परिचय: नेहरू की जयंती और बाल दिवस का संदेश
स्वतंत्रता संग्राम के रण में नेहरू भारत के भविष्य का नाम थे। आजादी के बाद, सेनानियों की वाटिका से महकते हुए जिस चुनिंदा पुष्प का चयन किया गया, वह नेहरू थे। 14 नवंबर को उनकी जयंती को बाल दिवस के रूप में मनाया जाना एक आध्यात्मिक संगति है—क्योंकि बच्चा ही देश और समाज का भविष्य होता है। यह लेख पंडित जवाहरलाल नेहरू के योगदान, उनके व्यक्तित्व, और उनके खिलाफ फैलाए गए दुष्प्रचार का जवाब देता है।
नेहरू का योगदान: भविष्य की नींव
स्वतंत्रता के बाद नेहरू ने भविष्य को वर्तमान में बदलकर देश के बच्चों के लिए एक नई लड़ाई शुरू की। आज देश में जो कुछ रखने, सहेजने, या बेचने की धरोहर है, वह नेहरू द्वारा लड़ी गई आजादी के बाद की जंग का नतीजा है। उन्होंने आधुनिक भारत की नींव रखी—चाहे वह संविधान की रचना हो, वैज्ञानिक संस्थानों की स्थापना हो, या सामाजिक समानता की दिशा में कदम हों।
बाल मन जैसा व्यक्तित्व: नेहरू की पवित्रता
बच्चा ही होता है जो जाति, धर्म, पंथ, और ऊँच-नीच की भावना से अछूता होता है। झूठ बोलना तो उसने सीखा ही नहीं होता। मानवता को बचाना है तो बड़ा होकर भी बच्चा बनना होगा। पंडित नेहरू का मन भी ऐसा ही था—कलुष रहित, एक बच्चे की तरह पवित्र। यही कारण है कि उनकी जयंती को बाल दिवस के रूप में मनाया जाता है।
अतीत से वर्तमान तक: नेहरू की प्रासंगिकता
कालांतर में समय ने पंडित जवाहरलाल नेहरू को अतीत का महापुरुष बना दिया था। समय यह भरोसे से आश्वस्त था कि देश के पैदा होने वाले लाल अब नए जवाहरलाल होंगे। लेकिन ऐसा हुआ नहीं। एक-डेढ़ पीढ़ी बाद ही नेहरू को अतीत का खलनायक बनाने की प्रयोगशालाएँ चलने लगीं। लेकिन इसी कृत्य ने पंडित नेहरू को एक बार फिर वर्तमान बना दिया। अब ऐसा नहीं लगता कि नेहरू हमारे बीच नहीं हैं।
उन्हें नीचा दिखाने वाले जब खुद नंगे होने लगे, तो किसी ने सोचा भी न था कि इनका भीतरी हुलिया इतना धब्बेदार होगा। नेहरू की कंचन प्रतिमा इनके संघर्षण से और चमकने लगी, किन्तु इन पर चढ़ी जो कलई थी, वह नेहरू की मूर्ति से टकराकर उतरने लगी।
आधुनिक भारत का चित्र: नेहरू की कल्पना
आज जन्मदिन पर हम जिस नेहरू की बात करना चाहते हैं, वह प्रधानमंत्री या प्रथम प्रधानमंत्री जैसे पद पर आसीन इतिहास पुरुष की स्तुति नहीं है। यह वह नेहरू हैं, जो महलों में जन्म लेकर जन्मभूमि के लिए सालों जेल की दीवारों में कैद रहे और वहीं आधुनिक भारत के चित्र में कल्पना के रंग भर रहे थे। उन्होंने 'डिस्कवरी ऑफ इंडिया' लिखकर भारत की वैदिक सभ्यता के व्यावहारिक मायने समझाए।
नेहरू ने भारत के संविधान का आधे से ज्यादा अनुच्छेद स्वतंत्रता प्राप्ति से पहले ही लिख लिया था। संविधान की औपचारिक रचना के बाद उन्होंने इसके 'प्रिअम्बल' का एक-एक अक्षर खुद लिखकर चंद पंक्तियों में संविधान की आत्मा को जीवंत किया। इसे पढ़कर ही देशाभिमान तरंगें लेने लगता है।
समावेशी स्वभाव: नेहरू का सनातन दर्शन
सबको महत्व देने और असहमति व विरोध को स्वीकार करने का मोम जैसा स्वभाव नेहरू में सनातन धर्म के सुवास की अनुभूति कराता है, जो किसी वैष्णव संत में ही तलाशी जा सकती है। नेहरू ने मौलाना आजाद, सरदार पटेल, बाबू जगजीवन राम, डॉ. अंबेडकर, और श्यामाप्रसाद मुखर्जी को समादर देकर इसी सदाशयता को प्रमाणित किया।
