पउरा…
(कांग्रेस सेवादल वोलंटियर द्वारा संग्रहित. INC bihar)
भोजपुरी में इस शब्द का प्रयोग बहुतायत से किया जाता है! इसका शाब्दिक अर्थ है- आगंतुक के पैर का निशान.
ये एक superstitious (अंधविश्वासी) मान्यता है! ऐसा माना जाता है कि किसी इंसान या वस्तु का आगमन अथवा प्रस्थान किसी दूसरे इंसान के जीवन में सकारात्मक या नकारात्मक प्रभाव छोड़ सकता है!
मसलन, घर में नयी बहू आये और ससुर का प्रमोशन हो जाये! ....या संतान के पैदा होते ही पिता की नौकरी लग जाये....या कोई लंबा चल रहा मुकदमा सुलझ जाये...
इन सभी स्थितियों में कहा जाता है कि बहू/संतान का पउरा इस घर के लिए शुभ है!
वही दूसरी तरफ यदि कोई अनहोनी हो जाये तो कहा जाता है कि बहू/संतान का पउरा इस घर के लिए अशुभ है!
ऐसा माना जाता है कि ये विशुध्द मध्यमवर्गीय खयाल है, जहाँ समाज में छोटी छोटी बातों को एक दूसरे से जोड़कर देखा जाता है! इस खयाल की सबसे बड़ी खासियत ये है कि इसमें अपनी गलतियों के परिणाम का दोष किसी दूसरे पर डाल दिया जाता है!
जब हम इसे वृहद् रूप में देखते हैं तो पाते हैं कि यह समस्या सिर्फ मध्यमवर्ग तक ही सीमित नही है! समाज के हर हिस्से में इसने अपना पैर पसार रखा है!
बॉलीवुड में मुहूरत शॉट होते हैं ताकि फिल्म अच्छी चले! कई खेलों के खिलाड़ी अपनी जर्सी पर लिखे नंबर को लेकर चिंतित रहते हैं! क्रिकेट के खिलाड़ी तो इतने अंधविश्वासी होते हैं कि वे यहाँ तक सोचते हैं कि बैटिंग के लिये पवेलियन से निकलते वक्त कौन सा पैर पहले बाहर निकालना है!
हाल ही में हमारे रक्षामंत्री राफेल फाइटर जेट के पहियों के नीचे नींबू रखकर उसकी पूजा किये हैं!
कुल मिलाकर इन सबका मकसद यही रहता है कि अनहोनी कम हो और लाभ ज्यादा मिले! सब आनंदित रहें! हमेशा शुभ समाचार मिलते रहें!
भारत की वर्तमान दशा के लिए 2014 का एक ऐसा ही "पउरा" जिम्मेदार है, जो शुभ तो बिलकुल भी नहीं है!
अर्थव्यवस्था में छोटे मोटे उतार चढ़ाव होते रहते हैं!! साल की कोई एक तिमाही ख़राब हो सकती है! देश के किसी कोने में कोई घटना हो जाये...समझ में आती है!
यहाँ तो साल दर साल एक ही स्थिति है! पूरे देश का पिछला पूरा साल तो सिर्फ खाने और शौच करने में निकल गया!
नौकरियों का कहीं कोई अता पता नहीं है! जो लोग नौकरियां कर रहे हैं उनकी भी सैलरी कट के आ रही है! आमदनी दिन प्रतिदिन घटती जा रही है क्योंकि चीजों के दाम आसमान छू रहे हैं! बच्चों की पढ़ाई अटकी पड़ी है! लोग काम पर नहीं जा पा रहे! घरों में आवश्यक वस्तुओं के लिए घमासान छिड़ा हुआ है! पेट्रोलियम और उससे जुड़े प्रोडक्ट्स के दाम बढ़ते ही जा रहे हैं! किसान अलग धरने पर बैठे हैं! सीमा पर सैनिक अभी भी मारे जा रहे हैं!
इतनी बुरी दशा तो गठबंधन वाली सरकारों के दौर में भी नहीं रही, जो दशा इस पूर्ण बहुमत वाली सरकार के दौर में है!
अभी हाल ही में भारतीय रेल की सेवा ली है मैंने! एक तो स्पेशल बोलकर डेढ़ गुना किराया ले रहे हैं! न बुजुर्गों को रियायत है न छात्रों को और न ही सैनिकों और महिलाओं को! ऊपर से इस भयंकर ठंड में कम्बल-चादर, खानापानी खुद लेकर चलना पड़ रहा है! जबकि इससे कम पैसे में ये सब ट्रेनों में मुहैया कराया जाता था!
फिर भी लोग चुप हैं!
लॉकडाउन खुले 6 महीने से ज्यादा हो गए, बाज़ार, धार्मिक स्थल, तीर्थ, चुनावी रैली, आंदोलन सब खुल गए लेकिन अभी तक जनरल व लोकल ट्रेनें नहीं चली हैं। कुछेक स्पेशल ट्रेनें चल रही हैं जिनमें ज्यादा किराया वसूला जा रहा है।भारतीय रेलवे विश्व का सबसे बड़ा पैसेंजर नेटवर्क है जिसमें लॉकडाउन से पहले तक करोड़ों लोग प्रतिदिन सफर करते थे।आज ये करोड़ों लोग अपने वाहनों का प्रयोग करने के मजबूर हैं। इसी कारण लोगों की पेट्रोल डीजल की खपत भी बढ़ गई है।अब ये तो बताने की जरूरत नहीं होगी कि पेट्रोल डीजल पर उसके मूल्य से भी ज्यादा एक्सर्साइज और वैट वसूला जा रहा है।सरकार का एकमात्र लक्ष्य है - लूटो - राजीव रावत
वस्तुओं के दाम जब 10 दिनों में 50 पैसे बढ़ा करते थे तो लोग सड़कों पर आकर हल्ला मचाते थे! आज एक साथ 5,10 और 50 रूपये तक बढ़ रहे हैं फिर भी लोग खामोश हैं!
![]() |
वो भी क्या खूब दिन थे, 10 दिन में ५० पैसे दाम बढ़ने पर सड़क पर तांडव मचाते थे !! |
इतनी तगड़ी वसूली के बावजूद इकॉनमी लुढ़की हुई पड़ी है! खर्चे भी कुछ खास नहीं हैं! क्योंकि संसद बन्द पड़ी हुई है! सांसदों की सांसद निधि रुकी पड़ी है! कर्मचारियों का DA बोनस सब रुका पड़ा है! सब्सिडी बन्द है! रेलें रुकी पड़ी हैं! लोगों की आवाजाही नियंत्रित है! बच्चों के स्कूल बंद पड़े हैं! क्यों?ढ़ोल की पोल !
क्योंकि इनका पउरा ही मनहूसियत भरा है!