अधिक माह नहीं बीते हैं जब हम लोग अस्पताल,बिस्तर,ऑक्सीजन, वेंटिलेटर के लिए तरस रहे थे।तब यह बात उठी थी की चुनावों के पहले नेताओं से अस्पताल स्कूल की मांग किये होते तो यह दुर्दशा नहीं होती।
अब जैसे जैसे चुनाव सर पर हैं देश मध्ययुगीन दुनिया में पहुंच कर विभिन्न कबीलों में बंटता जा रहा है। जैसे की-
यादव कबीला, ब्राह्मण कबीला, जाट कबीला, लोधी कबीला, क्षत्रिय कबीला,अगड़ा कबीला, पिछड़ा कबीला..हिंदू कबीला,मुसलमान कबीला...
5 बरस बाद अचानक हर किसी को याद आ रहा है की उसकी जाती-धर्म के कबीले के लिए तो कुछ किया ही नहीं गया है। कोई 80 विरुद्ध 20 की बात कर रहा है तो कोई इससे आगे बढ़ कर 85 विरुद्ध 15 की बातें कर रहा है।
इन सबके बीच भारत और भारतीयता कहीं गायब हैं।मानवता और इंसानियत मर चुकी है। नफरत की खेती में फसल लहलहा रही है। कौन किसके विरुद्ध कितना जहर घोल के वोट बटोर ले यह अधिक महत्वपूर्ण हो चला है। हाँ कभी कोई नीरज चोपड़ा आता है और देश में भारतीयता को कुछ पल के लिए एक कर चले जाता है। यह काम कभी कभार क्रिकेट भी किया करता है जिससे हम कुछ पल के लिए एक होते हैं।
हिंदू युवाओं में नफ़रत घोलने का जो काम मोदी योगी जैसे लोग कर रहे हैं।वहीं मुसलमान युवाओं में इसी नफरत को घोलने का ठेका ओवैसी जैसे लोगों के पास है। इन दो चार दिनों से कुछ अच्छा होता दिख रहा है जब युवा राजनाथ और मोदी की सभाओं में रोजगार का नारा लगा रहा है।
वैसे गरीबी भुखमरी बेरोजगारी से भारतीय युवाओं को कोई सरोकार नहीं रहा है।चीन पर चुप्पी इसलिए है क्योंकि यह वोट नहीं दिलाती।पाकिस्तान पर दहाड़ इसलिए है क्योंकि इससे वोट मिलता है।
ये ठीक वैसे ही होने जा रहा है जो ,इतिहास में कबीलों के बीच हुआ करता था ,तो क्या हम पुनः उसी ऐतिहासिक खूनखराबे के दौर के ,आऊटंर पर खड़े हैं ,-?? क्योंकि आज के तथाकथित अवसरवादी नेताओं के द्वारा हजार, पांच सौ ,या सत्तर साल क्या हुआ, क्या नहीं हुआ ,--पीढ़ी खराब करने के प्रयोग जारी है और प्रथम पायदान पर सफलता भी मिली है, यदि मां बाप अपनी उस नवीन पीढ़ी को इस राह से खेंचकर वापस नहीं ला पाई तो इसका हश्र बहुत ही विभत्स होने वाला है
बाकी सब चंगा सी...
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