नेहरू: मिथक, झूठ और ऐतिहासिक सत्य
पंडित जवाहरलाल नेहरू, भारत के पहले प्रधानमंत्री और स्वतंत्रता संग्राम के एक प्रमुख योद्धा, आज भी भारतीय राजनीति में एक केंद्रीय व्यक्तित्व हैं। लेकिन 2025 में भी उनके खिलाफ दुष्प्रचार की एक लंबी परंपरा जारी है। सोशल मीडिया के इस युग में, नेहरू को बदनाम करने के लिए झूठ और मिथक तेजी से फैलाए जा रहे हैं। इस लेख में, हम 10 ऐसे मिथकों का खंडन करेंगे और ऐतिहासिक सत्य को सामने लाएंगे।
मिथक 1: नेहरू के कपड़े पेरिस में धुलते थे?
सच्चाई:
यह मिथक नेहरू को एक अय्याश नेता के रूप में पेश करने की कोशिश है। नेहरू ने अपनी आत्मकथा डिस्कवरी ऑफ इंडिया में स्पष्ट किया है कि उनके बारे में ऐसी अफवाहें फैलाई जाती हैं। लेकिन सोचिए—क्या कोई हर रोज पेरिस में कपड़े धुलवा सकता है? और वह भी तब, जब देश आजादी की लड़ाई लड़ रहा हो और गरीबी से जूझ रहा हो? यह मिथक न केवल तर्कहीन है, बल्कि उस दौर की कठिनाइयों का अपमान भी करता है।
मिथक 2: नेहरू ने क्रांतिकारियों के लिए कुछ नहीं किया?
सच्चाई:
यह दावा सरासर झूठ है। नेहरू जेल में बंद भगत सिंह से मिलने गए और उनकी रिहाई के लिए हर संभव प्रयास किया। चंद्रशेखर आजाद भी उनके संपर्क में थे। उत्तर प्रदेश में क्रांतिकारियों के अगूआ श्री गणेश शंकर विद्यार्थी नेहरू के नेतृत्व में काम कर रहे थे।। नेहरू ने क्रांतिकारियों का समर्थन करने के लिए अपनी जान तक की परवाह नहीं की।।
मिथक 3: गांधी ने सरदार पटेल को दरकिनार कर नेहरू को PM बनाया?
सच्चाई:
यह मिथक नेहरू और पटेल के बीच काल्पनिक टकराव की कहानी गढ़ता है। गांधी ने 1935 के बाद से ही स्पष्ट कर दिया था कि नेहरू उनके उत्तराधिकारी होंगे।। 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन में भी गांधी ने यही बात दोहराई।। 1937 और 1946 के चुनावों में नेहरू कांग्रेस के निर्विवाद नेता थे और जनता की पहली पसंद।। इसलिए, उन्हें प्रधानमंत्री बनाया गया—यह फैसला लोकतांत्रिक था, न कि गांधी का व्यक्तिगत निर्णय।
मिथक 4: नेहरू ने कश्मीर मुद्दे को उलझाया?
सच्चाई:
कश्मीर का मुद्दा आजादी से पहले से जटिल था। नेहरू ने पहले ही भांप लिया था कि मुस्लिम बहुल होने के कारण कश्मीर पाकिस्तान की ओर जा सकता है। उन्होंने शेख अब्दुल्ला के माध्यम से कश्मीर की जनता को कांग्रेस और भारत के साथ जोड़ा।। नेहरू की कूटनीति की वजह से ही कश्मीर का भारत में विलय संभव हुआ। यह उनकी दूरदर्शिता है, न कि कोई गलती।।
मिथक 5: कश्मीर में सरदार पटेल की कोई भूमिका नहीं थी?