दुष्प्रचार का सच: नेहरू पर जातिगत टिप्पणियाँ
नेहरू को अमान्य करने के षड्यंत्र में जो बात सबसे ज्यादा चुभती है, वह है उनकी जाति पर दुर्गंधित टिप्पणियाँ। कैसी विडंबना है कि हिंदुस्तान के मुसलमान उन्हें पंडित जी कहते नहीं थकते, लेकिन इसी देश के कुछ हिंदू पुरोधा उन्हें मुसलमान की औलाद बताते हैं। यद्यपि नेहरू की सोच में ब्राह्मणवाद का कोई स्पर्श भी नहीं था, फिर भी यह सच है कि नेहरू सारस्वत कौल ब्राह्मण थे।
यदि ऐसा सितारा किसी अन्य जाति में पैदा होता, तो उनके माथे का तिलक बनकर रहता और किसी कुटिल नेता की जीभ उन्हें कुलभ्रष्ट बताने में सौ बार काँपती। ऐसा सलूक बदनसीब ब्राह्मण के साथ ही होता रहा है। इसमें कुछ भी आश्चर्य की बात नहीं। लेकिन ब्राह्मणों को आगे बढ़ाकर नेहरू को गाली दिलाने से अन्य लोगों को अपनी मुहिम में बड़ी सुविधा हुई। वरना नेहरू को गालियाँ मिलतीं और ब्राह्मण सह लेते?
इस कुकृत्य के लिए अन्य लोग केवल भर्त्सना के पात्र हैं, तो ब्राह्मण महापाप के भागी हैं। प्रतिगामी राजनीति के केमिस्ट यह जानते हैं कि ब्राह्मण में नेहरू के प्रति घृणा बोकर ही तथाकथित राष्ट्रवाद की बिसात बिछाई जा सकती है।
नेहरू की अमरता: सत्य की जीत
तथापि, पंडित नेहरू सूरज और चाँद की तरह अमर और अमिट हैं। उन्हें इतिहास के खुले आकाश में उगने से रोकना आसान नहीं है। कोई उनका कृतज्ञ स्मरण करते हुए याद कर रहा है, तो कोई उनके वजूद को मिटाने के लिए। लेकिन कंचन की निखार बढ़ती जा रही है और विरोधियों के मलिन मनोरथ क्रमशः विफल हो रहे हैं। सत्ता और सत्य के संघर्ष में सत्य कभी हारता नहीं।
नेहरू जी के व्यक्तित्व की महत्ता इससे भी आँकी जा सकती है कि आज तक लोग रूप-रंग और परिधान में नेहरू बनने में गौरव की अनुभूति करते हैं। अकेले बेडरूम में दर्पण पर दबाव डालते हैं कि वह उन्हें एक बार नेहरू जैसा दिखा दे। लेकिन नेहरू के सौमनस्य का इत्र कागज के फूल में ठहरता ही नहीं।
नेहरू का प्रभाव: प्रेरणा और भय
नेहरू जी विश्व के करोड़ों लोगों की प्रेरणा हैं, तो अपने ही देश के कुछ लोगों के लिए दुःस्वप्न की तरह भयावह भी हैं। यही कारण है कि नेहरू परिवार का एक भ्रूण भी द्वापर के कंस की तरह इन्हें डराता और व्याकुल करता रहता है।
निष्कर्ष: सच्चे पंडित की श्रद्धांजलि
सम-सामयिक आक्षेपों को ध्यान में रखकर पंडित नेहरू के जन्मदिन पर आनंदभवन में लगी उनकी एक तस्वीर साझा की जा रही है, जो शुद्ध ब्राह्मणोचित उपनयन संस्कार की है। हमें गर्व है कि पंडित नेहरू पंडित थे। लेकिन इससे भी ज्यादा गर्व इस बात का है कि वे पंडित होने के उस चरित्र को चरितार्थ करते थे, जिसे श्रीमद्भगवद्गीता अनुमोदित करती है:
विद्याविनयसंपन्ने ब्राह्मणे गवि हस्तिनि।
शुनि चैव श्वपाके च पण्डिताः समदर्शिनः।।
विद्या और विनय से युक्त ब्राह्मण, गाय, हाथी, कुत्ता, और अभोज्य-भोजी चांडाल में भी समता भरी दृष्टि से जो एक ही परमात्मा का दर्शन करे, वह पंडित है। मैं कहता हूँ कि वह नहीं, बस केवल वही पंडित है। मेरी ओर से इतनी ही श्रद्धांजलि।
लेख: केशव कृपाल महाराज
👉इस लेख का मूल संस्करण पढने के लिए यहाँ पर क्लिक करके पढ़ सकते हैं 👈