परिचय: नेहरू की विरासत और 21वीं सदी 20वें दशक की नजर
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विशाल जनसभा को संबोधित करते प्रथम सेवक नेहरु |
पंडित जवाहरलाल नेहरू, भारत के पहले प्रधानमंत्री, स्वतंत्रता संग्राम के योद्धा, और आधुनिक भारत के निर्माता, आज भी भारतीय इतिहास और राजनीति में एक विशालकाय व्यक्तित्व हैं। 2025 में, उनकी 57वीं पुण्यतिथि पर, हम उनकी उस विरासत को याद करते हैं जो समय की सीमाओं से परे है। लेखक अविरल जैन "साहिब" नेहरू को "प्रथम सेवक" कहकर एक गहरी बात कही है—प्रधान सबसे ऊपर का विचार है, लेकिन प्रथम सबसे पहले का। यह लेख नेहरू की विचारधारा, उनके योगदान, और उनके खिलाफ फैलाए गए दुष्प्रचार का जवाब देता है, ताकि हम सच्चाई को समझ सकें।
नेहरू, पटेल और गांधी: एकता और वैचारिक मतभेद
महात्मा गांधी के सेनापति थे सरदार पटेल, और गांधी जी चाहते थे कि पटेल कभी नेहरू का साथ न छोड़ें—उनके जाने के बाद भी। नेहरू, पटेल, सुभाषचंद्र बोस, और जिन्ना सभी एलिट क्लास के लोग थे। इनके पास पैसों की धन-संपदा और सामाजिक सम्मान की कोई कमी नहीं थी; सभी की विरासत में समृद्धि थी। लेकिन इन नेताओं ने अपनी संपन्नता को देश की आजादी के लिए समर्पित कर दिया।
नेहरू, पटेल, और गांधी के बीच आर्थिक मुद्दों पर बिलकुल अलग-अलग विचारधारा थी। तीनों कभी एक तरह से नहीं सोचते थे। सामाजिक और सांप्रदायिक विषयों पर भी सरदार पटेल हमेशा गांधी और नेहरू से अलग राय रखते थे। पटेल का यह विचार सुभाषचंद्र बोस से मिलता था। 1937-38 में जब सुभाष को कांग्रेस का अध्यक्ष बनाया गया, तो पार्टी के सदस्यों की मंशा थी कि कांग्रेस गांधी जी की अहिंसा के विचार पर चले। लेकिन सुभाष अहिंसा से दूरी रखते थे, जिसके चलते उनका कार्यकाल ज्यादा नहीं चला। दूसरी ओर, नेहरू की धर्मनिरपेक्षता की विचारधारा ने उन्हें जनमानस में दिन-ब-दिन मजबूत किया।
नेहरू का उदय: कांग्रेस का नेतृत्व और पूर्ण स्वराज
1910 में एक युवा बैरिस्टर ने भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन से प्रभावित होकर राजनीति में कदम रखा। 1920 तक वे कांग्रेस के मजबूत नेता बनकर उभरे, और 1929 में "पूर्ण स्वराज" का नारा देने वाले पंडित नेहरू कांग्रेस के अध्यक्ष थे। "धर्मनिरपेक्ष" भारत की संकल्पना रखने वाले नेहरू ने 1930 में कांग्रेस को भारत की आजादी का "नेता-संगठन" बनाया।
1937 में हुए प्रांतीय चुनावों में कांग्रेस ने हिंदू महासभा और मुस्लिम लीग को पीछे छोड़कर एकतरफा जीत हासिल की। इन चुनावों में हिंदू महासभा और मुस्लिम लीग की "विभाजनकारी" विचारधारा को भारतीय जनमानस ने ठुकरा दिया। यहीं से नेहरू भारत के सर्वमान्य नेता बनने की राह पर तेजी से आगे बढ़े।