सच्चाई:
यह मिथक नेहरू और पटेल को फिर से एक-दूसरे के खिलाफ खड़ा करता है।। सच्चाई यह है कि कश्मीर का मिशन दोनों नेताओं का संयुक्त प्रयास था।। नेहरू शेख अब्दुल्ला से बात कर रहे थे, जबकि पटेल राजा हरि सिंह से। दोनों ने मिलकर कश्मीर को भारत का हिस्सा बनाया।। यह एकता आज के नेताओं के लिए प्रेरणा होनी चाहिए।
मिथक 6: धारा 370 के लिए नेहरू जिम्मेदार?
सच्चाई:
धारा 370 को लेकर नेहरू को दोष देना गलत है। जिस दिन संविधान सभा में धारा 370 पास हुई, उस दिन नेहरू अमेरिका में थे।। सरदार पटेल ने कांग्रेसी सदस्यों को समझाकर बिना बहस के यह धारा पास कराई।। श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने भी इसका विरोध नहीं किया था। यह फैसला उस समय की परिस्थितियों के हिसाब से लिया गया था।।
मिथक 7: नेहरू ने सुभाष चंद्र बोस की जासूसी कराई?
सच्चाई:
नेहरू और बोस सच्चे दोस्त थे। बोस की मृत्यु के बाद नेहरू और पटेल ने उनकी पत्नी और बेटी को गुप्त रूप से आर्थिक सहायता दी, जो लंबे समय तक चली। इस सहायता को अब जासूसी के रूप में प्रचारित किया जाता है। यह दुष्प्रचार बोस और नेहरू दोनों की छवि को धूमिल करता है।
मिथक 8: नेहरू ने बोस को गिरफ्तार करने के लिए ब्रिटेन को पत्र लिखा?
सच्चाई:
यह कथित पत्र पूरी तरह फर्जी है। इसमें ब्रिटेन के प्रधानमंत्री का नाम तक गलत लिखा है। सच्चाई यह है कि नेहरू ने लाल किले में बंद आजाद हिंद फौज के सिपाहियों का मुकदमा एक वकील की हैसियत से लड़ा। उन्होंने सभी कमांडरों और सैनिकों को रिहा कराया। यह नेहरू का देशभक्ति का प्रमाण है।
मिथक 9: नेहरू ने वंशवाद को बढ़ावा दिया?
सच्चाई:
नेहरू ने अपना उत्तराधिकारी पहले जयप्रकाश नारायण को और फिर राम मनोहर लोहिया को बनाना चाहा, लेकिन दोनों ने मना कर दिया। नेहरू के बाद लाल बहादुर शास्त्री प्रधानमंत्री बने। इंदिरा गांधी को नेहरू ने PM नहीं बनाया—वह बाद में कांग्रेस की आंतरिक प्रक्रिया से चुनी गईं। वंशवाद का यह आरोप आधारहीन है।
मिथक 10: नेहरू ने UN की स्थायी सदस्यता ठुकराई?
सच्चाई:
यह मिथक भी झूठ पर आधारित है। नेहरू ने संसद में स्पष्ट कहा था कि ऐसा कोई प्रस्ताव भारत के सामने कभी नहीं आया। उस समय ताइवान की जगह चीन को UN की सदस्यता मिलने की बात थी, जो पहले से तय थी। यह मिथक नेहरू की अंतरराष्ट्रीय कूटनीति को कमजोर दिखाने की कोशिश है।
नेहरू की विरासत और आज का भारत
2025 में जब हम भारत के विकास को देखते हैं, तो नेहरू की नींव को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। IIT, IIM, ISRO, और भाखड़ा नंगल जैसे प्रोजेक्ट्स उनकी दूरदर्शिता का परिणाम हैं। उनके खिलाफ फैलाए गए ये मिथक न केवल उनकी छवि को धूमिल करते हैं, बल्कि भारत के इतिहास को तोड़ने-मरोड़ने की कोशिश भी हैं। हमें सत्य को पहचानना होगा और दुष्प्रचार का जवाब तथ्यों से देना होगा।
Author - पियूष बबेले