....जिसने प्रतिमाएं नहीं संस्थानों के प्रतिमान बनाए !!

उसने प्रतिमाये नहीं बनवाई

संस्थानों के प्रतिमान बनाये !

सकी आँखों के सामने एक ऐसा भारत था जहां आदमी की उम्र 32 साल थी। अन्न का संकट था। बंगाल के अकाल में ही पंद्रह लाख से ज्यादा लोग मौत का निवाला बन गए थे। टी बी ,कुष्ठ रोग , प्लेग और चेचक जैसी बीमारिया महामारी बनी हुई थी। पूरे देश में 15 मेडिकल कॉलेज थे। उसने विज्ञानं को तरजीह दी।

ह वह घड़ी थी जब देश में 26 लाख टन सीमेंट और नो लाख टन लोहा पैदा हो रहा था। बिजली 2100 मेगावाट तक सीमित थी। यह नेहरू की पहल थी।

image of front gate of icmr institute of virology that was founded by visionary jawaharlal nehru

  • टीबी एक बड़ी समस्या थी। 1948 में मद्रास में प्रयोगशाला स्थापित की गई और 1949 ,में टीका तैयार किया गया। देश की आधी आबादी मलेरिया के चपेट में थी। इसके लिए 1953 में अभियान चलाया गया । एक दशक में मलेरिया काफी हद तक काबू में आ गया।
  • छोटी चेचक बड़ी समस्या थी। 1951 में एक लाख 48 हजार मौते दर्ज हुई। अगले दस साल में ये मौते 12 हजार तक सीमित हो गई। भारत की 3 फीसद जनसंख्या प्लेग से प्रभावित रहती थी। 1950 तक इसे नियंत्रित कर लिया गया।
  • 1947 में पंद्रह मेडिकल कॉलेजों में 1200 डॉक्टर तैयार हो रहे थे।
  • 1965 में मेडिकल कॉलेजों की संख्या 81 और डॉक्टरस की तादाद दस हजार हो गई।
  • 1956 में भारत को पहला AIMS मिल गया। यही एम्स अभी कोरोना में मुल्क का निर्देशन कर रहा है।

 in this image AIIMS director explaning the model of AIIMS institute on 21st may 1959.

  • 1958 में मौलाना आज़ाद मेडिकल कॉलेज और 1961 में गोविन्द बल्ल्भ पंत मेडिकल संस्थान खड़ा किया गया।

this is the image of govind vallabh pant medical institute, it was also a result of pt. nehru's vision.

जवाहरलाल नेहरू की आंखों में प्रगतिशील भारत का सपना था। प्रतिमाएं (मूर्तियाँ) बनाना उनकी प्राथमिकता नहीं थी। वो तो देश को उन्नत बनाने वाले प्रतिष्ठान (इंस्टिट्यूट) बनाने में लगे थे, जो आगे चलकर विकास का प्रतिमान (मॉडल) बने


पंडित नेहरू उस दौर के नामवर वैज्ञानिको से मिलते और भारत में ज्ञान विज्ञान की प्रगति में मदद मांगते। वे जेम्स जीन्स और आर्थर एडिंग्टन जैसे वैज्ञानिको के सम्पर्क में रहे। नेहरू ने सर सी वी रमन ,विक्रम साराभाई ,होमी भाभा ,सतीश धवन और एस एस  भटनागर सरीखे वैज्ञानिको को साथ लिया। इसरो तभी स्थापित किया गया तथा  विक्रम साराभाई इसरो के पहले पहले प्रमुख बने।

भारत आणविक शक्ति बने। इसकी बुनियाद नेहरू ने ही रखी। 1954 में भारत ने आणविक ऊर्जा का विभाग और रिसर्च सेंटर स्थापित कर लिया था।

जवाहरलाल नेहरू के प्रधानमंत्रित्व काल में फिजिकल रीसर्च लैब ,कौंसिल ऑफ़ साइंटिफिक एंड इंडस्ट्रियल रीसर्च ,नेशनल केमिकल लेबोरटरी ,राष्ट्रिय धातु संस्थान ,फ्यूल रिसर्च सेंटर और गिलास एंड सिरेमिक रिसर्च केंद्र जैसे संस्थान खड़े किये। आज दुनिया की महफ़िल में भारत इन्ही उपलब्धियों के सबब मुस्कराता है।

अमेरिका की एम आई टी MIT का तब भी संसार में बड़ा नाम था। नेहरू 1949 में अमेरिका में MIT गए ,जानकारी ली और भारत लौटते ही IIT आइ आइ टी स्थापित करने का काम शुरू कर दिया। प्रयास रंग लाये। 1950 में खड़गपुर में भारत को पहला IIT मिल गया। आज इसमें दाखिला अच्छे भविष्य की जमानत देता है. आइ आइ टी प्रवेश इतना अहम पहलु है कि एक शहर की अर्थव्यवस्था इसने नाम हो गई है। 1958 में मुंबई ,1959 में मद्रास और कानपुर और आखिर में 1961 में दिल्ली IIT वाले शहर हो गए।

उसने बांध बनवाये ,इस्पात के कारखाने खड़े किये और इन सबको आधुनिक भारत के तीर्थ स्थल कहा

नेहरू ने जब संसार को हमेशा के लिए अलविदा कहा ,बलरामपुर के नौजवान सांसद वाजपेयी [29 मई 1964] संसद मुखातिब हुए. नेहरू के अवसान को वाजपेयी ने इन शब्दों में बांधा '' एक सपना था जो अधूरा रह गया ,एक गीत था जो गूंगा हो गया ,एक लौ अनंत में विलीन हो गई , एक ऐसी लो जो रात भर अँधेरे से लड़ती रही ,हमे रास्ता दिखा कर प्रभात में निर्वाण को प्राप्त हो गई” । और भी बहुत कुछ कहा।

आज़ादी की लड़ाई लड़ते हुए वो 3259 दिन जेल में रहा। उसने सच में कुछ नहीं किया?

कोई पीढ़ियों की सोचता है ,कोई रूढ़ियों की।

शत शत

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