 वोट ज्यादा), तमिलनाडु की एक सीट (16,000 वोट ज्यादा), उत्तर प्रदेश की फतेहपुर सिकरी, असम की कोकराझार, और मुंबई उत्तर पश्चिम (जहाँ 48 वोटों के अंतर से जीत हुई, लेकिन 2 वोट ज्यादा गिने गए) में भी ऐसी अनियमितताएँ सामने आई हैं।
EVM पर सवाल और बैटरी चार्ज का रहस्य
इन प्रकरणों ने एक बार फिर EVM को संदेह के घेरे में ला दिया है। EVM एक कंप्यूटर है, और इसमें गलती की गुंजाइश शून्य होनी चाहिए। अगर गलती है, तो यह जानबूझकर की गई होगी। मध्य प्रदेश के मंदसौर संसदीय क्षेत्र में शिकायत मिली है कि मतदान समाप्ति के समय 50-60% के बीच बैटरी चार्ज थी, लेकिन गिनती के समय यह 95% चार्ज पाई गई। यह सिर्फ एक खबर नहीं, बल्कि गंभीर सवाल है, जिसका स्पष्टीकरण चुनाव आयोग ने नहीं दिया। विधानसभा चुनावों में भी ऐसी शिकायतें आई थीं, लेकिन केंद्रीय चुनाव आयोग ने कोई प्रामाणिक संज्ञान नहीं लिया।
संदिग्ध परिणाम: BJP की जीत पर सवाल
जिन सीटों पर कम अंतर से जीत हुई, वहाँ अधिकांश भारतीय जनता पार्टी (BJP) के उम्मीदवार ही जीते हैं। यह संयोग नहीं लगता। राहुल गांधी का बयान—‘राजा की आत्मा EVM में कैद है’—क्या सही है? BJP समर्थक कह सकते हैं कि इंडिया गठबंधन हार का ठीकरा EVM पर फोड़ रहा है, लेकिन सवाल हार-जीत का नहीं, पारदर्शी चुनाव व्यवस्था का है। अगर इंडिया गठबंधन के उम्मीदवार भी जीते हैं, तो वे भी संदेह के घेरे में हैं। उम्मीदवारों ने आरोप लगाए हैं कि वोटों की गिनती धीमी की गई, लाइट चली गई, और इस दौरान अनियमितताएँ हुईं।
हार-जीत का अंतर और क्रोनोलॉजी
इंडिया और NDA गठबंधन के बीच हार-जीत में कुल 14,80,000 वोटों का अंतर रहा, जबकि 5,50,000 वोटों का अंतर गणना में पाया गया। यह अंतर पूरी क्रोनोलॉजी को समझने के लिए काफी है। चुनाव आयोग का अंतिम तर्क है कि इस अंतर से परिणाम प्रभावित नहीं हुए, लेकिन सवाल पारदर्शिता का है। क्या चुनाव आयोग को और स्पष्टीकरण देना चाहिए, या यह मान लिया जाए कि यह सब चुनाव का हिस्सा है?
एक सुझाव: VVPAT की गिनती और जवाबदेही
जहाँ-जहाँ वोटों में अंतर है, वहाँ सभी VVPAT की गिनती होनी चाहिए। चूँकि यह गलती चुनाव आयोग की है, इसलिए सारा खर्चा आयोग को वहन करना चाहिए। यह पारदर्शिता की दिशा में एक सार्थक कदम हो सकता है। देश के कानून को निष्पक्ष चुनाव के लिए जवाबदेही तय करनी चाहिए। आपकी राय क्या है?
— प्रमोद जैन पिंटू