राहुल गांधी का जन्मदिन: कांग्रेस के लिए कुछ जरूरी सुझाव

परिचय: राहुल गांधी के नेतृत्व पर चिंतन

राहुल गांधी के जन्मदिन के अवसर पर उनके हितैषियों को उन बिंदुओं पर चर्चा करनी चाहिए थी, जो कांग्रेस पार्टी को मजबूत करने में मदद कर सकते थे। यह लेख चार महत्वपूर्ण सुझावों के माध्यम से राहुल गांधी और कांग्रेस के सामने मौजूद चुनौतियों और अवसरों पर प्रकाश डालता है।

an illustration of rahul gandhi with a graying beard, wearing a white kurta, speaking at an event with agressive face . He is gesturing with their right hand raised, holding a microphone close to their mouth with their left hand. The background includes other people, one of whom is partially visible, and a blurred backdrop with orange and white colors, suggesting a formal or political setting

1. अर्णब गोस्वामी इंटरव्यू: एक गलती की सजा

2014 में राहुल गांधी का अर्णब गोस्वामी के साथ इंटरव्यू याद करें। बड़े नेताओं के इंटरव्यू के बाद उनकी टीम इसे देखती है, एडिट करवाती है, और शूट से ऑन-एयर होने तक 24 घंटे से ज्यादा का समय होता है। फिर भी, उस इंटरव्यू को हरी झंडी दिखाने वाला “स्पेशलिस्ट” कौन था? इस गलती ने राहुल की छवि को नुकसान पहुँचाया। ऐसे व्यक्ति को तुरंत पार्टी से निकाल देना चाहिए था, ताकि भविष्य में ऐसी भूलें न हों।

2. कोरोना काल में सुझाव: अनसुनी सलाह

कोरोना महामारी के दौरान राहुल गांधी ने सबसे पहले अर्थव्यवस्था पर ध्यान देने की बात कही थी। लेकिन कांग्रेस शासित राज्यों—जैसे राजस्थान, छत्तीसगढ़, झारखंड, और महाराष्ट्र—के मुख्यमंत्रियों ने उनकी बातों पर ध्यान नहीं दिया। उल्टे, इन राज्यों में रिलायंस के अंबानी और SIS के चंद्रा जैसे बीजेपी को फंडिंग करने वाले व्यवसायों को कॉन्ट्रैक्ट्स में फायदा पहुँचाया गया। राहुल को जनता और विपक्ष तभी नेता मानेगा, जब उनकी पार्टी का क्षेत्रीय नेतृत्व उन्हें नेता माने। सूत्रों के अनुसार, उत्तर प्रदेश में राहुल और प्रियंका गांधी की टीमें अलग हैं। प्रियंका की टीम सक्रिय है, लेकिन इस सक्रियता से कितने नए नेता बने या दूसरी पार्टियों के नेता तोड़े गए? कांग्रेस का राष्ट्रीय और क्षेत्रीय नेतृत्व एकजुट होना होगा।

3. वैचारिक धुरी की कमी: सिद्धांतों का अभाव

हर नेता और पार्टी की एक वैचारिक धुरी होती है। नरेंद्र मोदी ने हिंदुत्व और मंदिर जैसे मुद्दों को अपनी धुरी बनाया और 2002 के दंगों के लिए माफी नहीं माँगी। मुलायम सिंह और लालू यादव ने साम्प्रदायिकता के खिलाफ अपनी धुरी नहीं छोड़ी, भले ही उनकी सरकारें चली गईं। लेकिन राहुल गांधी की वैचारिक धुरी क्या है? उन्होंने रमन सिंह सरकार के दौरान छत्तीसगढ़ में आदिवासियों के आंदोलन का समर्थन किया और दिल्ली में उनकी आवाज उठाने का वादा किया। लेकिन उनकी ही पार्टी की भूपेश बघेल सरकार में आदिवासियों पर गोली चलवाई गई, और राहुल ने इसका संज्ञान नहीं लिया। डीजल, महंगाई, और कालाधन जैसे मुद्दे चुनावी जुमले हैं, वैचारिक धुरी नहीं। राहुल को एक स्पष्ट सिद्धांत अपनाना होगा और उसका पालन करना होगा।

4. युवा नेताओं को मौका: नई कांग्रेस की जरूरत

कांग्रेस में युवा नेताओं को मौका देने की कमी है। जब शहजाद पूनावाला ने राष्ट्रीय अध्यक्ष पद के लिए चुनाव लड़ना चाहा, तो उनकी सदस्यता रद्द कर दी गई। राहुल के करीबी मिलिंद देवड़ा, ज्योतिरादित्य सिंधिया, और सचिन पायलट ने अपने राज्यों में बीजेपी को हराया था, जबकि राहुल के प्रचार के बावजूद अन्य राज्यों में बीजेपी जीत रही थी। इन युवा नेताओं को अन्य राज्यों का प्रभारी या मुख्यमंत्री बनाने पर विचार हो सकता था, लेकिन पुराने नेताओं ने ऐसा नहीं होने दिया। यदि राहुल को नई कांग्रेस बनानी है, तो नए चेहरों को मौका देना होगा। बूढ़े सैनिकों से जवान फौज तैयार नहीं होती। सिंधिया, पायलट, और देवड़ा पर यह आरोप लगता है कि उन्होंने अपने पिता के नाम के अलावा क्या किया? लेकिन यही आरोप राहुल पर भी तो लगता है। कम से कम ये नेता मोदी लहर में अपने राज्यों में बीजेपी को हरा पाए।

निष्कर्ष: राहुल गांधी की जिम्मेदारी और संभावनाएँ

राहुल गांधी में अपार संभावनाएँ हैं। उनके पास देश की सबसे बड़ी पार्टी की कमान है, लेकिन इसके साथ बड़ी जिम्मेदारी भी है। उन्हें अधिक मंथन, प्रयोग, और कर्मों के माध्यम से उदाहरण पेश करना होगा। यदि वे ऐसा नहीं करेंगे, तो पार्टी टूटती रहेगी, और राहुल गांधी उस मुकाम तक नहीं पहुँच पाएँगे, जिसके वे हकदार हो सकते हैं। #कालचक्र

author - लक्ष्मीप्रताप सिंह

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