#नीतिआयोग #NITI
क्या अधिक लोकतंत्र से आर्थिक सुधारों को लागू करने में नीति आयोग को मुश्किलें आ रही हैं ?
टू मच डेमोक्रेसी ! नीतिआयोग, NITI |
देश के थिंकटैंक, नीती आयोग ( NITI ) के प्रमुख अमिताभ कांत ने कहा है कि, देश मे
लोकतंत्र कुछ ज्यादा ही है, इस लिये आर्थिक सुधारों में
दिक्कत हो रही है। हालांकि पीटीआई के हवाले से कहा
गया उनका बयान, सार्वजनिक होते ही, विवादित
हो गया फिर उनकी यह सफाई भी आ गयी कि, उनका यह आशय नहीं था।
उन्होंने क्या कहा था, यह उन्ही के शब्दों में पढ़े,
“Tough reforms are very difficult in the Indian context.
We are too much of a democracy. For the first time, the government has had the
courage and determination to carry out hard-headed reforms across sectors,”
“Mining, coal, agriculture, labour, these are very difficult reforms. The
easier reforms were done away with. You needed a huge amount of political
determination and administrative will to carry out these reforms that are being
done,”
( Amitabh Kant )
हिंदी में -
“भारतीय संदर्भ में कड़े सुधार बहुत कठिन हैं।
हमें बहुत ज्यादा लोकतंत्र मिल गया हैं। पहली बार, सरकार
के पास सेक्टरों में कठोर सुधारों को करने का साहस और दृढ़ संकल्प था, “खनन, कोयला, कृषि, श्रम, ये बहुत कठिन सुधार हैं। आसान सुधारों के साथ
दूर किया गया। आपको इन सुधारों को पूरा करने के लिए बड़ी मात्रा में राजनीतिक दृढ़
संकल्प और प्रशासनिक इच्छाशक्ति की आवश्यकता थी, "
(अमिताभ कांत)
गर्त में गिरती अर्थव्यस्था, ये कैसा सुधार ?
एक सवाल अक्सर उठता है कि आर्थिक सुधार के ये महान कार्यक्रम किसका सुधार कर रहे हैं ? 31 मार्च 2020 तक, जब कोरोना ने अपनी हाज़िरी दर्ज भी नहीं कराई थी, तब तक जीडीपी गिर कर, अपने निम्नतम स्तर पर आ चुकी थी। आरबीआई से उसका रिज़र्व लिया जा चुका था। तीन बैंक, यस, पंजाब कोऑपरेटिव बैंक और लक्ष्मी विलास बैंक बैठ गए थे, बैंकिंग सेक्टर को बचाने के लिये कुछ बैंकों को एक दूसरे में विलीन करना पड़ा। बैंकों में अब कितना आर्थिक सुधार चाहिये सर ?
- हम जीडीपी में बांग्लादेश से भी पीछे हैं।
- बेरोजगारी चरम पर है। 2016 के बाद सरकार ने बेरोजगारी के आंकड़े देना बंद कर दिये हैं
- मैन्युफैक्चरिंग इंडेक्स गिरने लगा और इतना गिरा कि शून्य से नीचे आ गया। आयात निर्यात में कमी आयी।
- भुखमरी इंडेक्स में हम 107 देशों में 94 नम्बर पर आ गए ।
- प्रसन्न वदनं के देश मे खुशहाली इंडेक्स में हम 144 वे स्थान पर रौनक अफरोज हैं। जीडीपी यानी विकास दर ही नहीं गिर रही है, बल्कि जीडीपी संकुचन की ओर बढ़ रही है।
लोकतंत्र
की स्थिति
अब लोकतंत्र का हाल देख लीजिए। 'डेमोक्रेसी के वैश्विक सूचकांक' में भारत की रैंक में 10 स्थानों की गिरावट, यानी 41 से 51वें स्थान पर हम
फिलहाल हैं। भारत की स्थिति अब पाकिस्तान से ही कुछ बेहतर है। भारत को दोषपूर्ण
लोकतंत्र की श्रेणी में रखा गया है जबकि दुनिया मे श्रेष्ठ लोकतंत्र नार्वे का
माना गया है. दूसरे नंबर पर आइसलैंड और तीसरे स्थान पर स्वीडन है. इसके बाद यूरोप
के अन्य देश-फिनलैंड, स्विट्जरलैंड और डेनमार्क आदि हैं।
कानून
की उड़ती धज्जियाँ और नोटबंदी पर “पिन ड्रॉप साइलेंस”
कानून और व्यवस्था की स्थिति तथा अपराध, जब कर्फ्यू लगा दिया जाता है तब बिलकुल
नियंत्रित हो जाता है। पर इसके लिये पूरे शहर को तो नीम बेहोशी की हालत में बराबर
नही रखा जा सकता है ! नीति आयोग एक एक्सपर्ट थिंक टैंक है। वह देश की आर्थिक
बेहतरी के लिए सोचता है और योजनाएं बनाता है। पर 2016 के बाद जब से नोटबन्दी हुयी देश की अर्थव्यवस्था गिरती ही चली गयी। नोटबन्दी
किसका आइडिया था सर ? आप यानी नीति आयोग का, या किसी और का ?
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घंटे प्रोपगेंडा के बीच गौण होते जनता के मुद्दे
एक बात स्प्ष्ट है, यदि आर्थिक सुधारों के एजेंडे के केंद्र में जनता, जनसरोकार, लोककल्याणकारी राज्य के उद्देश्य और जनहित
के कार्यक्रम नहीं हैं तो वह और जो कुछ भी हो, सुधार जैसी
कोई चीज नहीं है। लोग व्यथित हों, पीड़ित हों, खुद को बर्बाद होते देख रहे हों, और जब वे अपनी बात,
अपनी सरकार से कहने के लिए एकजुट होने लगें तो थिंकटैंक को इसमे टू
मच डेमोक्रेसी नज़र आने लगे ! इससे तो यही निष्कर्ष निकलता है कि इन सब आर्थिक
सुधारों की कवायद के केंद्र में, जनता के बजाय कोई और है। और
जो है, वह अब बयाँ है।
Author - विजय शंकर सिंह
■ Tough
reforms difficult in India, says Niti Aayog CEO Amitabh Kant - india news -
Hindustan Times- https://www.hindustantimes.com/india-news/tough-reforms-difficult-in-india-says-niti-aayog-ceo-amitabh-kant/story-fLWRSxIfNEl8HsvfuvJaaK.html
■ “Too much democracy”: NITI Aayog CEO Amitabh Kant denies what he
stated twice -https://www.altnews.in/too-much-democracy-niti-aayog-ceo-amitabh-kant-denies-what-he-stated-twice/