भ्रष्टाचार और अपराध के आरोप: क्लीन चिट का नया न्यायशास्त्र

भ्रष्टाचार पर नई रणनीति

भारत में भ्रष्टाचार और अपराध के आरोपों से निपटने का एक नया तरीका उभर रहा है—बिना जाँच के क्लीन चिट देना। लेखक विजय शंकर सिंह इस लेख में कई हालिया मामलों के जरिए यह दिखाते हैं कि कैसे सरकार और संस्थाएँ आरोपों की जाँच करने के बजाय बयानबाजी से अपनी जिम्मेदारी पूरी कर रही हैं।

1. केदारनाथ मंदिर: सोना या पीतल?


हाल ही में खबर आई कि केदारनाथ के गर्भगृह की दीवारों पर मढ़ा गया “सोना” वास्तव में पीतल है। स्थानीय लोगों ने यह आरोप लगाया और जाँच की मांग की। बद्री-केदार मंदिर समिति ने तुरंत बयान जारी कर कहा कि वहाँ सोना ही लगाया गया है। लेकिन सवाल यह है: क्या यह बयान जाँच के बाद दिया गया, या सिर्फ आरोपों के जवाब में? आरोप लगाने वालों से उनके दावे का आधार भी नहीं पूछा गया। क्या गर्भगृह जैसे पवित्र स्थान में भ्रष्टाचार संभव नहीं?

2. उज्जैन का महाकाल लोक: नकली मूर्तियाँ और भ्रष्टाचार

उज्जैन के महाकाल लोक में आंधी से शिव और सप्तऋषियों की छह मूर्तियाँ ध्वस्त हो गईं। निर्माण में भ्रष्टाचार का आरोप लगा, और कहा गया कि जाँच चल रही थी। जवाब में बताया गया कि असली पत्थर की मूर्तियाँ बन रही हैं, और उद्घाटन की जल्दी में फाइबर की मूर्तियाँ लगाई गई थीं। लेकिन यह बात उद्घाटन के समय क्यों नहीं बताई गई? 60% से अधिक कमीशन की बात भी उठी। महाकाल लोक प्रबंधन ने भ्रष्टाचार से इनकार कर दिया, लेकिन जाँच का कोई परिणाम सामने नहीं आया।

3. अयोध्या राम मंदिर: भूमि घोटाले के आरोप

अयोध्या में राम मंदिर निर्माण के साथ ही भूमि घोटाले की खबरें आईं। आरोप है कि महत्वपूर्ण लोगों ने मनमाफिक दामों पर जमीनें खरीदीं। ट्रस्ट के सचिव चंपतराय का नाम भी इसमें आया। यह मामला संसद तक पहुँचा, लेकिन ट्रस्ट ने एक खंडन जारी कर बात खत्म कर दी। इस मामले की वर्तमान स्थिति स्पष्ट नहीं है।

4. मथुरा-वृंदावन: तीर्थों में भ्रष्टाचार

वरिष्ठ पत्रकार विनीत नारायण ने मथुरा, वृंदावन, और गोवर्धन के तीर्थों में निर्माण कार्यों में भ्रष्टाचार के आरोप लगाए। उन्होंने उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री और अधिकारियों को पत्र लिखे, सोशल मीडिया पर आवाज उठाई, लेकिन न जाँच हुई, न पूछताछ, और न ही कोई परिणाम सामने आया।

5. कर्नाटक: 40% कमीशन का मामला

कर्नाटक में बीजेपी के एक ठेकेदार ने पूर्व मुख्यमंत्री और बीजेपी नेता पर 40% कमीशन लेने का आरोप लगाया, और बाद में आत्महत्या कर ली। यह मुद्दा “पेसीएम” अभियान और कर्नाटक विधानसभा चुनाव (2023) में मुख्य बन गया। लेकिन बीजेपी ने जाँच की मांग को दरकिनार कर आरोप लगाने वालों के खिलाफ अदालती नोटिस की बात की।

