गंगाधर ही शक्तिमान: न्यायपालिका की निष्पक्षता पर सवाल !

भ्रष्टाचार के खिलाफ आंदोलन और सियासी खेल

2011 में प्रशांत भूषण ने 2जी घोटाले को चिल्ला-चिल्लाकर उजागर किया। इस घोटाले से भ्रष्टाचार के खिलाफ जन-आक्रोश फैला और अन्ना आंदोलन खड़ा हुआ। इस आंदोलन की मौकापरस्ती में एनडीए को सत्ता मिली। लेकिन जांच के कुछ साल बाद पता चला कि 2जी जैसा कोई घोटाला हुआ ही नहीं था। मगर तब तक सरकार बदल चुकी थी।

1. जस्टिस कर्णन का मामला: अभिव्यक्ति की आजादी पर सवाल

व्हिसलब्लोअर के रूप में जस्टिस कर्णन ने अभिव्यक्ति की आजादी के तहत सुप्रीम कोर्ट पर भ्रष्टाचार के सवाल उठाते हुए पीएमओ को चिट्ठी लिखी। लेकिन पीएमओ ने उसकी जांच करने के बजाय चिट्ठी उन जजों के पास भेज दी, जिनके खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोप थे। सुप्रीम कोर्ट ने इसे न्यायपालिका की अवमानना मानते हुए बिना जांच के जस्टिस कर्णन को छह माह की सजा सुना दी। इस फैसले को प्रशांत भूषण ने सराहा और सुप्रीम कोर्ट के निर्णय को जायज ठहराया।

2. प्रशांत भूषण का दोहरा रवैया: सुप्रीम कोर्ट की अवमानना

लेकिन जब प्रशांत भूषण ने अभिव्यक्ति की आजादी के तहत सुप्रीम कोर्ट के जजों, उनकी नियुक्ति, और फैसलों पर टिप्पणी की, तो सुप्रीम कोर्ट ने इसे भी न्यायपालिका की अवमानना माना और सजा की बात की। जस्टिस कर्णन के समय सुप्रीम कोर्ट के फैसले को जायज बताने वाले प्रशांत भूषण ने अब उसी तरह के फैसले को अपने लिए नाजायज और अभिव्यक्ति की आजादी पर हमला बताया।

3. सुप्रीम कोर्ट की भूमिका: दोहरा मापदंड?

सुप्रीम कोर्ट की भूमिका भी संदिग्ध दिखती है। जस्टिस कर्णन के समय कोर्ट ने कठोर रवैया अपनाया और बिना जांच के सजा सुना दी। लेकिन प्रशांत भूषण के मामले में कोर्ट उन्हें माफी मांगने का मौका दे रहा है। क्या यहाँ न्यायपालिका एक दोषी के सामने घुटने टेक रही है?

4. अटॉर्नी जनरल का हस्तक्षेप: सियासी इनाम?

भारत सरकार के अटॉर्नी जनरल के.के. वेणुगोपाल ने सुप्रीम कोर्ट से प्रशांत भूषण को सजा न देने की अपील की। क्या उनकी यह टिप्पणी उस अन्ना आंदोलन से बनी सरकार का इनाम तो नहीं? खासकर जब हाल ही में न्यायपालिका के सर्वोच्च पद पर रहे लोगों ने राज्यसभा सीट पाकर इनाम लिया हो।

5. गंगाधर ही शक्तिमान: प्रशांत भूषण की दोहरी भूमिका

प्रशांत भूषण 2011 में भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज उठाने वाले थे, और आज सरकार के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट से उलझ रहे हैं। क्या वे सियासी उठापटक के मोहरे मात्र हैं?

निष्कर्ष: न्यायपालिका की धुंधली निष्पक्षता

संपूर्ण घटना का सार यही है कि सुप्रीम कोर्ट सर्वोच्च जरूर है, लेकिन निष्पक्ष नहीं। न्यायपालिका की निष्पक्षता दिन-ब-दिन धुंधली होती जा रही है। वह नीतियों की समीक्षा के बजाय सवालों से समझौता कर रही है और सरकार के साथ कदमताल कर रही है।
उपर्युक्त कथन मेरे निजी विचार हैं।
Author - नुकेश

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