लोकसभा चुनाव 2024: फंसा-फंसा क्यों लग रहा है?

चुनाव का केंद्रीय मुद्दा: मोदी बनाम इंडिया गठबंधन

2025 का लोकसभा चुनाव अपने अंतिम चरण में है, और पूरा चुनाव एक तरह से दो ध्रुवों के बीच सिमट गया है—एक तरफ नरेंद्र मोदी का व्यक्तित्व, दूसरी तरफ इंडिया गठबंधन के मुद्दे। भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) इस चुनाव में कहीं नजर नहीं आ रही। बीजेपी का कोर वोटर भी “आएगा तो मोदी ही” के नरेटिव पर वोट डालता दिख रहा है। लेकिन इस बार माहौल कुछ अलग है। लोग साफ तौर पर मोदी जी की सत्ता पर ब्रेक लगाना चाहते हैं। वे ऐसी स्थिति लाना चाहते हैं, जहाँ तानाशाही की आशंका खत्म हो और लोकतंत्र की साँसें तेजी से चलें।

जनता का मिजाज: सत्ता पर लगाम की चाह

लोगों के मन में एक सवाल बार-बार उठ रहा है—क्या बीजेपी को बहुमत से इतना दूर रखा जा सकता है कि वह सत्ता की कल्पना भी न कर सके? मसलन, अगर बीजेपी को 200-210 सीटें मिलती हैं, तो न तो वह तोड़फोड़ कर सरकार बना सकती है, और न ही एनडीए गठबंधन को इतनी सीटें मिलेंगी कि मोदी जी की वापसी हो सके। यह एक संभावना है, जो लोगों के दिमाग में चल रही है। लेकिन सवाल यह है—क्या जनता का गुस्सा इस हद तक है कि वह बीजेपी को इतना बड़ा झटका दे देगी?

इंडिया गठबंधन की संभावनाएँ: सरकार बनाने का सपना

दूसरी तरफ, एक तबका ऐसा भी है, जो मानता है कि इंडिया गठबंधन को 260-280 सीटें मिलनी चाहिए, ताकि वह आसानी से सरकार बना सके। लेकिन यह नरेटिव कुछ लोग खंडित भी करते हैं। उनका कहना है कि अगर सबसे ज्यादा सीटें कांग्रेस को मिलती हैं, तो भी वह सरकार नहीं बनाएगी। इतिहास में ऐसी गठबंधन सरकारों का अनुभव देश के लिए अच्छा नहीं रहा है। 1990 के दशक की अस्थिर सरकारें इसका उदाहरण हैं, जिन्होंने देश को अनिश्चितता की ओर धकेल दिया था। ऐसे में क्या कांग्रेस 170-180 सीटों से ऊपर जा सकती है और सरकार बनाने का दावा पेश कर सकती है? यह भी नाराज वोटरों का एक विमर्श हो सकता है।

तीसरा रास्ता: मजबूरी की सरकार?

कुछ लोग एक तीसरे विकल्प की बात भी करते हैं। उनका मानना है कि बीजेपी को 240-250 सीटें मिलें, ताकि वह मजबूरी में सरकार बनाए। ऐसी स्थिति में विपक्ष मजबूत होगा और बीजेपी के तानाशाह कदमों पर लगाम लगाई जा सकेगी। विपक्ष देश की आवाज को बुलंद करने में सक्षम होगा। यह विचार उन लोगों का है, जो न तो बीजेपी को पूरी तरह सत्ता से बाहर करना चाहते हैं, और न ही इंडिया गठबंधन की अस्थिर सरकार देखना चाहते हैं।

फंसा-फंसा चुनाव: अनिश्चितता का माहौल

मुझे लगता है कि चुनाव का यह फंसा-फंसा माहौल इन्हीं संभावनाओं के बीच पनप रहा है। जनता के मन में गुस्सा तो है, लेकिन वह यह भी जानती है कि गठबंधन सरकारों का प्रयोग हमेशा सफल नहीं रहा। अगर जनता को लगता है कि अस्थिरता देश के लिए ठीक नहीं, तो शायद उसे यह मानना पड़ेगा—“रोते-पड़ते ही आए, पर आएगा तो मोदी ही।” लेकिन अगर यह गुस्सा वोटों की शक्ल में तब्दील हो रहा है, तो क्या इंडिया गठबंधन सत्ता तक पहुँच सकता है? यह सवाल 4 जून 2025 को मतगणना के दिन साफ होगा।

परिणाम से पहले एक बात तय: बीजेपी को झटका

परिणाम से पहले एक बात तो तय है—इस बार बीजेपी को जोर का झटका लगेगा, भले ही वह धीरे से लगे। दूसरी तरफ, विपक्ष की स्थिति “बल्ले-बल्ले” स्टाइल में मजबूत होने वाली है। यह चुनाव न केवल सत्ता का फैसला करेगा, बल्कि यह भी तय करेगा कि आने वाले सालों में भारत का लोकतंत्र किस दिशा में जाएगा।

आपकी राय: देश का भविष्य आपके हाथ में

इन दो संभावनाओं—बीजेपी की मजबूरी की सरकार या इंडिया गठबंधन की सत्ता—के बीच देश का रास्ता निकलता दिख रहा है। आप क्या सोचते हैं? क्या बीजेपी को सत्ता से बाहर रखा जाना चाहिए, या मजबूरी की सरकार बनानी चाहिए? क्या कांग्रेस इस बार बड़ा उलटफेर कर सकती है? आपके विचार देश के जनमानस का प्रतिनिधित्व करेंगे। अपनी राय जरूर साझा करें!

Author - प्रमोद जैन पिंटू

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