सांप्रदायिक एकता के लिए नेहरू का संकल्प
सांप्रदायिक दंगों के समय नेहरू ने अपनी जान की परवाह न करते हुए उपद्रवियों के बीच जाकर कहा, "अगर तुम्हें पाकिस्तान से शिकायत है तो सेना में भर्ती हो जाओ, हम हमला कर देंगे, तुम बदला ले लेना। पर भारत के मुसलमानों को मत मारो, इनका कोई दोष नहीं है।" यह नेहरू की धर्मनिरपेक्षता और सांप्रदायिक एकता के प्रति अटल संकल्प का प्रतीक था।
बटवारे का दर्द और पाकिस्तान के प्रति नीति
भारत को भारत रखने के लिए नेहरू का संकल्प कभी डगमगाया नहीं। आजादी के बाद देश के बटवारे को उन्होंने एक अमिट जख्म माना और इसे सीने में छुपाए रखा। अपने द्विपक्षीय राजनैतिक भेंट के लिए वे कभी खुशी से पाकिस्तान नहीं गए। उनकी केवल दो यात्राएं रहीं—25 से 27 जुलाई 1953 में कश्मीर के लिए और 19 से 23 सितंबर 1960 में सिंधु जल संधि के लिए। बाकी दोनों देशों के बीच किसी अन्य स्थापना को उन्होंने कभी खुशी से रचने की कोशिश नहीं की।
नेहरू के इस विचार का असर यह हुआ कि 1960 के बाद 28 साल तक कोई भारतीय प्रधानमंत्री पाकिस्तान नहीं गया। 1988 में राजीव गांधी ने यह अकाल खत्म किया। लेकिन उनके बाद मनमोहन सिंह सहित कोई कांग्रेसी या अटल बिहारी वाजपेयी और नरेंद्र मोदी के अलावा अन्य कोई प्रधानमंत्री पाकिस्तान नहीं गया। अब तक केवल चार प्रधानमंत्री पाकिस्तान की जमीन पर उतरे—नेहरू, राजीव, अटल, और मोदी। यह परिणाम था नेहरू के उस विचार का, जो बटवारे को कभी स्वीकार नहीं कर पाया।
आधुनिक भारत का निर्माण: नेहरू की दूरदर्शिता
इसी समय नेहरू की दूरदर्शिता निरंतर कार्यशील रही। 1951 में उन्होंने पहली पंचवर्षीय योजना शुरू की। 1955 में देश का पहला कंप्यूटर कलकत्ता में स्थापित किया। उसी साल छुआछूत के खिलाफ कानून बनाया। 1956 में औद्योगिक क्रांति का आरंभ हुआ। 1959 में दूरदर्शन की स्थापना हुई। 1961 में IIT, AIIMS, और IIM जैसे संस्थान स्थापित किए गए। UGC, ISRO, CSIR, DRDO जैसी रचनाएं कीं, जो उस समय देश की कल्पना में भी नहीं थीं। अपने जीवन के अंतिम वर्ष में उन्होंने BHEL देकर देश को एक और तोहफा दिया।
ऐतिहासिक भाखड़ा नंगल बांध परियोजना (1961) का निरीक्षण करते समय नेहरू ने एक मजदूर से पूछा, "पता है तुम्हें तुम क्या बना रहे हो?" मजदूर अपने सहज और जमीनी प्रधानमंत्री को जवाब नहीं दे पाया। तब नेहरू ने कहा, "तुम आने वाली पीढ़ी के लिए नया भारत बना रहे हो।" यह नेहरू की वह सोच थी, जो हर भारतीय को राष्ट्र निर्माण का हिस्सा मानती थी।
कश्मीर मुद्दा: नेहरू की दृढ़ता
कश्मीर मुद्दे पर हिंदू महासभा और संघ का सुझाव था कि हमें कश्मीर छोड़ देना चाहिए और जम्मू ले लेना चाहिए। लेकिन नेहरू ने जवाब दिया, "जम्मू तो हमारा है ही, लेना तो कश्मीर है।" कश्मीर का वह हिस्सा जो आज POK है, राजा हरि सिंह की गलती से निकल गया, क्योंकि उन्होंने कबायली लड़ाकों से हार मान ली। नेहरू ऐसा नहीं चाहते थे।
