भ्रष्टाचार की जड़ें
भारत में भ्रष्टाचार एक पुरानी बीमारी है, जो यूपीए और मोदी सरकार दोनों के कार्यकाल में फलता-फूलता रहा है। यह लेख दोनों सरकारों के दौरान हुए प्रमुख भ्रष्टाचारों की तुलना करता है और यह सवाल उठाता है कि क्या बदला है—भ्रष्टाचार या उसका तरीका।
यूपीए सरकार: प्रमुख घोटाले (तथाकथित)
1. कॉमनवेल्थ गेम्स (CWG) भ्रष्टाचार
यह धारणा आम है कि 2010 के कॉमनवेल्थ गेम्स में भ्रष्टाचार हुआ, जैसा कि भारत में छोटे-बड़े निर्माण कार्यों में होता है। इसके मुख्य आरोपी सुरेश कलमाडी थे, जो तत्कालीन रेल राज्य मंत्री, भारतीय ओलंपिक संघ के अध्यक्ष, और पुणे से कांग्रेस सांसद थे। भ्रष्टाचार की वजह से इस आयोजन की छवि को गहरा धक्का लगा।
2. 2G घोटाला: काल्पनिक अनुमान?
2G घोटाला पूरी तरह काल्पनिक अनुमानों पर आधारित था। इसके मुख्य आरोपी डीएमके नेता ए. राजा और कलिमोली थे। सुप्रीम कोर्ट को इस कथित घोटाले के कोई ठोस सबूत नहीं मिले। फिर भी, इस विवाद ने यूपीए सरकार की साख को गहरा नुकसान पहुँचाया और एक सक्षम सरकार को गिरने में बड़ी भूमिका निभाई।
3. कोयला घोटाला: परंपरागत भ्रष्टाचार
कोयला खदानों के आवंटन में भ्रष्टाचार की बात सामने आई। यह कोई इकलौता मामला नहीं था; भारत में नाली से लेकर बांध तक के निर्माण में कमीशनखोरी और भ्रष्टाचार आम है। तत्कालीन कोयला मंत्री जायसवाल, जो कानपुर से कांग्रेस सांसद थे, पर आरोप लगे। लेकिन जब घोटाला उजागर हुआ, तब कोयला मंत्रालय का प्रभार प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह के पास था। डॉ. सिंह की ईमानदारी और निष्ठा पर सवाल उठाना सूरज को दीया दिखाने जैसा होगा।
मोदी सरकार: नए तरीके, पुराना भ्रष्टाचार
1. राफेल विवाद: बोफोर्स से बड़ा?
क्या 2014 से 2021 तक के सात सालों में कोई भ्रष्टाचार नहीं हुआ? राफेल सौदे का भ्रष्टाचार बोफोर्स से सौ गुना बड़ा माना जाता है। लेकिन मीडिया बिक चुका है, और सुप्रीम कोर्ट ने जल्दबाजी में सरकार को क्लीन चिट दे दी। विपक्ष असंगठित और कमजोर है, जिसके चलते जनता में भी चुप्पी छाई है।
2. भ्रष्टाचार का संस्थागत रूप
आज भ्रष्टाचार ने संस्थागत रूप ले लिया है। सरकारी और सार्वजनिक कंपनियाँ मित्रों को मिट्टी के भाव बेची जा रही हैं, और उनकी देनदारियाँ बैंकों के जरिए बट्टे-खाते में डाली जा रही हैं। बैंकों से हजारों करोड़ का लोन लेकर कंपनियाँ NPA बन रही हैं, या लोग लोन लेकर विदेश भाग रहे हैं। नेताओं का हिस्सा पनामा, मॉरीशस, या स्विस बैंकों में जमा हो रहा है।
3. जनता की बेसुधी: धर्म की अफीम
महंगाई और बेरोजगारी चरम पर है। पेट्रोल 108 रुपये प्रति लीटर हो गया, फिर भी जनता कह रही है, “आएगा तो मोदी ही!” धर्म की अफीम ने जनता को बेसुध कर दिया है, और वह अपनी पीड़ा को आवाज तक नहीं दे पा रही।
मुर्दा कौमें विद्रोह नहीं करतीं
यूपीए के समय भ्रष्टाचार हुआ, लेकिन उसे उजागर करने में मीडिया और विपक्ष सक्रिय थे। मोदी सरकार में भ्रष्टाचार का तरीका बदल गया है—यह अब अधिक संगठित और संस्थागत है। लेकिन जनता की चुप्पी और विपक्ष की कमजोरी ने इसे बेलगाम कर दिया है। लेखक का कहना है कि जब तक जनता जागेगी नहीं, तब तक भ्रष्टाचार की यह गंगा बहती रहेगी। मुर्दा कौमें विद्रोह नहीं करतीं!
Author - Praveen Malhotra