एक ऐतिहासिक भूल
आने वाली पीढ़ी जब प्रगतिशील भारत की बर्बादी पर सवाल उठाए, तो उसे सबसे पहले यह तस्वीर दिखाना। यह आजाद भारत में गुलामी की दस्तक की पहली तस्वीर है। इन्हीं गिने-चुने दलालों और मीडिया चैनलों ने आंदोलन के नाम पर लोगों को मुर्दा लाश बना दिया। लोकपाल बिल की आड़ में देशवासियों के दिमाग में संघी एजेंडा ठूंसा गया।
1. सत्ता की मलाई: आंदोलन का इनाम
आज ये सभी लोग सत्ता में हैं। अपने हिस्से की मलाई चाटकर चैन की नींद सो रहे हैं। कोई गवर्नर बन गया, कोई मुख्यमंत्री, उप-मुख्यमंत्री, कोई राज्यसभा सांसद, तो कोई ब्रांडेड कवि बनकर बैठा है।
2. बदला हुआ भारत: मुद्दों की अनदेखी
अन्ना हजारे के चश्मे का नंबर अब महंगाई का मीटर नहीं माप पाता। सरकारी इकाइयों में व्यापम जैसे भ्रष्टाचार, राष्ट्रीय संसाधनों का निजीकरण, और बेरोजगारी किसी के लिए अहम मुद्दा नहीं। हाँ, अपना देश बदल गया है। इस बदलाव में हिस्सेदारी तो है, पर साझेदारी नहीं। उम्मीद है कि आपकी भी नहीं होगी।
निष्कर्ष: गुलामी का मंजर
इस तस्वीर को फिर से देखो। ये लोग हमारा सब कुछ काटने के बाद कैसे हंस रहे हैं। गुलामी को एंजॉय करो, क्योंकि यह सबके नसीब में नहीं आती।
Author - प्रियांशु
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