सरदार पटेल को कश्मीर विलय का श्रेय दिया जाता है, जबकि प्रधानमंत्री नेहरू थे। लेकिन कश्मीर मुद्दे पर हर समस्या के लिए नेहरू को अकेले खड़ा कर दिया गया। यह अन्यायपूर्ण है, क्योंकि कश्मीर को भारत का हिस्सा बनाने में नेहरू और पटेल दोनों की भूमिका थी।
नेहरू की आत्म-आलोचना: एक अनोखा व्यक्तित्व
1936 में नेहरू ने अपने ही खिलाफ एक आर्टिकल लिखा। कारण यह था कि उस समय वे इतने बड़े नेता थे और उनकी स्वीकार्यता इतनी ज्यादा थी कि उनकी आलोचना के लिए कुछ मिलता ही नहीं था। तब उन्होंने खुद अपनी बुराई करते हुए लिखा, "तुम्हें सीजर नहीं बनना है।" यह नेहरू की आत्म-चिंतन की क्षमता को दर्शाता है—एक ऐसा गुण जो आज के नेताओं में शायद ही दिखता हो।
नेहरू की विशालता: एक युग का प्रतीक
नेहरू को इतिहास के कुछ पन्नों से आधा-अधूरा उठाकर एक नए नेहरू का निर्माण करना आज की राजनीति की मजबूरी हो सकती है। लेकिन नेहरू इतना विशालकाय किरदार हैं कि उन्हें छोटा करना समय के वश की बात नहीं है। उनकी विशालता का यह परिचय काफी है कि वे सरदार पटेल, सुभाषचंद्र बोस, सावरकर, और जिन्ना जैसे दिग्गजों के बीच रहते हुए गांधी जी के जाने के बाद भी 17 साल तक प्रधानमंत्री के रूप में स्वीकार किए गए। उस समय कांग्रेस में उनके विरोधी स्वर भी ऊँचे थे, लेकिन उन्होंने कभी किसी को मिटाने या हटाने की बात नहीं की।
जब सरदार पटेल ने इस्तीफा देना चाहा, तो नेहरू ने उन्हें रोकते हुए कहा, "आप पागल हो सकते हैं, राष्ट्रविरोधी नहीं। क्योंकि आप खुद उस राष्ट्र का हिस्सा हैं, आप खुद के विरोधी कैसे हो सकते हैं?" यह नेहरू की वह सोच थी जो एकता को सबसे ऊपर रखती थी।
सामूहिक भारत की संकल्पना: नेहरू का दर्शन
दामोदर घाटी का उद्घाटन एक आदिवासी महिला मजदूर से करवाने वाले नेहरू के लिए देश का हर नागरिक, हर तत्व भारत माता था। यही विचार सामूहिक भारत कहलाता है। प्रधान सबसे ऊपर का विचार है, प्रथम सबसे पहले का—यही फर्क है नेहरू और आज के राजनैतिक कद का।
नेहरु- एक युग, एक प्रेरणा
57वीं पुण्यतिथि मात्र एक तिथि है। नेहरू एक युग हैं और हमेशा रहेंगे। 2025 में, जब हम उनकी विरासत को देखते हैं, तो IIT, ISRO, AIIMS जैसे संस्थान और भाखड़ा नंगल जैसे प्रोजेक्ट्स हमें उनकी दूरदर्शिता की याद दिलाते हैं। नेहरू ने एक ऐसे भारत की नींव रखी, जो धर्मनिरपेक्ष, वैज्ञानिक, और एकजुट हो। हमें उनकी आलोचना या प्रशंसा तथ्यों के आधार पर करनी चाहिए, न कि दुष्प्रचार के आधार पर।
अविरल जैन "साहिब"
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