आपातकाल क्यो जरूरी था ?
क्रांतिकारी सुधार: बैंकों का राष्ट्रीयकरण
1969 में इंदिरा गांधी ने 14 प्रमुख निजी बैंकों का राष्ट्रीयकरण किया। उस समय निजी बैंक मालिक जनता के जमा पैसे का उपयोग अपने कारोबार के लिए करते थे, जिनका मुख्य उद्देश्य लाभ कमाना था, न कि जनकल्याण या राष्ट्रनिर्माण। राष्ट्रीयकरण के बाद ये बैंक जनता के लिए खुले, जिसने देश के आर्थिक विकास में क्रांतिकारी योगदान दिया। यह कदम सामाजिक और आर्थिक समानता की दिशा में एक बड़ा बदलाव था।
प्रिवी पर्स की समाप्ति: राजशाही पर प्रहार
आजादी के बाद, 562 रियासतों ने अपने राज्य भारत में विलय किए, लेकिन उन्हें प्रिवी पर्स के रूप में भारी-भरकम राशि मिलती थी। यह राशि 5 हजार से लेकर लाखों रुपये तक थी, जिसमें 102 रियासतों को 1 लाख से अधिक और 10 रियासतों को 10 लाख से अधिक की राशि प्राप्त होती थी। 1971 में इंदिरा गांधी ने इस विशेषाधिकार को समाप्त कर दिया, जिससे राजा-महाराजाओं की आर्थिक शक्ति कम हुई और देश की एकता को मजबूती मिली।
कोयला खदानों का राष्ट्रीयकरण: श्रमिक हितों की रक्षा
1973 में इंदिरा गांधी ने देश की सभी कोयला खदानों का राष्ट्रीयकरण किया। पहले ये खदानें निजी कारोबारियों के हाथ में थीं, जिनकी श्रमिक हितों या सामाजिक जवाबदेही के प्रति कोई जिम्मेदारी नहीं थी। राष्ट्रीयकरण से कोयला उद्योग को व्यवस्थित किया गया, श्रमिकों के हितों को प्राथमिकता दी गई, और देश की ऊर्जा जरूरतों को पूरा करने में मदद मिली।
विपक्ष का आक्रोश: जयप्रकाश नारायण का आंदोलन
इन सुधारों ने बैंकरों, राजा-महाराजाओं, और कोयला खदान मालिकों जैसे शक्तिशाली समूहों को इंदिरा के खिलाफ कर दिया। उन्होंने अपने धन और प्रभाव का उपयोग कर जयप्रकाश नारायण के नेतृत्व में विपक्ष को एकजुट किया। 25 जून 1975 को दिल्ली के रामलीला मैदान में एक विशाल रैली हुई, जहां जयप्रकाश ने सेना और पुलिस से सरकार के आदेश न मानने का आह्वान किया। यह आह्वान देश की आंतरिक और बाह्य सुरक्षा के लिए गंभीर खतरा बन गया।
आपातकाल का लागू होना: मजबूरी या जरूरत?
आपातकाल का अंत और लोकतंत्र की पुनर्स्थापना
जब हालात सामान्य हुए, इंदिरा गांधी ने 1977 में आपातकाल हटाकर आम चुनाव कराए, भले ही उनके खिलाफ माहौल था। इस चुनाव में उन्हें हार का सामना करना पड़ा, जिसे उन्होंने स्वीकार किया। 1977 से 1979 तक जनता दल की सरकार रही, जो अंतर्कलह के कारण ढह गई। 1979 के चुनाव में इंदिरा गांधी को ऐतिहासिक बहुमत मिला और वे पुनः प्रधानमंत्री बनीं। यह कांग्रेस की लोकतंत्र के प्रति प्रतिबद्धता को दर्शाता है।
2014 और अघोषित आपातकाल: एक तुलना
2012-13 में उद्योगपतियों और सत्तालोलुप लोगों ने UPA सरकार के खिलाफ माहौल बनाया। मनगढ़ंत घोटालों, मीडिया के दुरुपयोग, और जुमलों के जरिए 2014 और 2019 में सत्ता हासिल की गई। आज संस्थानों पर दबाव, प्रेस की स्वतंत्रता पर सवाल, और अराजकता की स्थिति 1975 के हालात से तुलना को जन्म देती है। क्या हम 2014 से एक अघोषित आपातकाल में जी रहे हैं? यह विचारणीय प्रश्न है।
आपातकाल का सही मूल्यांकन
आपातकाल को लोकतंत्र की हत्या कहने वाले तत्कालीन हालात और कांग्रेस की लोकतंत्र के प्रति प्रतिबद्धता का गहन अध्ययन करें। इंदिरा गांधी ने आपातकाल देश को आंतरिक और बाह्य खतरों से बचाने के लिए लगाया, न कि सत्ता की रक्षा के लिए। उनके सुधारों ने देश को मजबूत किया, और 1977 के चुनाव ने उनकी लोकतांत्रिक भावना को साबित किया। आज के हालात हमें आपातकाल के कारणों और परिणामों पर पुनर्विचार करने के लिए मजबूर करते हैं।
मूल आलेख - Hitesh S Verma