राजनीति में आवश्यकताएं और प्राथमिकताएं कैसे बदलती है वो इन दो तस्वीरों से साफ समझा जा सकता है,
एक तस्वीर 2011 की है जब मनमोहन सिंह प्रधानमंत्री हुआ करते थे और जिस तस्वीर में वो दिख रहे है उसमें वो कश्मीरी पंडितों के पुनर्वास के लिए टाउनशिप का उद्घाटन कर रहे है, इस टाउनशिप में लगभग 4200 फ्लैट का निर्माण हुआ था और कश्मीरी पंडितो को कब्जा भी दे दिया गया था, इसके अलावा उन्हें कांग्रेस सरकार ने 5-5 लाख का कंपनसेसन भी दिया और उन्हें पेंशन की भी व्यवस्था की, शायद नौकरियों में आरक्षण की भी ,
अब आइये दूसरी तस्वीर पर-
ये है अखण्ड राष्ट्रवादी राष्ट्रनायक विश्वगुरु प्रधानमंत्री मोदी जी जो #द_कश्मीर_फाइल की टीम के साथ फ़िल्म का प्रमोशन करते हुए दिख रहे है।
इन्होंने कश्मीरी पंडितों की समस्या का हल बस एक चुटकी बजाते हुए कर दिया #द_कश्मीर_फाइल बनवाकर, उसका जोर शोर से प्रमोशन करके, अब कश्मीरी पंडित भी खुश और देश की राष्टवादी जनता भी खुश की मोदी जी ने इस समस्या का समाधान कर दिया, देश के सामने कश्मीरी पंडितों का सच सामने ले आये, इससे पहले किसी को पता ही नही था कि कश्मीरी पंडितो के साथ कितना अत्याचार हुआ है, उन्हें घर से बेघर करके अपने ही देश में शरणार्थी बना दिया गया है।
एवेंटजीवी सरकार ने कश्मीरी पंडितों के दर्द को भी इवेंट में बदल दिया है। अपनी ही सरकार की नाकामयाबियों को पर्दे पर उतार कर, देश की जनता से कह रहे है कि कश्मीरी पंडितो के दर्द को अवश्य देखे, उनका सच पहली बार देश के सामने आया है। जनता और भक्त लहलाहोट हो रहे है फ़िल्म देखकर। हद तो तब खत्म हो जाती है जब कश्मीरी पंडित भी इस कथित राष्ट्रवादी सरकार से ये सवाल नही पूछते की इसके जिम्मेदार तो कहि न कही तुम ही हो?
लगभग 32 साल हो गए इन्हें अपनी मिट्टी अपनी मातृभूमि से निर्वासित हुए इन 32 सालो में कांग्रेश और भाजपा दोनो की सरकारे लगभग 16-16 साल रही है किन्तु जब भी कश्मीरी पंडितों के विषय उठता है तो सवाल कांग्रेस से होता है ऐसा नरेटिव सेट कर दिया गया है।
इस फ़िल्म के माध्यम से भी लगभग यही नरेटिव सेट करने का प्रयास किया गया है, किन्तु इन सबका दोषी मैं कांग्रेस को ही मानता हूं, उसने यदि उन कश्मीरी पंडितों को टॉउनशिप की जगह यही मूवी बनवा कर दिखाई होती तो आज ये नरेटिव उल्टा सेट होता। उन्हें 5-5 लाख मुआवजा देने के बजाय उनके दर्द की नुमाइश अपने मंचो से करते भाजपा के खिलाफ और अपना उल्लू सीधा करते , उन्हें नौकरियों में आरक्षण देने की बजाय मनमोहन सिंह उनके साथ सेल्फी खिंचवाते और उनकी दुर्दशा के लिए अटल को दोषी ठहराते तो आज देश की राष्टवादी जनता भी खुश होती और शायद कश्मीरी पंडित भी।
लेखक - Brijesh Singh