6. अडानी घोटाला: सरकार का समर्थन

अडानी समूह और मोदी सरकार की निकटता जगजाहिर है। ऑस्ट्रेलिया, श्रीलंका, और इजराइल में अडानी के हितों को साधने में सरकार की भूमिका की चर्चा भारतीय और विदेशी अखबारों में सबूतों के साथ हुई। जब राहुल गांधी ने लोकसभा में यह मुद्दा उठाया, तो उनके और अन्य विपक्षी सांसदों के भाषण को रातोंरात कार्यवाही से हटा दिया गया। आरएसएस भी खुलकर अडानी के साथ खड़ा है।

7. बृजभूषण शरण सिंह मामला: जाँच में ढिलाई

बीजेपी सांसद बृजभूषण शरण सिंह पर यौन शोषण और पॉक्सो एक्ट के तहत आरोप लगे। सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर मुकदमा दर्ज हुआ, लेकिन जाँच में ढिलाई बरती गई। आरोपी को पीड़िता पर दबाव डालने का मौका दिया गया, और बाद में आरोपपत्र दाखिल कर दिया गया। दिल्ली पुलिस की यह जाँच इतिहास में बदनुमा धब्बा बनकर रह गई।

नया न्यायशास्त्र: बिना जाँच के क्लीन चिट

पिछले नौ सालों में एक नई परंपरा विकसित हुई है—आरोपों की जाँच के बजाय, आरोपी के बयान को ही आधार मानकर क्लीन चिट दे दी जाती है। यह रणनीति पहले राफेल और अडानी-मोदी रिश्तों जैसे राजनीतिक भ्रष्टाचार में अपनाई गई, और अब धार्मिक स्थानों पर लगे भ्रष्टाचार के आरोपों पर भी लागू हो रही है। बीजेपी की रणनीति स्पष्ट है: जाँच के बजाय, आरोप लगाने वालों को ट्रोल करना, हतोत्साहित करना, और यह धारणा फैलाना कि आरोप दुर्भावना से प्रेरित हैं। राम माधव पर 300 करोड़ की दलाली का आरोप इसका ताजा उदाहरण है, जहाँ जाँच सत्यपाल मलिक से हुई, न कि राम माधव से।

भ्रष्टाचार को बढ़ावा: सरकार की नीतियाँ

भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाने के वादों के बावजूद, सरकार ने कालाधन या भ्रष्टाचार रोकने के लिए कोई ठोस कानून नहीं बनाया। उल्टे, इलेक्टोरल बॉन्ड्स ने पॉलिटिकल फंडिंग को भ्रष्टाचार का अड्डा बना दिया। आरटीआई एक्ट और सीईसी की नियुक्ति प्रक्रिया को कमजोर किया गया। पनामा पेपर्स, मनी लॉन्ड्रिंग, और अडानी निवेश के मामलों में सरकार घोटालेबाजों के साथ खड़ी दिखी। “कर्ज लो, भाग जाओ, फिर सेटल कर लो” जैसी योजनाएँ भ्रष्टाचार को बढ़ावा दे रही हैं।

सजग नागरिक की भूमिका

जब सरकार और जाँच एजेंसियाँ भ्रष्टाचार और अपराध के प्रति नरम रुख अपनाती हैं, तो न भ्रष्टाचार रुकता है, न अपराध कम होता है। आज भ्रष्टाचार का दैत्य देवस्थानों तक पहुँच गया है, और सरकार जाँच के बजाय बयानबाजी से अपनी जिम्मेदारी निभा रही है। एक सजग, सतर्क, और सचेत नागरिक के रूप में, हमें सरकार की कमियों के खिलाफ आवाज उठानी होगी। सरकार हमारी वजह से है, हम सरकार की कृपा पर नहीं जी रहे। #गवर्नेंस #vss

विजय शंकर सिंह

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