परिचय: एक अनोखी मुलाकात की कहानी
परीक्षित साहनी अपनी किताब "Strange Encounters" में एक यादगार वाकया साझा करते हैं, जो पंडित जवाहरलाल नेहरू की देशभक्ति और प्रभावशाली व्यक्तित्व को दर्शाता है। यह घटना तब की है, जब परीक्षित मास्को में पढ़ाई कर रहे थे और नेहरू का रूस दौरा हुआ। इस मुलाकात ने न केवल परीक्षित को प्रभावित किया, बल्कि रूसी युवाओं के बीच भारत और नेहरू की लोकप्रियता को भी उजागर किया।
मास्को में नेहरू से मुलाकात: देशभक्ति का पाठ
परीक्षित साहनी उस समय मास्को में पढ़ रहे थे, जब पंडित नेहरू का रूस दौरा हुआ। वे नेहरू से मिलने पहुँचे। राजदूत टी.एन. कौल के साथ बैठे नेहरू ने उन्हें देखते ही पहचानने की कोशिश की और पूछा, "तुम बलराज साहनी के बेटे हो? मास्को में क्या कर रहे हो?"
परीक्षित ने जवाब दिया कि वे यहाँ सिनेमैटोग्राफी की पढ़ाई कर रहे हैं और अब भारत लौटने का उनका कोई इरादा नहीं है, क्योंकि वहाँ इसका कोई भविष्य नहीं है। यह सुनते ही नेहरू का चेहरा गुस्से से लाल हो गया। उन्होंने कहा, "मैं भी चाहता तो इंग्लैंड में आराम की जिंदगी बिता सकता था। और तुम्हारे पिता? वे भी तो युद्ध के समय बीबीसी की नौकरी छोड़कर आए थे। वे भी वहाँ रह सकते थे!"
फिर शांत होते हुए नेहरू ने कहा, "खैर…जबकि तुमने एक नई माँ की गोद में खेलने का फैसला कर ही लिया है, जो कि बेहद सुंदर भी है—उसकी आँखें नीली और बाल सुनहरे हो सकते हैं—पर वो तुम्हारी असली माँ नहीं बनेगी। तुम्हारी असली माँ तो भारत में ही है। भले ही वो गरीब हो या तुम्हें गंदी लगे, पर क्या तुम उसे माँ नहीं मानोगे? याद रखना, माँ बस माँ होती है।" यह कहकर नेहरू और राजदूत टी.एन. कौल बाहर निकल गए।
भारत की पहचान: मास्को की सड़कों पर एक सबक
परीक्षित इस मुलाकात से प्रभावित होकर कुछ सोचते हुए घर की ओर चल पड़े। रास्ते में मायाकोव्स्की मेट्रो स्टेशन के पास दो रूसी नौजवान आपस में लड़ रहे थे। उस समय परीक्षित की दाढ़ी के कारण लोग उन्हें अक्सर फिदेल कास्त्रो का प्रशंसक या क्यूबा का समझ लेते थे। जब वे उन नौजवानों के पास पहुँचे, तो वे दोनों भड़क गए और बोले, "ओ क्यूबाई, हमारे बीच मत पड़ो।"
परीक्षित ने उन्हें समझाने की कोशिश की और कहा, "सुनो, हम मजदूर लोग हैं। कम्युनिज्म में आस्था रखते हैं। और आपस में ही लड़ाई-झगड़ा करेंगे?" इस पर वे और भड़क गए और बोले, "चलो, भागो यहाँ से, क्यूबाई! गोली मारो मजदूर वर्ग को… तुम्हें पता नहीं कि हम रूसी लोगों से पंगा लेना कितना महँगा पड़ेगा तुम्हें!"
तब परीक्षित ने चिल्लाकर कहा, "मैं क्यूबाई नहीं, भारतीय हूँ!" यह सुनते ही दोनों शांत हो गए और बोले, "अरे, तुम भारतीय हो!" एक नौजवान ने उनके कंधे पर हाथ रखते हुए कहा, "भारत! नेहरू! राजकपूर!!" और उनके गले लग गया। उसने परीक्षित को चूमा (उसके मुँह से वोदका की तीखी महक आ रही थी) और बोला, "हमें तो भारत से बहुत प्यार है। नेहरू से, राजकपूर से बहुत प्यार है।"
परीक्षित ने उन्हें आश्वस्त करते हुए कहा, "शांत हो जाओ, आपस में मत लड़ो… Hail Communism!" इस पर एक नौजवान ने जवाब दिया, "Fu… Communism! नेहरू की जय! भारत की जय!" और दोनों उनके गले लग गए।
निष्कर्ष: नेहरू का प्रभाव और भारत का सम्मान
यह कहानी न केवल नेहरू की देशभक्ति और प्रभावशाली व्यक्तित्व को दर्शाती है, बल्कि उस समय भारत और नेहरू की अंतरराष्ट्रीय लोकप्रियता को भी रेखांकित करती है। एक ओर नेहरू ने परीक्षित को भारत की मिट्टी से जोड़े रखने का भावनात्मक सबक दिया, तो दूसरी ओर रूसी नौजवानों की प्रतिक्रिया ने साबित किया कि नेहरू और भारत का नाम उस समय विश्व भर में कितना सम्मानित था।
रश्मि त्रिपाठी